हम समय रहते नहीं जागे तो पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसेंगे,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
डा. भीमराव आंबेडकर ने ब्रिटिश शासनकाल में देश की जलीय संपदा के विकास के लिए अखिल भारतीय नीति तैयार करने में अहम भूमिका निभाई थी और देश की नदियों के एकीकृत विकास के लिए नदी घाटी प्राधिकरण अथवा निगम स्थापित करने की वकालत की थी। देश की जल संपदा के प्रबंधन में दिए गए उनके इस योगदान को देखते हुए ही केंद्र सरकार द्वारा 14 अप्रैल को ‘राष्ट्रीय दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। इसकी घोषणा छह दिसंबर, 2016 को डा. आंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर की गई थी।
विकट समस्या बन चुका जल संकट
महाराष्ट्र हो या राजस्थान, बिहार हो या झारखंड या फिर देश की राजधानी दिल्ली, हर साल खासकर गर्मी के मौसम में देश भर में जगह-जगह से पानी को लेकर लोगों के बीच आपस में मारपीट या झगड़े-फसाद की खबरें सामने आती रही हैं। हालांकि, ऐसा नहीं है कि पानी की कमी को लेकर व्याप्त यह संकट अकेले भारत की ही समस्या हो, बल्कि जल संकट अब दुनिया के लगभग सभी देशों की एक विकट समस्या बन चुका है।
पृथ्वी का करीब तीन-चौथाई हिस्सा पानी से लबालब है, लेकिन धरती पर मौजूद पानी के विशाल स्रोत में से महज एक-डेढ़ प्रतिशत पानी ही ऐसा है, जिसका उपयोग पेयजल या दैनिक क्रियाकलापों के लिए किया जाना संभव है। पृथ्वी पर उपलब्ध पानी में से इस एक प्रतिशत पानी में से भी करीब 95 प्रतिशत पानी भूमिगत जल के रूप में पृथ्वी की निचली परतों में उपलब्ध है और शेष पानी पृथ्वी पर सतही जल के रूप में तालाबों, झीलों, नदियों अथवा नहरों में तथा मिट्टी में नमी के रूप में उपलब्ध है।
हमारी पानी की आवश्यकताएं कैसे पूरी होंगी?
स्पष्ट है कि पानी की हमारी अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति भूमिगत जल से ही होती है, लेकिन इस भूमिगत जल की मात्र भी इतनी नहीं है कि इससे लोगों की आवश्यकताएं पूरी हो सकें। ऐसे में महत्वपूर्ण सवाल यही है कि पृथ्वी की सतह पर उपयोग में आने लायक पानी की मात्र वैसे ही बहुत कम है और अगर भूमिगत जल स्तर भी निरंतर गिर रहा है तो हमारी पानी की आवश्यकताएं कैसे पूरी होंगी? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश के नागरिकों को वर्षा जल संचयन के लिए जागरूक करने और वर्षा जल का ज्यादा से ज्यादा संरक्षण करने के उद्देश्य से ‘जल शक्ति अभियान : कैच द रेन’ की शुरुआत की गई थी।
ऐसे जल संकट से निपटा जा सकता है…
दरअसल वर्षा के पानी का करीब 15 प्रतिशत वाष्प के रूप में उड़ जाता है और करीब 40 प्रतिशत पानी नदियों में बह जाता है, जबकि शेष पानी जमीन द्वारा सोख लिया जाता है, जिससे थोड़ा बहुत भूमिगत जल स्तर बढ़ता है और मिट्टी में नमी की मात्र में कुछ बढ़ोतरी होती है। यदि हम वर्षा के पानी का संरक्षण किए जाने की ओर खास ध्यान दें तो व्यर्थ बहकर नदियों में जाने वाले पानी का संरक्षण कर जल संकट से निपटा जा सकता है।
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