अटॉर्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल और एडवोकेट जनरल में क्या अंतर है?

अटॉर्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल और एडवोकेट जनरल में क्या अंतर है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से केंद्र से जवाब दाखिल करने को कहा है। कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 5 मई को होगी। इस मामले में इससे पहले पेश होते हुए सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि कानून के पूरे खंड को खत्म करने की आवश्यकता नहीं है। इस मामले में अदालत सख्त दिशानिर्देश निर्धारित कर सकती है जिससे कि इसका इसका कानूनी उद्देश्य पूरा हो सके। वहीं देश राजधानी दिल्ली में क्षेत्राधिकार को लेकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच अदालती लड़ाई चल रही है।

दिल्ली सरकार बनाम केंद्र मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग पर अब केंद्रीय अधिकार की वकालत की गई है। मामले की सुनवाई करते हुए जब सीजेआई ने पूछा कि अब सरकार क्या विधानसभा के अधिकार को लेकर पीछे हट रही है? जिस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दुनिया के कई विकसित देशों की राजधानियों का जिक्र करते हुए संविधान के मुताबिक दिल्ली के विधानसभा को दिए अधिकारों का हवाला दिया। मामले दो अलग-अलग लेकिन हम दोनों का इकट्ठा जिक्र क्यों कर रहे हैं। वजह है मामले दो वो भी अलग-अलग, कोर्ट एक यानी देश की सर्वोच्च अदालत, एक पार्टी यानी पक्षकार सरकार है।

लेकिन सरकार की तरफ से वकील दो अलग-अलग नाम और पद वाले। एक में सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल पेश हुए तो दूसरे में सॉलिसिटर जनरल। ऐसे में आईए आपको बताते हैं कि अटॉर्नी जनरल कौन होते हैं? इनका काम क्या होता है, अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल में क्‍या फर्क होता है? इनकी नियुक्ति कैसे होती है और कौन तय कर करता है कि ये कौन सा केस लड़ेंगे?

भारत के अटॉर्नी जनरल कौन होते हैं?

संविधान के अनुच्छेद 76 में कहा गया है कि सरकार को कानूनी या विधी सहायता देने के लिए एक अधिकारी की नियुक्ति की गई जिसे हम अटॉर्नी जनरल या महान्यायवादी कहते हैं। अटॉर्नी जनरल आमतौर पर अदालत का एक उच्च सम्मानित वरिष्ठ अधिवक्ता होता है। इसकी योग्यता सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर की होती ही। जैसे उदाहरण के लिए आप ग्रैजुएट हैं और एक डीएम के लिए भी योग्यता ग्रैजुएट की होनी चाहिए। उसी तरह अर्टानी जनरल का सुप्रीम कोर्ट का जज होना जरूरी नहीं है। लेकिन योग्यता इसके बराबर की होनी चाहिए।

अब ऐसे में आपके मन में ये सवाल होगा कि सुप्रीम कोर्ट के जज की क्या योग्यात है। तो चलिए ये भी बता देते हैं- पांच साल हाईकोर्ट में जज या 10 साल वकील रहना जरूरी है। भारत का अटॉर्नी जनरल भारत सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार होता है और भारत के सर्वोच्च न्यायालय से जुड़े मामलों में सरकार का प्राथमिक वकील भी। मुख्य बात ये है कि अर्टॉनी जनरल का काम सरकार को विधि सलाह देना होता है जैसे धारा 370 में कैसे संशोधन किया जाता सकता है, तीन तलाक को कैसे हटाया जा सकता है। जितने भी बड़े निर्णय होते हैं उसको लेकर सलाह महान्यायवादी की तरफ से ही सरकार को दी जाती है। जिसे हम अटॉर्नी जनरल कहते हैं।

अटॉर्नी जनरल का काम क्या होता है?

केस लड़ने से संबंधी चीजों को उर्दू में ‘पैरवी’ करना, हिंदी में ‘मुकदमा’ लड़ना और अंग्रेजी में ‘प्रैक्टिस’ करना कहते हैं। ऐसे में अटॉर्नी जनरल भारत के किसी भी कोर्ट में मुकदमा लड़ने में सक्षम हैं क्योंकि उनकी योग्यता जैसा की हमने पहले भी बताया सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर है। इसके अलावा ये किसी भी निजी व्यक्ति का भी मुकदमा लड़ सकते हैं, बर्शते वो मुकदमा सरकार के विरूद्ध नहीं हो। यहीं एक बड़ा पेंच है। किसी भी निजी व्यक्ति का मुकदमा लड़ने पर वहां से पैसे प्राप्त होंगे और सरकार से भी सैलरी मिलेगी।

ऐसे में कहा गया कि निजी व्यक्ति का मुकदमा लड़ने पर तो अटॉर्नी जनरल को जो फीस लेनी होगी वो अपने क्लाइंट से लेंगे, लेकिन सरकार की तरफ से उन्हें अटॉर्नी जनरल के रूप में कोई मेहनताना नहीं मिलेगा। लेकिन हां भत्ता व घर का प्रावधन जरूर किया गया है। जेड प्लस सिक्योरिटी भी मिलती है। अटॉर्नी जनरलों को संसद की कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार है, लेकिन सदन में वोट नहीं दे सकते। इनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

महान्यायवादी भारत सरकार से संबंधित सभी मामलों (मुकदमों, अपीलों और अन्य कार्यवाही सहित) में सर्वोच्च न्यायालय में उपस्थित होते हैं। संविधान एजी को निश्चित कार्यकाल प्रदान नहीं करता है। इसलिए, वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत पद धारण करता है। उन्हें राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय हटाया जा सकता है। उसे हटाने के लिए संविधान में कोई प्रक्रिया या आधार नहीं बताया गया है।

सॉलिसिटर जनरल कौन होते हैं?

अब इतना बड़ा देश और इससे जुड़े कानूनी मुद्दे भी ढेर सारे। ऐसे में सभी को एक महान्यायवादी द्वारा संभाला जाना तो संभव नहीं है। ये तो वही बात हो गई कि हजारों बच्चों से भरे स्कूल में एक ही शिक्षक हो और उसे ही सभी को पढ़ाने की जिम्मेदारी दे दी गई हो। ऐसे में इनकी सहायता सॉलिसिटर जनरल की तरफ से की जाती है। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल की संख्या वर्तमान समय में चार होती है जबकि सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल की संख्या 1-1 ही होती है। वर्तमान में भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता हैं। उन्हें 2018 में भारत के सॉलिसिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया था। भारत के वर्तमान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल हैं। उन्हें भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा नियुक्त किया गया था।

सॉलिसिटर जनरल का काम

भारत का सॉलिसिटर जनरल भारत के महान्यायवादी के अधीन होते हैं। भारत के लिए सॉलिसिटर जनरल देश का दूसरा कानून अधिकारी हैं, जो अटॉर्नी जनरल की सहायता करते हैं। सॉलिटर जनरल की मदद के लिए चार एडिशनल सॉलिसिटर जनरल भी होते हैं। अटॉर्नी जनरल के विपरीत, सॉलिसिटर जनरल भारत सरकार को कानूनी सलाह नहीं देते हैं। उनका कार्य भारत संघ की ओर से अदालतों में पेश होने तक ही सीमित है। सॉलिसिटर जनरल की नियुक्ति भी राष्ट्रपति ही करते हैं। उनकी योग्यता का पैमाना वहीं है जो अटॉर्नी जनरल के लिए होता है।

अगर राष्‍ट्रपति की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कोई संदर्भ उठता है तो संविधान के अनुच्‍छेद 143 के तहत अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल, दोनों में से कोई भी सरकार का प्रतिनिधित्‍व कर सकता है। काम के लिहाज से देखें तो अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल में कोई अंतर नहीं है। हां, अटॉर्नी जनरल का पद संवैधानिक है मगर सॉलिसिटर जनरल और ऐडिशनल सॉलिसिटर जनरल के पद महज वैधानिक।

एडवोकेट जनरल के कार्य और अधिकार

एडवोकेट जनरल यानी महाधिवक्ता राज्य प्रमुख को विधि संबंधी सलाह देने का कार्य करता है। वो राज्य के दोनों सदनों ( विधानसभा तथा विधान परिषद ) की कार्यवाही में और सदन में बोलने की शक्ति रखता है। इनका पारिश्रमिक संविधान द्वारा निर्धारित नहीं है, लेकिन सरकार द्वारा निर्धारण के अनुसार वेतन प्राप्त होता है। एडवोकेट जनरल को राज्य के सीओएम की सलाह पर राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है और एडवोकेट जनरल अपना इस्तीफा भी राज्यपाल को ही सौंपते है। महाधिवक्ता किसी राज्य का प्रथम विधि अधिकारी होते हैं।

उनका कार्यालय और कार्य भारत के महान्यायवादी के समान हैं। एडवोकेट जनरल की योग्यता हाई कोर्ट के जज के बराबर की होनी चाहिए। एडवोकेट जनरल को राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन की कार्यवाही में भाग लेने और बोलने का अधिकार है। राज्य के किसी भी न्यायालय में सुनवाई का अधिकार है। अनुच्छेद 165 के तहत प्रत्येक राज्य में एक महाधिवक्ता होगा। अनुच्छेद 177 के तहत उसे राज्य विधानमंडल और उसकी समितियों में श्रोता का अधिकार लेकिन मत देने का अधिकार नहीं।

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