यूरोप यात्रा के क्या है मायने?

यूरोप यात्रा के क्या है मायने?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूरोप यात्रा पर यूरोप ही नहीं, चीन, अमेरिका और रूस समेत अन्य देशों की भी नजरें टिकी हैं.

यह यात्रा तब और महत्वपूर्ण हो जाती है, जब हाल ही में ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और यूरोपियन यूनियन प्रमुख उर्सुला वॉन डर लेन की भारत यात्रा हो चुकी हो. भारत यात्रा में बोरिस जॉनसन का बुलडोजर पर चढ़कर तस्वीर खिंचाना मीडिया और सोशल मीडिया के लिए सुर्खियां बटोर गया हो, लेकिन हकीकत में इस साल के दीवाली तक दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार पर सहमति उस यात्रा की बड़ी उपलब्धियों में से एक रही है.

ठीक उसी तरह जर्मनी और डेनमार्क यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी का ड्रम बजाना मीडिया में सुर्खियां बटोर रहा है. लेकिन नरेंद्र मोदी ने इस यात्रा के शुरुआती दो दिनों में यूरोप और अमेरिका की तमाम कोशिशों के बावजूद जिस मजबूती से अपनी बात रखी है, वह निश्चित तौर पर मजबूत होते भारत का संकेत देता है. ऐसे में क्या माना जाये कि आनेवाले दिनों में इन देशों में भारत का डंका बजेगा? या फिर ये ड्रम बजाने तक ही सीमित रह जायेगा? क्योंकि मामला सिर्फ राजनीतिक दिखावे का नहीं है. इसे कूटनीतिक और व्यापारिक दोनों स्तर पर ठीक से समझना होगा.

रूस और यूक्रेन युद्ध के मसले पर भारत ने दूरी बनायी हुई है. दोनों देशों के प्रमुखों से कई दौर की बातचीत भी हुई है और यूक्रेन का साथ दे रहे सभी यूरोपीय देशों से भी अपने संबंधों में कोई रुकावट नहीं आने दी है. पूरा यूरोप, रूस को राजनयिक और व्यापारिक तौर पर लगभग अलग-थलग कर चुका है. रूस की आलोचना करने के लिए भारत पर भी दबाव बना रहा है.

नरेंद्र मोदी की यूरोप के देशों की तीन दिनों की ये यात्रा और इसमें ये संदेश कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है, निश्चित तौर पर मजबूत होते भारत की निशानी है. रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत की तटस्थ भूमिका ने पश्चिम को इस वास्तविकता को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया है कि सभी शक्तियां दुनिया को उसी तरह नहीं देखती हैं, जैसे वा‍ॅशिंगटन और ब्रसेल्स (यूरोपियन यूनियन मुख्यालय) देखते हैं.

प्रधानमंत्री जिन देशों की यात्रा कर रहे हैं, उनमें से फ्रांस में चंद रोज पहले ही राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रां ने दोबारा जीत हासिल की है. जर्मनी के चांसलर ओलाफ शुल्ज भी नये हैं. अमेरिका के अलावा, भारत एकमात्र देश है जिसके साथ नॉर्डिक देश, सम्मेलन स्तर की वार्ता करते हैं. डेनमार्क में जिस नार्डिक सम्मेलन में मोदी हिस्सा ले रहे हैं, उनमें से दो प्रमुख देश स्वीडन और फिनलैंड नाटो की सदस्यता का मन बना चुके हैं.

इसका रूस उसी तरह विरोध कर रहा है जैसे यूक्रेन का कर रहा था. अगर ये दोनों देश नाटो की तरफ कदम बढ़ाते हैं, तो रूस की नाराजगी बढ़नी तय है. लेकिन, इन सबके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने इन देशों की यात्रा की है और रूस-यूक्रेन युद्ध पर उन्होंने कहा है कि बातचीत से ही हल निकाला जाये. मोदी उन देशों के राष्ट्राध्यक्षों से भी मिल रहे हैं, जो नाटो में जाने को बेताब हैं. रूस और उसके विरोधियों दोनों को अपनी स्थिति का अहसास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यूरोप यात्रा ने करा दिया है.

एक तरफ जर्मनी के चांसलर के सलाहकारों ने पहले ये सलाह दी थी कि अगले महीने जर्मनी में होनेवाली जी-7 की बैठक से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दूर रखा जाये और ऐसी खबर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में तैरने भी लगी, लेकिन जर्मनी ने उन खबरों पर न सिर्फ विराम लगा दिया बल्कि भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों को और मजबूत करने का भरोसा भी दिया है. जाहिर है कि पश्चिमी देश भारत को एक बड़े बाजार के तौर पर देखते हैं.

रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान जिस तरीके से रूस और चीन की नजदीकियां बढ़ी हैं, निश्चित तौर पर भारत के लिए वह चिंताजनक है. ऐसे में यूरोप को साधना भारत के लिए भी उतना ही जरूरी है जितना भारत को साधना यूरोप के लिए. भले ही दोनों के मकसद अलग-अलग हों लेकिन दोनों मौजूदा दौर में एक-दूसरे की जरूरतें पूरी करते हैं.

आने वाले दिनों में भारत को पहले से ज्यादा यूरोप की जरूरत होगी, चाहे वो डिफेंस सिस्टम को मजबूत करना हो या फिर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करनी हो या फिर नयी-नयी तकनीक के सहारे एक नया बाजार खड़ा करना हो. इन सबके संकेत मोदी ने इस यात्रा के दौरान दिये जब स्टार्टअप इंडिया की सफलता का जिक्र किया. डेनमार्क के प्रवासी भारतीयों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया कि हर एक भारतीय अगर पांच गैर भारतीय को भारत घूमने के लिए प्रेरित करें, तो भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी.

उधर जर्मनी अगर दूसरे यूरोपीय देशों के साथ-साथ भारत को भी साथ लेकर चलता है तो अपनी मजबूती के बूते एक ऐसे इलाके के तौर पर उभर सकता है जो अमेरिका से अलग स्वतंत्र रूप से अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपना रोल निभाये जैसा कि जर्मनी काफी लंबे समय से चाहता रहा है. जर्मनी जी-7 देशों का अध्यक्ष है. रूस-यूक्रेन युद्ध में उसकी भूमिका स्पष्ट है फिर भी जर्मनी और भारत सहमत हैं कि रूस को अलग-थलग नहीं किया जा सकता और उससे जुड़ा रहा जाये और जोर दिया जाये कि वह नियमों के भीतर रहे.

निश्चित तौर पर यह भारत की भूमिका का परिणाम है. भारत नहीं चाहता कि यूक्रेन में रूस की कार्रवाई से चीन के उल्लंघनों से दुनिया का ध्यान हटे. तभी तो यात्रा से पूर्व प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘यूरोप की मेरी यात्रा ऐसे वक्त में हो रही है, जब इलाके में कई चुनौतियां और विकल्प हैं. इस बातचीत से मेरा मकसद है कि मैं यूरोपीय सहयोगियों, जो कि भारत की शांति और समृद्धि की खोज के अहम साथी हैं, के साथ सहयोग की भावना को मजबूत करूं.’

नरेंद्र मोदी का ये यूरोपीय दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उम्मीद है कि 24 मई को मोदी टोक्यो में ‘क्वाड’ की अगली बैठक में शामिल होंगे. दो महीने में दूसरी बार होगा जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और नरेंद्र मोदी शिखर वार्ता कर रहे होंगे. अप्रैल में दोनों नेताओं के बीच वर्चुअल शिखर सम्मेलन हुआ था. निश्चित तौर यह कहा जा सकता है कि यूरोप यात्रा में सिर्फ ड्रम नहीं बज रहा है, डंका बजाने की शुरुआत हो रही है.

Leave a Reply

error: Content is protected !!