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क्या मोदी चलते भारत अंतरराष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बन चुका है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों के चलते भारत आज अंतरराष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बन चुका है। दुनिया यह भलीभांति समझ गयी है कि संकट चाहे कोई भी देश लाया हो मगर उसका समाधान भारत ही लायेगा। संकट चाहे महामारी का हो या युद्ध का हो, खाद्यान्न संकट का हो, पर्यावरण सुरक्षा का हो या फिर बिगड़ते वैश्विक आर्थिक हालात का, समाधान के लिए दुनिया भारत की ओर ही देखती है।

यही कारण है कि रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत से अलग विचार रखने वाले तमाम देश इस मुद्दे के हल के लिए भारत से ही आस लगाये हुए हैं। यूक्रेन के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे रूस को लेकर दुनिया के बड़े देशों का क्या रुख है यह किसी से छिपा नहीं है, भारत ने रूस का अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जिस तरह साथ दिया है वह भी किसी से छिपा हुआ नहीं है लेकिन इसके बावजूद पश्चिमी देश और यूरोपीय देश भारत के साथ रिश्ते प्रगाढ़ करने को आतुर हैं।

यही नहीं भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां वर्तमान अंतरराष्ट्रीय हालात में रूस और अमेरिका के प्रतिनिधि एक साथ उपस्थित हो सकते हैं। उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में रूसी विदेश मंत्री के भारत दौरे के समय ही अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी भारत में ही थे।

देखा जाये तो भारत की विदेश नीति मोदी सरकार के कार्यकाल में सक्रियता और दृढ़ता के साथ दुनिया की भी चिंता करते हुए भारत के हितों को आगे बढ़ा रही है। रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद की ही घटनाओं को देख लीजिये। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ ऑनलाइन द्विपक्षीय वार्ता की और इस दौरान युद्ध पर भारत के रुख को लेकर कोई आलोचनात्मक टिप्पणी नहीं की। यही नहीं अमेरिका के साथ टू प्लस टू वार्ता के दौरान दोनों देशों ने संबंधों को नयी मजबूती प्रदान की।

हाल ही में ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भारत आये और कई द्विपक्षीय समझौते किये। इसके अलावा दिल्ली में रॉयसीना डॉयलॉग में विभिन्न देशों के नेता और राजनयिक जुटे। अभी प्रधानमंत्री खुद यूरोपीय देशों का दौरा करके आये। इस समय इटली के विदेश मंत्री भारत आये हुए हैं और कारोबार एवं निवेश, रक्षा एवं सुरक्षा, हरित ऊर्जा सहित द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा कर रहे हैं।

यूरोपीय देशों की सोच बदली

जहां तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया यूरोप दौरे की बात है तो यह सिर्फ भारत के यूरोपीय देशों के साथ संबंध प्रगाढ़ करने या वहां रह रहे भारतीय समुदाय में जोश जगाने तक ही सीमित नहीं रहा। बल्कि प्रधानमंत्री के इस दौरे ने भारत के बारे में यूरोपीय देशों की सोच बदली है। भारत के प्रधानमंत्री मोदी इस यात्रा के दौरान जितने भी राष्ट्राध्यक्षों से मिले जरा उन तस्वीरों पर गौर कीजियेगा।

प्रधानमंत्री ने विश्व नेताओं के साथ जिस तरह निजी संबंध भी गहरे बनाये हैं उसका लाभ जब-तब भारत को मिलता ही है। आज दुनिया के अन्य देशों की तरह यूरोपीय देश भी हिंद प्रशांत क्षेत्र के आर्थिक, रणनीतिक और राजनीतिक महत्व को स्वीकार करते हुए इसके लिए अपनी एक नीति बना रहे हैं। और जब आप हिंद प्रशांत क्षेत्र की बात करते हैं तो उसमें सर्वाधिक प्रभावी देश भारत ही है।

यूरोपीय देशों ने देखा कि महामारी के समय जीवन रक्षक दवाओं और कोविड-19 रोधी टीकों की उपलब्धता कराना हो, पर्यावरण से रक्षा के लिए लक्ष्य तय करके उस पर ईमानदारी से अमल करना हो या फिर खाद्यान्न अथवा अन्य संकटों के दौरान मदद करना हो, भारत एक सच्चे मित्र देश के रूप में सदा साथ खड़ा रहा है।

प्रधानमंत्री का जर्मनी दौरा

प्रधानमंत्री के यूरोप दौरे की ही बात करें तो शुरुआत जर्मनी से करते हैं। जर्मनी के साथ कृषि, ऊर्जा, विज्ञान तथा सतत विकास पर केंद्रित कई समझौते तो हुए ही साथ ही जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्ज ने जर्मनी में जी-7 शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित भी किया। पहले कहा जा रहा था कि रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख को देखते हुए जर्मनी विरोध स्वरूप भारत को जी-7 सम्मेलन में आमंत्रित नहीं करेगा।

शॉल्ज ने माना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और जलवायु परिवर्तन वार्ता में भारत की भूमिका अहम है। भारत ने भी आश्वासन दिया है कि यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौता वार्ता में त्वरित प्रगति के लिए वह प्रतिबद्ध है। इसके अलावा दोनों देशों ने डब्ल्यूटीओ में सुधार के लिए प्रतिबद्धता भी जताई है। साथ ही भारत और जर्मनी ने स्वतंत्र, मुक्त और समावेशी हिंद-प्रशांत के महत्व पर जोर देते हुए अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप निर्बाध वाणिज्य एवं नौवहन की स्वतंत्रता को रेखांकित किया है। इसके अलावा जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज़ ने हिंद-प्रशांत को सबसे गतिशील वैश्विक क्षेत्रों में से एक करार दिया है।

प्रधानमंत्री का डेनमार्क दौरा

वहीं प्रधानमंत्री मोदी के डेनमार्क दौरे की उपलब्धियों पर नजर डालें तो डेनमार्क की कंपनियों और पेंशन कोष ने भारत के बुनियादी ढांचे तथा हरित उद्योगों में निवेश के लिये रुचि दिखाई है। अभी डेनमार्क की कंपनियां भारत में पवन ऊर्जा, पोत परिवहन, परामर्श, खाद्य प्रसंस्करण और इंजीनियरिंग समेत विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही हैं।

डेनमार्क की प्रधानमंत्री ने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया है तो भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 2025-26 के लिये अस्थायी सदस्यता के लिये डेनमार्क की उम्मीदवारी का समर्थन किया है। साथ ही दोनों देशों ने हरित रणनीतिक साझेदारी की प्रगति की समीक्षा की और क्षेत्रीय तथा वैश्विक मुद्दों पर विचारों का अदान-प्रदान भी किया। भारत-डेनमार्क बातचीत में अक्षय ऊर्जा, विशेष रूप से अपतटीय क्षेत्र में पवन ऊर्जा और हरित हाइड्रोजन के साथ ही कौशल विकास, स्वास्थ्य, जहाजरानी, पानी और आर्कटिक आदि क्षेत्रों में सहयोग के विषय शामिल रहे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डेनमार्क के उद्योगपतियों को निवेश का न्योता देते हुए कहा कि भारत में निवेश से चूक जाने वालों की स्थिति आगे चलकर ‘फोमो’ जैसी हो जाएगी। हम आपको बता दें कि सोशल मीडिया पर ‘फोमो’ की अवधारणा काफी प्रचलित है जिसका आशय किसी चीज से वंचित रहने पर अफसोस होना है।

नॉर्डिक देशों के प्रमुखों से मुलाकात

इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने डेनमार्क की राजधानी में दूसरे भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन के इतर अन्य वैश्विक नेताओं से भी मुलाकात की। नॉर्वे के प्रधानमंत्री जोनास गहर स्टोर से प्रधानमंत्री मोदी ने मुलाकात कर द्विपक्षीय संबंधों और विकास संबंधी सहयोग को प्रगाढ़ बनाने के तरीकों पर व्यापक चर्चा की। इसके अलावा स्वीडन की प्रधानमंत्री मैग्डेलेना एंडरसन से मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के तरीकों और संयुक्त कार्य योजना में प्रगति पर चर्चा की।

इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आइसलैंड की प्रधानमंत्री कैटरीन जैकोब्स्दोतिर से मुलाकात की और व्यापार, ऊर्जा और मत्स्य पालन जैसे क्षेत्रों में संबंधों को बढ़ावा देने के तरीकों पर चर्चा की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फिनलैंड की अपनी समकक्ष सना मरीन से भी मुलाकात की और व्यापार, निवेश, प्रौद्योगिकी और अन्य क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत बनाने के तरीकों पर चर्चा की।

प्रधानमंत्री की फ्रांस यात्रा

इसके बाद फ्रांस की यात्रा पर पहुँचे प्रधानमंत्री मोदी उन चुनिंदा नेताओं में शुमार हो गये जो वहां के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के दोबारा जीत कर आने के बाद उनसे मिले हैं। इस मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हालात तथा आतंकवाद जैसे द्विपक्षीय और वैश्विक मुद्दों पर गहन चर्चा की और भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी के अगले चरण के लिए महत्वाकांक्षी एजेंडा तैयार करने पर सहमत हुए।

प्रधानमंत्री मोदी ने मैक्रों से अकेले में तथा प्रतिनिधि स्तर पर गहन वार्ता की जिसके व्यापक निहितार्थ निकाले जा रहे है। इसके अलावा फ्रांस ने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता और एनएसजी की सदस्यता का पुनः समर्थन किया जोकि बड़ी कामयाबी है।

बहरहाल, दुनिया के सामने अब स्पष्ट है कि किसी भी मुद्दे का समाधान निकालना है तो भारत को ही संपर्क करना होगा। भारत के साथ संबंध प्रगाढ़ करने, संबंध सुधारने या संबंध बनाने की विश्व देशों में जो होड़ चल रही है वह दर्शा रही है कि भारत अब अंतरराष्ट्रीय राजनीति की गतिविधियों का केंद्र बन चुका है। दुनिया के बड़े से लेकर छोटे देश भी वैश्विक मामलों में भारत की राय को गौर से सुनते हैं या वैश्विक मुद्दों पर भारत के रुख को देखकर ही अब अपनी रणनीति तय करते हैं।

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