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तकनीकी दृष्टिकोण से ही द्रुत गति से बदल रहे समय के साथ बना पाएंगे सामंजस्य: गणेश दत्त पाठक - श्रीनारद मीडिया

तकनीकी दृष्टिकोण से ही द्रुत गति से बदल रहे समय के साथ बना पाएंगे सामंजस्य: गणेश दत्त पाठक

तकनीकी दृष्टिकोण से ही द्रुत गति से बदल रहे समय के साथ बना पाएंगे सामंजस्य: गणेश दत्त पाठक

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राष्ट्रीय तकनीक दिवस के अवसर पर पाठक आईएएस संस्थान में परिचर्चा का आयोजन

श्रीनारद मीडिया‚ सीवान (बिहार)

तकनीक हमारे विकास और उन्नति का बुनियादी आधार है। विज्ञान के साथ तकनीक का सामंजस्य अभी समाज की गतिशीलता को तीव्र गति से बढ़ाता जा रहा है। ऐसे में परिवर्तन की तीव्र गति से समन्वय के लिए तकनीकी दृष्टिकोण का अंगीकरण विशेष तौर पर जरूरी हैं। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों से निबटने के लिए भी तकनीकी दृष्टिकोण का अवलंबन ही महत्वपूर्ण आधार है। ये बातें राष्ट्रीय तकनीक दिवस के अवसर पर सिवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान पर परिचर्चा को संबोधित करते हुए शिक्षाविद् गणेश दत्त पाठक ने कही। इस परिचर्चा में संस्थान से सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों मनोज यादव, रागिनी कुमारी, मीरा कुमारी, आकाश कुमार आदि ने भी सहभागिता निभाई।

परिचर्चा में श्री पाठक ने कहा कि
वर्तमान डिजिटल क्रांति के दौर में सूचना प्रौद्योगिकी, जैव तकनीकी, रिमोट सेंसिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉक चैन आदि क्षेत्र में उपलब्धियों ने भारतीय समाज में भी बदलाव की गति को तीव्र कर दिया है। अभी आनेवाले 5 जी के दौर में ये बदलाव और भी तीव्रता पकड़ेंगे। भारत में शोध और अनुसंधान के संदर्भ में संसाधनों का टोटा एक बड़ी समस्या रही है। परंतु भारत के वैज्ञानिकों के समर्पित प्रयासों के बूते भारत आज संचार तकनीक, जैव तकनीक, रक्षा तकनीक, परमाणु तकनीक और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के संदर्भ में विश्व में एक प्रतिष्ठित मुकाम हासिल कर चुका है।

परिचर्चा में श्री पाठक ने कहा कि
तथ्य यह भी है कि जो परिवर्तन पहले 10 से 15 वर्षों में हो रहा था वह परिवर्तन अब मात्र दो से तीन वर्षों में हो जा रहा हैं। सभ्यता और संस्कृति के संदर्भ में विज्ञान की इस तीव्र गति से सामंजस्य स्थापित करने के लिए तकनीकी दृष्टिकोण पर ध्यान देने की दरकार हैं। तकनीकी दृष्टिकोण से आशय तर्कसंगत सोच,वैचारिक वैविध्य से भी होता है। विचारों की क्रमबद्धता, व्यवस्थित कलेवर, सुनियोजित स्वरूप मानसिक चिंतन को प्रेरित करता है। यहीं चिंतन और मनन मानव जीवन की सार्थकता को मजबूत आधार दे जाता हैं। आज के तीव्र गति से बदल रहे माहौल और उपभोक्तावादी सोच के दौर में वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानवता की रक्षा का बड़ा संबल बन सकता है। इसलिए तकनीक से प्रेम करना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अंगीकृत करना समय की मांग है। अन्यथा द्रुत गति से बदल रहा समय आपके अप्रासंगिक होने की स्थिति भी तैयार कर सकता हैं। दूसरी तरफ वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अवलंबन चाहे वो राष्ट्रीय सुरक्षा की बात हो या पर्यावरण संबंधी चुनौतियों का। या हो बात आर्थिक समृद्धि का या आरोग्य के रक्षण का। हर जगह जय विज्ञान का कलेवर हमारी सहायता करेगा। साथ ही, अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ सामंजस्य सुनिश्चित हो जाए तो सोने पर सुहागा वाली बात हो जायेगी।

परिचर्चा में अभ्यर्थी मोहन यादव ने कहा कि यही प्रौद्योगिकी का महत्वपूर्ण आधार ही हाल में कोरोना वायरस जनित महामारी से बचाव का ढाल बना वरना महामारी भारत को तबाह कर जाती। इतने बड़े स्तर पर टीका का उत्पादन भारत की जैव प्रौद्योगिकी की विशाल उपलब्धियों का परिचायक ही है।

अभ्यर्थी रागिनी कुमारी ने कहा कि अंतरिक्ष जगत में भारत की बेशुमार प्रतिष्ठा का आधार भी अंतरिक्ष तकनीक के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियां ही हैं।

अभ्यर्थी आकाश कुमार ने कहा कि कुछ दिनों पहले अफगानिस्तान में तथा अब यूक्रेन की घटनाएं राष्ट्रीय सुरक्षा की मजबूती की अनिवार्यता पर बल देती हैं। भारतीयों वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम से तैयार हथियारों के बूते भारतीय रक्षा अभिकरण आत्मविश्वास से लैस दिखाई देते हैं।

अभ्यर्थी मीरा कुमारी ने कहा कि अभी आगे आनेवाले दिनों में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करना है। सौर ऊर्जा और हरित तकनीक के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा हासिल की जा रही उपलब्धियां निश्चित तौर पर इस चुनौती से निबटने के लिए शाश्वत विकास के संदर्भ में मददगार होनी ही है।

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