क्या क्‍वाड कूटनीतिक मोर्चे पर चीन की करारी हार है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 क्‍वाड की बैठक से चीन में बौखलाहट है। ड्रैगन की चिंता यूं ही नहीं है। उसके पीछे वाजिब कारण भी है। चीन की आक्रामकता के चलते उसके पड़ोसी मुल्‍कों में जो एकजुटता है। उससे चीन का च‍ितिंत होना लाजमी है। क्‍वाड संगठन Quad से चीन की विस्‍तारवादी योजना पर विराम लग सकता है। चीन को घेरने के लिए भारत, जापान, अमेरिका और आस्‍ट्रेलिया के साथ हिंद प्रशांत क्षेत्र के 13 देश एकजुट हुए हैं।

भारत चीन सीमा विवाद (India China Border Dispute) के बीच क्‍वाड की इस बैठक ने चीन को और चिंता में डाल दिया है। इसके साथ भारत और जापान की गाढ़ी होती दोस्‍ती (India and Japan Friend) से चीनी हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। आखिर क्‍वाड की इस बैठक से चीन क्‍यों चिंतित है। इसके पीछे क्‍या बड़ी वजह है। भारत और जापान एक दूसरे के निकट क्‍यों आ रहे हैं। इसमें चीनी फैक्‍टर क्‍या है।

1- प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि क्‍वाड देशों (Quad Country) ने जो रणनीति तैयार की है, वह दूरगामी है। क्‍वाड देशों ने चीन के रणनीतिक मोर्चे के साथ आर्थिक क्षेत्र में भी बड़ी घेरेबंदी की है। उन्‍होंने कहा कि अगर आप उसके फ्रेमवर्क में शामिल देशों पर नजर डाले तो यह पाएंगे कि उसमें वह देश शामिल हैं, जो चीन के विस्‍तारवादी नीति से प्रभावित हैं।

ऐसे में क्‍वाड इन देशों के समक्ष एक बड़ा मंच प्रस्‍तुत करता है। इन देशों के साझा हितों ने क्‍वाड को और मजबूत किया है। इस फ्रेमवर्क में भारत, अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, थाइलैंड, ब्रुनेई, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया और विएतनाम शामिल हैं। ये वो मुल्‍क हैं जो चीन की विस्‍तारवादी और आक्रामक नीति के चलते दुखी हैं।

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2- उन्‍होंने कहा कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक सहयोग (Indo Pacific region) के लिए क्‍वाड के गठन के बाद इस क्षेत्र के दूसरे प्रमुख देशों को मिला कर एक बड़ा आर्थिक सहयोग संगठन बनाने की शुरुआत जापान में हो चुकी है। उन्‍होंने कहा कि इस योजना में क्‍वाड के ही तीन देश नहीं बल्कि 13 देशों को शामिल किया गया है। यह क्‍वाड की बड़ी जीत है। उन्‍होंने कहा कि क्‍वाड को यह सफलता तब मिली है जब चीन हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपनी आक्रमकता बढ़ा रहा है। इस क्षेत्र में उसकी दिलचस्‍पी बढ़ रह रही है। ऐसे क्‍वाड की यह रणनीति चीन की आक्रमकता पर विराम लगाने में कारगर हो सकती है। उन्‍होंने कहा कि इसमें खास बात यह है कि इस रणनीति में अमेरिका प्रमुख है।

3- उन्‍होंने कहा कि भारत समेत क्‍वाड से सभी देश हिंद प्रशांत क्षेत्र को समावेशी व सभी के लिए समान अवसर वाला क्षेत्र बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्‍होंने कहा कि यही प्रतिबद्धता चीन के हितों के प्रतिकूल है। भारत सहित क्‍वाड देशों का मानता है कि आर्थिक सहयोग को बढ़ाना इस क्षेत्र में शांति, संपन्नता व स्थायित्व के लिए जरूरी है। फ्रेमवर्क के बारे में कहा गया है कि इसकी स्थापना के बाद सदस्य देश आर्थिक सहयोग बढ़ाने और एक साझा लक्ष्य हासिल करने के लिए बातचीत शुरू करेंगे।

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4- इस सवाल के जबाव में क्‍वाड क्‍या ‘एशियाई नाटो’ है? उन्‍होंने कहा कि नाटो NATO की संकल्‍पना शीत युद्ध के दौरान पूर्व सोवियत संघ के खिलाफ तैयार की गई थी। अमेरिका के नेतृत्‍व में एक विचार, एक मूल्‍य और एक व्‍यवस्‍था वाले देश अपनी सुरक्षा एवं ह‍ितों के लिए एकजुट हुए थे। इस लिहाज से देखा जाए तो क्‍वाड चीन की बढ़ती आक्रमकता और विस्‍तारवादी नीति के खिलाफ एकजुट हुए हैं। क्‍वाड में शामिल प्रमुख देश कहीं न कहीं चीन की विस्‍तारवादी रणनीति से पीड़‍ित हैं। हालांकि, क्‍वाड रणनीति सहयोग के साथ एक बड़ा आर्थिक सहयोग संगठन भी है। उन्‍होंने कहा कि शीत युद्ध के बाद नाटो के औचित्‍य पर सवाल उठाए जा रहे थे। हालांकि, रूस यूक्रेन युद्ध के बाद एक बार फ‍िर नाटो सुखिर्यों में हैं। रूस की आक्रमकता को देखते हुए पश्चिमी देशों का झुकाव नाटो की बढ़ रहा है।

5- उन्‍होंने कहा कि इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि फ्रेमवर्क इस क्षेत्र को वैश्विक आर्थिक विकास का इंजन बनाने की हमारी सामूहिक इच्छाशक्ति की घोषणा है। पीएम मोदी ने इस क्षेत्र की आर्थिक चुनौतियों के लिए साझा समाधान खोजने व रचनात्मक व्यवस्था स्थापित करने की बात करते हुए यह पेशकश भी की है कि भारत एक समावेशी हिंद प्रशांत आर्थिक फ्रेमवर्क के लिए सभी के साथ काम करेगा। एक टिकाऊ सप्लाई चेन की स्थापना के लिए उन्होंने 3 टी यानी ट्रस्ट (भरोसा), ट्रांसपैरेंसी (पारदर्शिता) और टाइमलीनेस (सामयिकता) का मंत्र भी दिया। इतिहास इस बात का गवाह है कि भारत सदियों से इस क्षेत्र में कारोबारी गतिविधियों के केंद्र में रहा है।

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