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समर्पण, समरसता, सत्यता के सशक्त संपोषक थे सावरकर: गणेश दत्त पाठक - श्रीनारद मीडिया

समर्पण, समरसता, सत्यता के सशक्त संपोषक थे सावरकर: गणेश दत्त पाठक

समर्पण, समरसता, सत्यता के सशक्त संपोषक थे सावरकर: गणेश दत्त पाठक

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वीर सावरकर की जयंती पर पाठक आईएएस संस्थान पर श्रद्धासुमन किया गया अर्पित

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महान क्रांतिकारी वीर विनायक दामोदर सावरकर समर्पण, समरसता, सत्यता के सशक्त सम्पोषक थे। उनका ध्येय वाक्य था कि महान लक्ष्य के लिए किया गया कोई भी बलिदान व्यर्थ नहीं जाता। इस कथन की सत्यता को साबित करने के लिए वीर सावरकर ने ताजिंदगी ब्रिटिश हुकूमत तले अनेक कठिनाइयों को हंसते हंसते झेला। कालेपानी के कठोर कारावास को झेलने के बाद भी उनका राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव बरकरार रहा।

ब्रिटिश हुकूमत के लिए खौफ का सबब बने रहने वाले वीर सावरकर भारतीय युवाओं के लिए आज भी प्रबल ऊर्जा के प्रेरक बने हुए हैं। ये बातें शनिवार को सिवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान में वीर सावरकर को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए शिक्षाविद् गणेश दत्त पाठक ने कही। इस अवसर पर संस्थान में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करनेवाले मोहन यादव, रश्मि कुमारी, मीरा कुमारी, आकाश कुमार, विश्वास पांडेय, रोहित सिंह, अनन्या श्रीवास्तव आदि अभ्यर्थी उपस्थित रहे।

इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि वीर सावरकर सत्यता के प्रबल पक्षधर रहे थे। उनका मानना था कि वर्तमान परिस्थिति पर क्या असर पड़ेगा? इस तथ्य की चिंता किए बिना इतिहास लेखक को इतिहास लेखन करना चाहिए। समय की जानकारी को विशुद्ध और सत्य रूप में ही प्रस्तुत करना चाहिए। तभी इतिहास का विश्लेषण कर भावी पीढ़ियां एक तथ्यात्मक निष्कर्ष पर पहुंच पाएंगी।

इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि वीर सावरकर सामाजिक समरसता के सबल संपोषक थे। सावरकर अस्पृश्यता के मुखर विरोधी थे। उनका मानना था कि अस्पृश्यता हमारे देश और समाज के माथे पर एक बड़ा कलंक ही है। जब तक ये कुरीति हमारे समाज में मौजूद रहेगी हमारे असली शत्रु हमें लड़ाकर अपने हित को साधते रहेंगे।

इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियां विशेषकर रूस यूक्रेन युद्ध, अफगानिस्तान संकट हमें राष्ट्र तत्व की गंभीरता के संदर्भ में सचेत करते हैं। राष्ट्र ही हमारे अस्तित्व का आधार है। राष्ट्र ही हमारे जीवंतता का आधार है। राष्ट्र ही हमारे संचेतना का आधार है। इसलिए राष्ट्र सर्वोपरि है। वीर सावरकर का व्यक्तित्व और कृतित्व भी राष्ट्र के प्रति समर्पण और संवेदना के महत्व को ही संकेतित करता है।

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