भारत के स्टील मैन दोराबजी टाटा के पत्रकार से स्टीलमैन बनने की कहानी
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
एक पुरानी कहावत बेहद ही मशहूर रही है कि जूते में बाटा और स्टील में टाटा का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। ऐसे में ये भी जान लीजिए कि भारत में स्टील उद्योग की शुरुआत जमशेदपुर में टाटा स्टील से हुई। इसकी नींव रखने वाले टाटा ग्रुप के पहले चेयरमैन दोराबजी टाटा की 90वीं पुण्यतिथि है। 27 अगस्त 1859 को मुंबई में दोराबजी टाटा का जन्म हुआ था। वो जमशेदजी नौसरवान जी टाटा और हीराबाई के बड़े बेटे थे। दुनिया उन्हें स्टीलमैन के नाम से जानती है। देश के विकास में भी उनकी अहम भूमिका रही है। साल 1907 में दोराबजी टाटा स्टील और 1911 में टाटा पॉवर की स्थापना की थी। 1919 में उन्होंने भारत की सबसे बड़ी जनरल इंश्योरेंस कंपनी न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी बनाई। जमशेदपुर शहर को भी उन्होंने ही बसाया था। साल 1910 में उन्हें ब्रिटिश सरकार ने नाइटहुड से सम्मानित किया था।
जमशेदजी नसरवानजी टाटा के बड़े बेटे सर दोराब टाटा का जन्म 27 अगस्त, 1859 को हुआ था। बॉम्बे के प्रोपराइटरी हाई स्कूल में पढ़े और 16 साल की उम्र में उन्हें इंग्लैंड के केंट में एक निजी ट्यूटर के पास भेज दिया गया। 18 साल की उम्र में, उन्होंने कैम्ब्रिज में गोनविल और कैयस कॉलेज में पढ़ाई की। इंग्लैंड में ही सर दोराब ने खेलों के प्रति अपने प्रेम को बढ़ाया। दो साल तक वे कैम्ब्रिज में थे, उन्होंने खुद को खेल प्रतिष्ठानों में हिस्सा लिया। क्रिकेट और फुटबॉल के लिए सम्मान जीता। उन्होंने अपने कॉलेज के लिए टेनिस भी खेला,
एक विशेषज्ञ रोवर बने, कई स्प्रिंट इवेंट जीते और एक अच्छे घुड़सवार थे। सर दोराब 1879 में बॉम्बे लौट आए और सेंट जेवियर्स कॉलेज से उन्होंने 1882 में कला में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। अपने बेटे को अपने विस्तारित व्यवसाय में शामिल करने के बजाय, जमशेदजी ने उन्हें पत्रकारिता में अपने अनुभव को व्यापक बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। दोराबजी टाटा ने बॉम्बे गजट अखबार में दो साल तक बतौर पत्रकार काम किया। बाद में उन्हें पांडिचेरी में एक कपड़ा परियोजना स्थापित करने का स्वतंत्र प्रभार दिया गया।
इसके तुरंत बाद, सर दोराब को नागपुर, भारत में कंपनी की प्रमुख एम्प्रेस मिल्स की देखभाल के लिए भेजा गया। 38 साल की उम्र में, उन्होंने पूर्ववर्ती मैसूर राज्य के शिक्षा महानिरीक्षक, एचजे भाभा की बेटी सुंदर मेहरबाई भाभा से शादी की। सर दोराब की अपने पिता की दृष्टि और मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता इतनी मजबूत थी कि उन्होंने स्टील उद्यम को बचाने के लिए अपने व्यक्तिगत भाग्य को दांव पर लगा दिया।
दोराबजी टाटा जब भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष थे तो साल 1924 में हुए पेरिस ओलंपिक दल में भारतीय दल की आर्थिक मदद भी की थी। लोहे की खानों का ज्यादातर सर्वेक्षण उन्हीं के निर्देशन में हुआ। टाटा समूह के पहले चेयरमैन सर दोराबजी टाटा ने वर्ष 1931-32 में अपनी पत्नी लेडी मेहरबाई की मृत्यु के बाद लेडी टाटा मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना की थी। इस ट्रस्ट में उन्होंने अपनी सारी संपत्ति दान कर दी थी जो उस समय तीन करोड़ रुपये से अधिक थी। सर दोराबजी टाटा का तीन जून 1932 को जर्मनी के बैड किसिंजर में अंतिम सांस ली। उन्हें ब्रूकवुड क्रीमेट्री इंगलैंड में उनकी पत्नी लेडी मेहरबाई टाटा की समाधि के बगल में दफनाया गया।
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