अग्निपथ योजना के बारे में हमारे सभी युवा साथी एक बार इसे पढ़ें और समझें–अरविन्द आनंद
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पहला साल- 21,000×12= 2,52,000
दूसरा साल- 23,100×12= 2,77,200
तीसरा साल- 25,580×12= 3,06,960
चौथा साल- 28,000×12= 3,36,000
कुल मिला कर 11 लाख 72 हज़ार 160 रुपए, चार सालों में मिलेंगे उसके बाद, रिटायरमेंट पर 11 लाख 71 हज़ार।
जॉब आर्मी की है, रहना खाना, इलाज वगैरह सब फ़्री है, मतलब जो उम्र नुक्कड़ों पर चाय सिगरेट में निकल जाती है, उन 4 सालों में 23 लाख 43 हज़ार 160 रुपये कमाने का सुनहरा अवसर है।
आप 17 से 23 साल की उम्र के लड़के अग्निपथ योजना के तहत भारतीय सेना को जॉइन ज़रूर कीजिए।समझिए मोदी जी सरकारी पैसों से 4 साल आपको आर्मी की ट्रेनिंग देंगे, साथ मे इतने सारे पैसे भी, जॉब वैसे भी नहीं है, बारवीं या ग्रेड्यूशन करने के बाद सीधे अग्निपथ के रास्ते पर चले जाइए, यही आपका भविष्य है और हमारा भी।
उसके बाद 24-25 की उम्र में रिटायरमेंट के बाद, इन पैसों से कोई बिजनेस शुरू कर लीजिएगा,या नहीं तो इंडियन आर्मी की ट्रेनिंग के साथ गल्फ़ तो है ही, आर्मी का अनुशासन आपके बहुत काम आएगा। लाइफ जैसी अभी चल रही है, उससे बेहतर तय है। तो आप अग्निपथ योजना के विरोध का हिस्सा मत बनिए बल्कि ये समझिए कि, आप के लिए बल्क में, आर्मी तक नहीं पहुँचने का जो आरक्षण था अब वो ख़त्म हो चुका है।
अपना मुस्तक़बिल सुरक्षित कीजिए और सोचिए 24 के उम्र में 0 से आर्मी ट्रेनिंग के साथ कुल मिला कर 11 लाख रूपये सैलरी के रूप में मिलने वाला पूरा पैसा अगर आप ख़त्म भी कर देते हैं तो रिटायरमेंट के वक़्त मिलने वाला 11 लाख 71 हज़ार रुपिया कम नहीं है।।
देश में 50% लोग ऐसे हैं जो पूरी उम्र में इतना पैसा नहीं कमाते जो 4 साल में अग्नीपथ से आयेंगे l
और इन्ही में 25% परमानेंट किये जाएंगे चार साल की सर्विस पीरियड में यदि किसी भी जवान की मृत्यु हो जाती है तो शहीद का सम्मान मिलेगा परिवार को 48 लाख रुपये प्राप्त होंगे समय समय पर अच्छी कार्यशैली पर मेडल भी प्राप्त होंगे। वैसे भी ढाई मोर्चे में आधा मोर्चा बिना हिंदुओं के सैन्यकरण किए नहीं जीता जा सकता। इसके लिए सैनिक प्रशिक्षण अनिवार्य है। राष्ट्रभक्ति की ट्रेनिंग अनिवार्य है।
वैसे यह कोई नयी योजना तो नहीं है। हाँ, इसे आप पेड NCC कह सकते हैं। NCC में जो काम मुक्त में कराए जाते थे, अब उसके पैसे और डिग्री मिलेंगे। संभवतः 21-22 वर्ष की उम्र में लोअर मिडिल क्लास के बच्चे के हाथ में 10-12 लाख रुपया हो और उसके जीवन में अनुशासन हो, तो इससे अच्छा कांबिनेशन भला क्या हो सकता है।
अब आलोचकों ने इसकी अलग अलग प्रकार से आलोचना शुरू कर दी है, उन्होंने भी जो हर महीने यह लिखा करते थे की कास हमारे देश में भी इज़राइल जैसी व्यवस्था होती, तो ऐसे आलोचक तो गोबरैला प्रवृत्ति के होते हैं। हर समाधान में समस्या, हर इलाज में बीमारी, हर व्यवस्था में कमी खोज लेते हैं। लेकिन कुछ लोगों की चिन्ताएँ वास्तविक हैं। उन अलग अलग बातों पर विस्तार से चर्चा आवश्यक है।
इसमें सबसे पहले वह लोग हैं जो कहते हैं की कौन सी नौकरी है जिसमें 17 साल की उम्र में जान माल का ख़तरा है, जबकि वेतन केवल 40,000 है।
ख़तरा तो हर नौकरी में है। लाइनमैन हाई टेंशन बिजली की तार पर हर रोज़ देश में झुलस कर मरते हैं, न कोई सुविधा ना ही सम्मान, 6000 में नौकरी को तैयार हैं। अस्पताल की ICU में कूड़ा कचरा उठाने वाला सफ़ाई कर्मी को भी परिवार सहित प्राण का भय है पर वह करने को तैयार है। अतः इस तरह के बहाने बेकार हैं।
उससे महत्वपूर्ण बात यह है की युद्ध की परिस्थिति आने पर सेना के वो जवान जो अनुभवी हैं वह फ़र्स्ट लाइन ओफ़ डिफ़ेंस तैयार करते हैं। नए नए रंगरूट नहीं भेज दिए जाते।
इसके आगे लोगों का कहना है की भारत सरकार इनको पर्मानेंट नौकरी नहीं दे रही है। पेंशन भी नहीं है।
पहली बात तो यह है की यह अनिवार्य ट्रेनिंग नहीं है, जिसे इच्छा हो जाए, न इच्छा हो न जाय। पर्मानेंट नौकरी तो मिल ही रही है पर बेस्ट 25% को, न की सबको। इससे अच्छे अनुशासन और सीख के लिए प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी। उससे आगे की बात यह है की ये योजना नौकरी देने की योजना नहीं है। यह योजना समाज के भीतर सिविल डिफ़ेंस तैयार करने के लिए है। योजना का मुख्य उद्देश्य ही लोगों को सैनिक अभ्यास कराकर समाज में छोड़ना है न की उनको लेकर रखना है क्यूँकि ये ढाई में से आधे मोर्चे के लिए तैयार किए जा रहे हैं, बाक़ी दो मोर्चा सम्भालने के लिए पर्मानेंट सिस्टम है।
अब लोग परेशान हैं की ये लड़के जो बंदूक़ चलाना सीखकर समाज में आएँगे वह आगे क्या करेंगे? कहीं समाज में समस्या न खड़ी कर दें।
अव्वल तो समाज में अपने अनुशासन से यह व्यवस्था ही उत्पन्न करेंगे पर यदि अव्यवस्था के भय से आप अपने पक्ष में सिविल डिफ़ेंस तैयार ही नहीं करेंगे तो आपके पक्ष में लड़ेगा कौन?
स्पष्ट कहें तो वैसे ये गुंडा निकलेंगे नहीं, पर निकलें भी तो अपने अस्तित्व के लिए इन्हें सहर्ष पाल लीजिए।
अगला प्रश्न आ रहा है की इससे सेना का कल्चर बिगड़ जाएगा।
सेना कल्चर आज तक NCC से नहीं बिगड़ा तो 4 साल के लगातार ट्रेनिंग से कैसे बिगड़ जाएगा??
और यह तो एक पेड ट्रेनिंग है। जिसको सेना में जाना है वह अच्छा से अच्छा कल्चर दिखाए और ट्रेनिंग ले, उसके बाद पर्मानेंट पोस्ट पर जाओ।क़ल्चर तो तब ख़राब होगा जब सबको ढोने की मज़बूरी हो। यहाँ तो टिकेगा वहीं जो कल्चर्ड होगा, वरना वापस जाना होगा।
हम बिना क़ीमत चुकाए सिविल डिफ़ेंस तैयार नहीं कर सकते थे, पर सरकार ने खुद सरकारी क़ीमत से सिविल डिफ़ेंस तैयार करने की योजना बनाई है, जो सीधे सीधे हिंदुत्व के पुरोधा वीर सावरकरजी के विचारों का ज़मीन पर अवतरण है।
कमी हर योजना में हो सकती है, समय के साथ ठीक हो जाती है। जो गोबरैला प्रवृत्ति का सदैव नकारात्मक है, उसको छोड दीजिए, बाक़ी लोग बेवजह इस पर परेशान न हों। यह योजना सेना ने बनाई है, योग्य सलाहकारों के साथ बनाई है।
इसका स्वागत करिए॥
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