मेडिकल अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में गंभीर बीमार नवजात शिशुओं का होता है सफल इलाज
•60 प्रतिशत से अधिक बच्चे पूरी तरह स्वस्थ होकर जाते हैं घर
•बर्थ एस्फिक्सिया से होती है सर्वाधिक नवजातों की मौत
•नवजात शिशुओं के इलाज के लिए सभी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है एसएनसीयू
•इलाज के बाद भी बच्चों का 1 साल तक किया जाता है नियमित फॉलोअप
श्रीनारद मीडिया , पूर्णिया, (बिहार):
पूर्णिया जिले के मुख्यालय स्थित राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल परिसर स्थित नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (स्पेशल न्यूबॉर्न केअर यूनिट – एसएनसीयू) में गंभीर बीमारियों से ग्रसित नवजात बच्चों को विशेष उपचार से सहायता प्रदान किया जा रहा है। इससे बहुत से बच्चों के जीवन को नया आयाम मिलता है जिससे कि जन्म के बाद जीवन से हुई लड़ाई में उसे जीत हासिल होती है। इसके लिए एसएनसीयू में वह सभी सुविधा उपलब्ध है जिससे कि बच्चों के जीवन को सुरक्षित किया जा सके। यहां जन्म के बाद से हीं सांस लेने में समस्या, कम वजन, हृदय गति सही तरह से काम नहीं करने, आरडीएस, बर्थ एस्फिक्सिया जैसे कई तरह की बीमारियों से ग्रसित बच्चों को तुरंत इलाज मुहैया कराई जाती है जिससे कि बहुत से बच्चों को नया जीवन मिल रहा है। रिपोर्ट के अनुसार पूर्णिया एसएनसीयू में हर महीने लगभग 250 से अधिक बच्चों का इलाज किया जाता है। जिसमें से ज्यादातर बच्चों को नया जीवनदान मिलता है। यहां इलाज से स्वस्थ हुए बच्चों का अगले 1 वर्ष होने तक फॉलोअप भी किया जाता है जिसके लिए वार्ड में मौजूद सभी एएनएम एवं स्वास्थ्य कर्मी मुस्तैदी से लगे रहते हैं ।
60 प्रतिशत से अधिक बच्चे पूरी तरह स्वस्थ होकर जाते हैं घर :
अस्पताल प्रबंधक सिंपी कुमारी ने बताया एसएनसीयू वार्ड में हर महीने करीब 250 से अधिक बच्चे इलाज के लिए एडमिट होते हैं। इसमें से 60 प्रतिशत से अधिक बच्चों का सफलतापूर्वक इलाज हो जाता है। इसमें भी बहुत से ऐसे बच्चे होते हैं जो इलाज के बीच में ही बच्चों को लेकर बाहर दिखाने चले जाते हैं। उन्होंने बताया कि आंकड़ों के अनुसार एसएनसीयू पूर्णिया में वर्ष 2022 में मई माह तक कुल 1182 बच्चों का इलाज किया गया है जिसमें जनवरी में 236, फरवरी में 224, मार्च में 259, अप्रैल में 224 तथा मई में 239 बच्चों का इलाज किया गया है। इसमें से 706 बच्चे पूरी तरह स्वस्थ होकर घर गए हैं। विशेष स्थिति में बेहतर इलाज के लिए 248 बच्चों को ही एसएनसीयू से बाहर रेफर किया गया है जबकि इस वर्ष हुए कुल एडमिट बच्चों में से 48 बच्चों को उनके परिजनों द्वारा खुद की मर्जी (एल.ए.एम.ए.) से बाहर निकाल लिया गया है।
बर्थ एस्फिक्सिया से होती है सर्वाधिक नवजातों की मौत :
एसएनसीयू इंचार्ज जीएनएम रचना मंडल ने बताया कि सर्वाधिक नवजातों की मौत का एक प्रमुख कारण बर्थ एस्फिक्सिया होता है। जन्म का पहला घंटा नवजात के लिए महत्वपूर्ण होता है। जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी से दम घुटने से बच्चे को गंभीर स्वास्थ्य समस्या हो सकती है। गंभीर हालातों में बच्चे की जान भी जा सकती है जिसे चिकित्सकीय भाषा में बर्थ एस्फिक्सिया कहा जाता है। कुल नवजातों की मौतों में 23% मृत्यु सिर्फ बर्थ एस्फिक्सिया से हीं होती है। इसके अलावा मौत के प्रमुख कारणों में निमोनिया, समय से पूर्व जन्म, बहुत कम वजन के बच्चे का जन्म आदि है। इससे बचने के लिए लोगों को गर्भावस्था से ही नवजात शिशुओं के सेहत का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसके बाद बच्चों का जन्म लोगों को अस्पताल में ही करना चाहिए जहां योग्य व प्रशिक्षित एएनएम उपलब्ध होती हैं। इससे नवजात शिशुओं के जन्म के बाद किसी समस्या से ग्रसित होने पर पर्याप्त इलाज किया जाता है जिससे वह जल्द स्वस्थ हो सकता है।
नवजात शिशुओं के इलाज के लिए सभी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है एसएनसीयू :
एसएनसीयू के कार्यरत जीएनएम पी. वी. रमनम्मा ने बताया कि एसएनसीयू वार्ड में नवजात शिशुओं के इलाज के लिए सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध है। जरूरी मशीनें एवं इलेक्ट्रॉनिकल सभी सुविधाएं एसएनसीयू में उपलब्ध है जिसमें वार्मर, सी-पैप आदि शामिल हैं । इस वजह से आसपास के जिले से भी बच्चों को यहाँ भेजा जाता जिसका इलाज किया जाता है। इलाज के साथ नवजात शिशुओं को सभी प्रकार की दवाइयां भी यहां उपलब्ध कराई जाती है जो परिजनों को निःशुल्क प्रदान करायी जाती है। अस्पताल से स्वस्थ होकर जाते समय नवजात शिशुओं के माताओं को पोषण की जानकारी, साफ सफाई की जरूरतें इत्यादि की भी जानकारी दी जाती है जिससे कि बच्चा बिल्कुल स्वस्थ रह सके।
इलाज के बाद भी बच्चों का 1 साल तक किया जाता है नियमित फॉलोअप :
एसएनसीयू एचओडी डॉ. प्रेम प्रकाश ने बताया कि एसएनसीयू से इलाज के बाद घर गए नवजात शिशुओं को एक साल तक 6 बार फॉलोअप के लिए भी बुलाया जाता है। फॉलोअप के समय शिशु के स्वस्थ की पूरी तरह जांच की जाती है और जरूरत अनुसार उन्हें मेडिकल जांच व दवाएं उपलब्ध कराई जाती है। इस दौरान उनके माता-पिता को भी बच्चे के पूरी तरह देखभाल की जानकारी दी जाती है।
नवजात के बेहतर स्वास्थ्य का ऐसे रखें ख्याल:
• गृह प्रसव कभी नहीं कराऐं.
• दाई या स्थानीय चिकित्सकों की राय पर प्रसव पूर्व गर्भवती माता को ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन नहीं दिलाएं.
• जन्म के बाद शिशु के गर्भ नाल पर तेल या किसी भी तरल पदार्थ का इस्तेमाल नहीं करें.
• गर्भनाल को सूखा रखें.
• नवजात को गर्मी प्रदान करने के लिए कंगारू मदर केयर (केएमसी) विधि द्वारा माँ की छाती से चिपकाकर रखें.
• कमरे में शुद्ध हवा आने दें.
• 1 घंटे के भीतर स्तनपान शुरू कराऐं.
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