आखिर…..सैनिक बनते कौन हैं?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आखिर…..सैनिक बनते कौन हैं? किसी बड़े कॉर्पोरेट सेक्टर के मालिक का लड़का या किसी बड़े नौकरशाह या किसी नवरत्न, महारत्न कम्पनी के डारयेक्टर का लड़का? देश तो सबका है न? सबकी जवाबदेही है देश बचाने की, राष्ट्र-रक्षा की। फिर……सामान्य आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले हीं बच्चे सेना में क्यों जाते हैं? स्पष्टत: एक अच्छी सैलरी, कुछ सुविधाएँ, दुर्भाग्यवश वीरगति को प्राप्त होने पर …..अपने पीछे छुटे परिवार को एक सम्मानित जीवन जीने के लिए आर्थिक सुरक्षा की गारंटी।
अब इतनी तो आशा कर हीं सकता है एक सैनिक……जो पता नहीं कब किसी स्नाईपर का निशाना बन जाए…या दुश्मन द्वारा धोके से मार दिया जाए।…कितने लोगों को हेमराज याद हैं? और…क्या हुआ था कैप्टन सौरव कालिया और उनकी टीम के छ: सैनिकों के साथ। कहां हैं …वो Missing 54? कुछ याद है? सबसे दुखद यह कि …वीरगति पाए सैनिकों के परिवार के साथ …यह सिस्टम ..यह सरकार कैसे पेश आती है…सबको मालूम है। क्या होती है एक जान की कीमत?
अगर सैनिक न होते …क्या होता 1948 में? 1965 में? कारगिल ..या ..अभी हीं। आपकी सरहदों के चारों तरफ भेड़िए हैं…जो हर नैतिकता से परे…आपको खा जाने की ताक में हैं। उनसे आपको अंतत: सैनिक हीं बचाएंगे। …वहीं सैनिक जो बिल्कुल हीं सामान्य परिवार से आते हैं। न इनकी पहुंच सत्ता तक होती है…और न हीं ये व्यापारिक तिकड़म जानते हैं। इनका जज़्बा मातृभूमि की रक्षा के लिए मिट जाने तक हीं सीमित है।
इनकी सीमा को पहचान कर हीं हम राष्ट्र की सीमा सुरक्षित कर सकते हैं। सेना की ट्रेनिंग हर किसी के लिए आज नहीं तो कल अनिवार्य करना हीं पड़ेगा। नेताओं को तो अनिवार्य रूप से चार साल सैनिकों के साथ बंकर में बिताना चाहिए। कई सेक्टर में पैसे लगाकर सरकार की नीतियां अपने पक्ष में कराने वाले बिजनेस टायकुनों के बच्चों को भी वर्दी पहनकर सेना के साथ किसी ऑपरेशन में जाना चाहिए। सोच एवं संस्कार दोनों बदल जाएँगे। जब ब्रिटिश सेना अफगानिस्तान में अल्कायदा से लड़ रही थी ……
तो इंग्लैंड के राजकुमार …आम ब्रिटिश सैनिकों के साथ सेना की यहीं ट्रेनिंग लिए थे। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के भाई …टॉप क्लास के कमांडो थे।
….भारत के हर सेक्टर में अराष्ट्रीय तत्वों की घुसपैठ है …..बस सेना को छोड़कर। इसीलिए भारतीय सैनिक अजेय हैं। अराष्ट्रवादियों को इसी अजेयता से चिढ़ है। रिकॉर्ड उठाकर देख लीजिए…हर मानवीय एवं प्राकृतिक संकट के समय हमारी सेना साथ खड़ी मिलेगी। सेना को देश जितना कुछ दे, कम हीं है। बाकी ये रोड पर सर, मुंह ढककर सरकारी सम्पत्ति जलाने वालों का सर फोड़ना …अभी का राष्ट्रधर्म है।
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