Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
योग को सियासत से क्यों दूर रखा जाये? - श्रीनारद मीडिया

योग को सियासत से क्यों दूर रखा जाये?

योग को सियासत से क्यों दूर रखा जाये?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

ऋषि परंपराओं से लेकर आजतक योग शरीर को चंगा रखने का मजबूत माध्यम रहा है और आगे भी रहेगा। पर, ये देखकर दुख होता है इसे शारीरिक जरूरतों से इतर व्यावसायिक, धार्मिक और सियासत में लोग जकड़ते जा रहे हैं। कायदा तो यही बनता है कि योग पर किसी का सर्वाधिकार पेटेंट ना हो और न ही कोई इसकी ठेकेदारी करे। योग को स्वस्थ काया तक ही सीमित रखना चाहिए। उसकी आड़ में राजनीतिक जरूरतें पूरी नहीं करनी चाहिए। योग गुरू कहलाकर समूचे संसार में प्रसिद्वि पा चुके बाबा रामदेव ने निश्चित रूप से योग का प्रचार जबरदस्त तरीके से किया। इस दरम्यान उन्होंने बड़ा व्यवसाय स्थापित किया, बाजार में हजारों प्रोड्क्टस उतार दिए जिसका टर्नओवर लाखों-करोड़ों में नहीं, बल्कि कई अरबों में पहुंच चुका है।

बाबा रामदेव की कोशिशों के बदौलत ही योग को आधिकारिक मान्यता केंद्र सरकार से मिली। सरकार ने भी उनका फायदा चुनावों में जमकर उठाया, इस सच्चाई से भी इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन इससे योग विज्ञान का कुछ समय बीतने के बाद नुकसान हुआ। योग सत्ता पक्ष और विपक्ष में बंटकर भाजपा और कांग्रेस हो गया। जब पहला योग दिवस मना, तो कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने आयोजन का वॉकआउट किया। यहां तक उन्होंने खुद और अपने कार्यकर्ताओं को भी योग करने से दूर रखा। पर सत्ता पक्ष शुरू से इस दिवस को हर्षोल्लास से मनाती आई है।

बहरहाल, कोई कहे बेशक कुछ न, पर सियासत ने योग को धर्म से छोड़ने की भी कोशिशें की हैं। योगासनों में भी धर्मों की एबीसीडी खोज लीं। दूसरा, सबसे दुखद पहलू योग के साथ ये जुड़ा, योग का व्यावसायिककरण कर दिया गया। कईयों की दुकानें योग की आड़ में चल पड़ी हैं। बड़े-बड़े प्रतिष्ठान, कॉलेज, स्कूल, प्रशिक्षण केंद्र संचालित हो गए हैं, जहां योग सीखाने के नाम पर मोटा माल काटा जा रहा है। योग गुरूओं की तो फौज की खड़ी हो गई। बड़े-बड़े नेताओं ने अपने लिए पर्मानेंट एक-एक योग प्रशिक्षक हायर कर लिया। कुल मिलाकर योग को पूरी तरह से स्टेटस सिंबल बना डाला। यानी मध्यम वर्ग और गरीबों की पहुंच से बहुत दूर कर दिया।

गौरतलब है, योग विधा पांच हजार पूर्व ऋषि परंपराओं से मिली हमारे लिए अनमोल धरोहर है। ज्यादा पुराने समय की बात नहीं, सिर्फ आजादी तक का इतिहास खंगाले तो पता चलता है कि उस वक्त तक भी चिकित्सा विज्ञान ने उतनी सफलता नहीं पाई थी जिससे अचानक उत्पन्न होने वाली बिमारियों से तुरंत इलाज कराया जा सके। उस वक्त भी जड़ी-बुटियों और नियमित योगासन पर ही समूचा संसार निर्भर था। अंग्रेजी दवाओं को विस्तार कोई चालीस-पचास के दशक से जोर पकड़ा था। तब मात्र एकाध ही फार्मा कंपनियां हुआ करती थी, जो अंग्रेजी दवाईयों का निर्माण करती थीं। विस्तार अस्सी के दशक के बाद आरंभ हुआ। आज तीन से चार हजार के करीब फार्मा कंपनियां अंग्रेजी दवा बनाने में लगी हैं, बावजूद इसके योग का बोलबाला बढ़ा है।

जानकार मानते हैं कि अंग्रेजी दवाईंया तुरंत असर तो करती हैं लेकिन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कितनी कमजोर कर देती है, शायद इस सच्चाई से लोग अनभिज्ञ होते हैं। बड़ी-बड़ी फार्मा कंपनियों के मालिक भी नियमित योगासन करते हैं, क्योंकि उनको योग के फायदे अच्छे से पता होते हैं। योग को एक नहीं, बल्कि हजारों बड़ी और गंभीर बीमारियों से लड़ने का हथियार माना गया है। वक्त फिर से पलटा है। लोग धीरे-धीरे पुरानी दवा पद्धतियों की ओर लौटने लगे हैं। सालों पुरानी हेल्थ प्रॉब्लम से छुटकारा पाने के लिए मरीज योग की मदद लेने लगे हैं। अनुभवी डॉक्टर्स भी अपने पेशेंट को डेली रूटीन में योग शामिल करने की सलाह देते हैं। ऐसे कई केस सामने आए हैं, जिसमें 15-20 साल पुरानी बीमारी को खत्म करने के लिए लोगों ने पहले योग की मदद ली और 3 से 4 महीने में इसका असर भी देखा है।

बहरहाल, जरूरत इस बात की है कि योग को राजनीति और धर्म के मैदान में ना घसीटा जाए। कुछ राजनीतिक दल योग और योग को नियमित अपनाने वालों को अपना वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। कुछ लोग योग पर एक छत्र राज और अपनी ठेकेदारी जमाते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए, योग सबके लिए है और वह भी निःशुल्क। योग हमें ऋषियों-मुनियों द्वारा दी गई सौगात है, हमारी धरोहर है जिसे हमारे पूर्वज हमारे लिए छोड़कर गए हैं। इसे सजोकर रखना हम सबका परमदायित्व है। योग के फायदों से हम परिचित हैं।

योग की आड़ हमें किसी लोभ-लालच में नहीं पड़ना चाहिए। एकाध वर्ष पहले जो लोग योग करते थे, उसे भाजपा का कार्यकर्ता, रामदेव का अनुयाई या आरएसएस का शुभचिंतक समझा जाता था। लेकिन ये मिथ्या अब लोगों में टूटी है। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष सभी अपने स्वास्थ्य की परवाह करते हुए योग को अपनाते हैं। आज विश्व योग दिवस है जिसका मकसद हममें योगासन के प्रति ललक पैदा करना और दूसरों को योग के लिए जागरूकता करना है। योग स्वस्थ शरीर का मुख्य सारथी है, इसे दूर न करें, नियमित अपनाएं।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!