सीवान में प्रदूषण कचरा कुप्रबंधन का दुष्परिणाम!
समय रहते सचेत होना होगा अन्यथा भविष्य में सीवान में बढ़ता प्रदूषण प्रस्तुत करेगा बड़ी चुनौती
स्वच्छ सिवान, सुंदर सिवान आलेख श्रृंखला
✍️गणेश दत्त पाठक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सिवान। अभी कुछ दिनों पहले एक समाचार पत्र में एक इंफोग्राफिक्स प्रकाशित हुआ, जिसमें देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में सिवान चौथे स्थान पर दिखा। सिवान के बाशिंदे के तौर पर मेरे लिए यह खबर बेहद व्यथित करने वाला था तो एक पर्यावरणविद् के तौर पर झकझोरने वाला भी था। पहले तो मुझे इस तथ्य पर आश्चर्य हुआ क्योंकि सिवान में प्रदूषण का कोई मजबूत स्रोत नजर नहीं आया। लेकिन दो तीन दिनों के गंभीर मंथन के बाद सिवान में प्रदूषण के मूलभूत कारण समझ में आया और वह था कचरा कुप्रबंधन।
वाहन ज्यादा नहीं, बड़ी फैक्टरी भी नहीं, फिर भी प्रदूषण
सीवान शहर और आस पास स्थित गांवों में कोई बहुत ज्यादा वाहन दिखाई नहीं पड़ते। कोई बहुत बड़े स्तर की कोई फैक्ट्री यहां चल नहीं रही है। फिर सीवान में वायु प्रदूषण का कोई गंभीर मामला दिखाई नहीं पड़ता। इसी तरह दाहा और सरयू नदी के तट पर जल प्रदूषण के कुछ मामले दिखाई पड़ते हैं मसलन मवेशियों की मृत्यु के बाद जल स्रोतों में बहा देना। दाहा नदी में सीवान शहर के नालों को बिना किसी साफ सफाई के प्रवाहित हो जाना। सीवान शहर में और मैरवा, महाराजगंज, रघुनाथपुर, जीरादेई के कुछ इलाकों में वाहनों से जनित ध्वनि प्रदूषण के मामले दिखाई देते हैं लेकिन ये मामले इतने बड़े नहीं हो सकते कि सीवान आगरा और लखनऊ जैसे महानगरों को पीछे छोड़ देश के प्रदूषित शहरों के मामले में चौथे स्थान पर आ जाए। ऐसे में अखबार में प्रस्तुत खबर पर संशय होता है। लेकिन जब नजर सीवान के कचरा कुप्रबंधन और मृदा के निम्नीकरण पर जाती है तो सीवान के प्रदूषित होने का तथ्य स्पष्ट होने लगता है।
सीवान के लिए कचरा एक बड़ी समस्या
सीवान के भविष्य के लिए कचरा कुप्रबंधन एक बड़ी चुनौती बनने जा रहा है। सीवान शहर से प्रतिदिन निकलनेवाले कचरा के डंपिंग के लिए कोई स्थल निर्धारित नहीं किया जा सका है। सीवान शहर से निकलने कचरा को जहां तहां डंप किया जा रहा है। कहीं कहीं ये कचरा जलाया भी जाता है। सिवान शहर के अंदरूनी हिस्सों में भी कचरा को जलाने के मामले आसानी से देखे जा सकते हैं। जबकि कचरा जलाने के दौरान प्लास्टिक आदि के जलने से निकलने वाली गैसें बेहद खतरनाक होती हैं और वायु को खतरनाक स्तर तक प्रदूषित कर जाती है। जो मानव सेहत के लिए बेहद खतरनाक होती हैं।
प्लास्टिक से मृदा हो रही तबाह
साथ ही साथ कचरा को यत्र यत्र डंप करने से उसमें मौजूद प्लास्टिक और अन्य खतरनाक रसायन मृदा को खतरनाक तरीके से प्रभावित कर जाते हैं। प्लास्टिक आदि के मृदा में दबने से मृदा का प्राकृतिक स्वरूप डिस्टर्ब हो जाता हैं। सिवान में मेडिकल वेस्ट के निस्तारण की भी कोई खास व्यवस्था नहीं है।
सिवान शहर में ही यहां वहां बिखरा कचरा ड्रेनेज सिस्टम की तबाही का कारण बना हुआ है। जिससे बारिश के दिनों में सीवान शहर के कई इलाके टापू में भी तब्दील हो जाते हैं।
उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रसार से बढ़ रहा कचरा उत्सर्जन
कभी सफाईकर्मियों की हड़ताल कभी कचरा डंपिंग में लापरवाही से सिवान में कचरा कुप्रबंधन के मामले उजागर होते रहते हैं। सीवान में भी उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रसार के कारण दिन प्रतिदिन कचरा के उत्सर्जन में वृद्धि होती जा रहीं है। यहीं कचरा सिवान में प्रदूषण को बढ़ा रहा है और भविष्य में भी बड़ी समस्याओं को उत्पन्न करने वाला है। इसलिए सीवान में कचरा कुप्रबंधन की समस्या पर सार्थक चर्चा समय की दरकार है।
पॉलिथिन उन्मूलन अभियान से जगी थी आस
कुछ दिनों पहले बिहार सरकार के पॉलिथिन पर नियंत्रण की कवायद ने एक आशा की किरण दिखाई थी लेकिन वह अभियान भी शिथिल पड़ गया है। यह पॉलीथिन ही सिवान के कचरे के अधिकांश भाग का प्रतिनिधित्व करती रही है। पॉलिथिन पर नियंत्रण बिना प्रदूषण से राहत नहीं मिलने वाली है।
तबाही का सबब बन सकता है कचरा
सिवान में कचरा के प्रसार के परिणाम बेहद भयानक होने वाले है। एक तो पूरे जिले की मृदा इससे तबाह हो रहीं है वही सीवान शहर का ड्रेनेज सिस्टम भी तबाह हो रहा है। प्रदूषण का हर स्वरूप मानव स्वास्थ्य के लिए घातक ही रहता है। फेफड़ा से लेकर हृदय तक हर मानवीय अंग प्रदूषण के कहर का शिकार बनता है। मानवीय त्वचा भी प्रदूषण के कहर से कराहती नजर आती है। विशेषज्ञ कैंसर आदि बीमारियों के संदर्भ में भी प्रदूषण को ही जिम्मेदार मानते हैं। ऐसे में प्रदूषण की विनाशलीला से बचने के लिए आवश्यक है कि समय रहते कुछ सार्थक प्रयास कर लिए जाए।
कचरा प्रबंधन समय की दरकार
सीवान में प्रदूषण से निबटने के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले कचरा प्रबंधन पर ध्यान दिया जाए। निश्चित तौर पर सरकार को इस संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना है लेकिन प्रदूषण की चुनौती का सामना करने की स्थिति में आमजन की भूमिका कम महत्वपूर्ण नहीं है। प्रदूषण से निबटने के लिए 3आर के फॉर्मूले को महामंत्र माना जाता रहा है। 3आर यानी रिड्यूस, रियूज, रीसाइकल की अवधारणा को स्वीकार करना। आम जन अपने दैनिक गतिविधियों में उपभोक्ता के तौर पर कचरा निस्तारण को रिड्यूस यानी उसमें कमी ला सकते हैं। कुछ लोग अधिकांश चीजों को घर से बाहर फेंक देते हैं। उसमें से कई चीजें इस्तेमाल या रियूस लायक होती है। रीसाइक्लिंग के लिए कचरा के उचित प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
जागरूकता का प्रसार भी जरूरी
सीवान में प्रदूषण की समस्या से निबटने के लिए जागरूकता के प्रसार की विशेष आवश्यकता है। इस संदर्भ में सार्थक चर्चाओं का दौर चलना चाहिए। संवाद के माध्यम से ही हम समाधान तक पहुंच सकते हैं। इसी संदर्भ में सिवान के डॉक्टर रामेश्वर सिंह द्वारा साई अस्पताल में मंगलवार को आयोजित परिचर्चा एक बेहद सराहनीय पहल हो सकती है ।
वृक्षारोपण हर प्रदूषण का समाधान
वैसे प्रदूषण की हर बीमारी का सबसे बड़ा समाधान वृक्षारोपण ही है। यदि हम जन्मदिन, शादी के सालगिरह, जयंती, पुण्यतिथि के अवसरों पर वृक्षारोपण का काम करें तो इसके सुखद परिणाम मिल सकते हैं। साथ ही यदि विभिन्न समारोहों, उत्सवों, मांगलिक कार्यों, अन्य आयोजनों पर पौधों को ही उपहार देने की परंपरा को अपना सकें तो एक शानदार परिणाम आ सकते है। सभी संभव जगहों पर वृक्षारोपण के प्रयास किए जाएं तो यह भी बेहतर रहेगा।
देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, मौलाना मजहरुल हक और बाबू बृजकिशोर प्रसाद की धरती प्रदूषण की गिरफ्त में है। समस्या विकट है तो समाधान भी आसान है। जागरूकता का प्रसार और संवेदनशील प्रयास प्रदूषण की चुनौती का सामना करने के लिए आवश्यक है। सभी मिलजुल कर प्रयास करें और अपना बेहतर योगदान सुनिश्चित करें तो इस समस्या का समाधान भी संभव है।
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