मनुष्य अपने ही कर्मो का शुभ व अशुभ फल भोगता है :पूजा त्रिवेदी
प्राणी आनन्द में उतपन्न होते है,आनन्द में ही जीते है तथा आनन्द में ही विलय हो जाते है।
भगवान न परीक्षा का विषय है नही समीक्षा का विषय है,वे तो केवल प्रतीक्षा का विषय है।
श्रीनारद मीडिया, पंकज मिश्रा, अमनौर, सारण (बिहार):
परब्रह्म ही जगत का कारण है जो आनन्द मय है।आनन्द से ही सभी प्राणी उतपन्न होते है,आनंद में ही जीते है तथा आनन्द में ही विलय हो जाते है।मनुष्य अपने ही कर्मो का शुभ एवं अशुभ फल भोगता है,ईश्वर उसे दुःख -सुख नही देते।
उक्त प्रसंग का वाचन अमनौर ठाकुर वारी शिव मंदिर के परिसर में आयोजित अचल प्राण प्रतिष्ठान महायज्ञ के तीसरे दिन वाराणसी से आई हुई पूजा त्रिवेदी द्वारा राम कथा वाचक में कही।
उन्होंने कहा कि मानव शरीर एक मंदिर है जिसकी संरचना करके परमात्मा चेतन स्वरूप में स्वयं प्रविष्ठ हुए है।परमात्मा सभी जीव जंतुओं में वास करते है।मानव का सबसे बड़ा धर्म है वह है ।मानवता,मानव को मानव के साथ सभी जीव- जंतुओं के प्रति प्रेम व करुणा होनी चाहिए।उन्होंने सती विवाह परसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि ईश्वर को केवल अनुराग से प्राप्त किया जा सकता है।
भगवान न परीक्षा का विषय है नही समीक्षा का विषय है।वे तो भक्तों के अनुराग में बसते है।उन्होंने कहा कि माता सती का विवाह जब शिव से प्रथम बार हुआ,अपने पति के अपमान में अपने शरीर को परित्याग किया।
इसके बाद उन्होंने हिमालय के घर जाकर पार्वती के शरीर मे जन्म लिया।,,सती मरत हरि सन बरु मांगा, जन्म जन्म शिव पद अनुरागा, तेहि कारण हिमगिरि गृह जाई, जन्मी पार्वती तनु पाई।सती ने मरते समय भगवान हरि से यह वर मांगा की मेरा जन्म जन्म में शिव जी के अनुराग रहे,इस कारण उन्होंने हिमालय के घर जाकर पार्वती के शरीर मे जन्म लिया।जन्म के पश्चात वर्षो वर्ष तक शिव को अनुराग में रख कठिन तपस्या की तभी शिव पार्वती को प्राप्त हुए।
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