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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से रिटायर्ड जज और पूर्व नौकरशाहों में नाराजगी.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मो को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से मिली फटकार के बाद संगठन समेत कई अधिकारियों ने इसकी निंदा की. दरअसर सुप्रीम कोर्ट में नूपुर शर्मा के मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत (Justice Suryakant) और जस्टिस जेबी पारदीवाला (Justice JB Pardiwala) द्वारा की गई टिप्पणी के खिलाफ सेवानिवृत न्यायाधीशों और नौकरशाहों द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र सीजेआई एनवी रमना को भेजा गया है. पत्र में कहा गया है कि न्यायमूर्ति सूर्यकांत के सेवानिवृत्त होने तक के रोस्टर को वापस लिया जाए और नूपुर शर्मा मामले की सुनवाई के दौरान उनके द्वारा की गई टिप्पणियों को वापस लेने का निर्देश दिया जाए.

पत्र में इन लोगों के हस्ताक्षर

फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स एंड सोशल जस्टिस, जम्मू-कश्मीर, और लद्दाख एट जम्मू संगठन के खुले पत्र में न्यायमूर्ति सूर्यकांत के रोस्टर को तब तक वापस लेने की मांग की गई जब तक कि वह सेवानिवृत्त नहीं हो जाते और कम से कम उनके द्वारा की गई टिप्पणियों को वापस लेने का निर्देश दिया जाए. इसमें 15 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, 77 सेवानिवृत्त नौकरशाहों और 25 सेवानिवृत्त सशस्त्र बलों के अधिकारियों द्वारा हस्ताक्षरित एक खुला पत्र सीजेआई एनवी रमना को भेजा गया है.

जानिए क्या है मामला

गौरतलब है कि नूपुर शर्मा के विवादित टिप्पणी के बाद देश के कई हिस्सों में मामला दर्ज किए गए हैं. नूपुर शर्मा एफआईआर को दिल्ली ट्रांसफर करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी. सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जे बी पारदीवाला की बेंच ने नूपुर शर्मा के बयान पर टिप्पणी की थी. वहीं, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जे बी पारदीवाला की पीठ ने पैगंबर के खिलाफ टिप्पणी के लिए विभिन्न राज्यों में दर्ज प्राथमिकियों को एक साथ जोड़ने की शर्मा की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था.

सोशल मीडिया पर बेंच की जमकर हुई निंदा

नूपुर शर्मा पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद बेंच को सोशल मीडिया पर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. इस बीच जस्टिस जेबी पारदीवाला ने आलोचकों को जवाब देते हुए कहा था कि कोर्ट की आलोचना स्वीकार है, लेकिन जजों पर निजी हमले नहीं किए जाना चाहिए. वहीं पारदीवाला ने सोशल मीडिया विनियम पर जोर दिया था.

पूर्व न्यायाधीशों और नौकरशाहों के एक समूह ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणियों की मंगलवार को निंदा की. आरोप लगाया कि शीर्ष अदालत ने इस मामले में ‘लक्ष्मण रेखा’ पार कर दी. ये टिप्पणियां सबसे बड़े लोकतंत्र की न्याय प्रणाली पर ऐसा दाग हैं, जिसे मिटाया नहीं जा सकता. उन्होंने न्यायालय से टिप्पणियों को वापस लेने की मांग की.

117 लोगों ने नूपुर को फटकार लगाने वाले जज के खिलाफ की टिप्पणी

हाईकोर्टों के 15 पूर्व जजों, अखिल भारतीय सेवा के 77 पूर्व अधिकारियों और 25 अन्य लोगों के समूह ने आरोप लगाया कि ये ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ टिप्पणियां न्यायिक लोकाचार से मेल नहीं खातीं. इन्होंने देश और विदेश में लोगों को ‘हतप्रभ’ कर दिया है.

समूह ने जारी किया ये बयान

समूह ने एक बयान पर हस्ताक्षर किये, जिसमें उन्होंने कहा, ‘न्यायपालिका के इतिहास में, ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणियां नहीं देखने को मिलती हैं और सबसे बड़े लोकतंत्र की न्याय प्रणाली पर ऐसा दाग हैं, जिसे मिटाया नहीं जा सकता. इस मामले में तत्काल सुधारात्मक कदम उठाये जाने का आह्वान किया जाता है, क्योंकि इसके लोकतांत्रिक मूल्यों और देश की सुरक्षा पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं.’

हाईकोर्ट के पूर्व जजों ने किया है बयान पर हस्ताक्षर

इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में बंबई हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस क्षितिज व्यास, केरल हाईकोर्ट के पूर्व जज पीएन रवींद्रन, गुजरात हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एसएम सोनी, राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश- न्यायमूर्ति आरएस राठौर एवं न्यायमूर्ति प्रशांत अग्रवाल और दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एसएन ढींगरा शामिल हैं.

पूर्व आईएएस अधिकारी भी कोर्ट की टिप्पणी से स्तब्ध

पूर्व आईएएस अधिकारी आनंद बोस, आरएस गोपालन और एस कृष्ण कुमार, राजदूत (सेवानिवृत्त) निरंजन देसाई, पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपी वैद और बीएल वोहरा, लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) वीके चतुर्वेदी और एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) एसपी सिंह ने भी बयान पर हस्ताक्षर किये हैं.

बयान में कही गयी हैं ये बातें

बयान में कहा गया है, ‘ये टिप्पणियां न्यायिक आदेश का हिस्सा नहीं हैं और उन्हें न्यायिक औचित्य एवं निष्पक्षता के आधार पर किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता है.’ सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से निलंबित नेता नूपुर शर्मा की विवादित टिप्पणी को लेकर उन्हें एक जुलाई को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि उनकी (नूपुर की) ‘अनियंत्रित जुबान’ ने ‘पूरे देश को आग में झोंक’ दिया. न्यायालय ने यह भी कहा था कि ‘देश में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए नूपुर शर्मा अकेले जिम्मेदार हैं.’

सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर की याचिका को स्वीकार करने से किया इंकार

न्यायालय ने शर्मा की विवादित टिप्पणी को लेकर विभिन्न राज्यों में दर्ज प्राथमिकियों को एक साथ जोड़ने संबंधी उनकी याचिका स्वीकार करने से इंकार करते हुए कहा था कि उन्होंने (शर्मा ने) विवादित टिप्पणी या तो सस्ता प्रचार पाने के लिए या किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत या किसी घृणित गतिविधि के तहत की.

जजों की टिप्पणी ने लक्ष्मण रेखा पार कर दी

बयान में इन टिप्पणियों की निंदा करते हुए कहा गया है, ‘हम जिम्मेदार नागरिक के तौर पर यह मानते हैं कि किसी भी देश का लोकतंत्र तब तक ही बरकरार रहेगा, जब तक कि सभी संस्थाएं संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करती रहेंगी. सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की हालिया टिप्पणियों ने लक्ष्मण रेखा पार कर दी है और हमें एक खुला बयान जारी करने के लिए मजबूर किया है.’

देश-विदेश में लोग हतप्रभ

बयान में कहा गया कि इन ‘दुर्भाग्यपूर्ण और अप्रत्याशित’ टिप्पणियों के कारण देश और विदेश में लोग हतप्रभ हैं. इसमें कहा गया है, ‘यदि कानून के शासन एवं लोकतंत्र को बनाये रखना है और इसे आगे बढ़ाना है, तो इन टिप्पणियों को नजरअंदाज करना बहुत गंभीर है और इन्हें न्याय की परवाह करने वाले लोगों का मन शांत करने के रुख के साथ वापस लिये जाने की आवश्यकता है.’

न्याय प्रणाली तक पहुंच का नूपुर ने किया था अनुरोध

बयान में उल्लेख किया गया है कि शर्मा ने शीर्ष अदालत के समक्ष न्याय प्रणाली तक पहुंच का अनुरोध किया था. इसमें कहा गया है कि अदालत की टिप्पणियों का न्यायिक रूप से याचिका में उठाये गये मुद्दे से कोई संबंध नहीं है और इन्होंने ‘न्याय प्रदान की सभी कसौटियों का अप्रत्याशित तरीके से उल्लंघन’ किया है. इसमें कहा गया, ‘उन्हें (नूपुर को) न्यायपालिका तक पहुंच से वस्तुत: वंचित कर दिया गया था और इस प्रक्रिया में भारत के संविधान की प्रस्तावना, भावना और सार का उल्लंघन किया गया.’

कानून से जुड़े समुदाय इस टिप्पणी से आश्चर्यचकित

बयान में दावा किया गया कि इन टिप्पणियों ने ‘उदयपुर में दिन-दिहाड़े सिर कलम करने के नृशंस कृत्य’ को अप्रत्यक्ष तरीके से छूट दे दी. इसमें कहा गया, ‘कानून से जुड़े समुदाय का इस टिप्पणी पर आश्चर्यचकित होना तय है कि प्राथमिकी के कारण गिरफ्तारी होनी चाहिए. देश में बिना नोटिस दिये अन्य एजेंसियों पर इस प्रकार की टिप्पणियां वास्तव में चिंताजनक और खतरनाक हैं.’

नूपुर शर्मा की याचिका का किया गया बचाव

बयान पर हस्ताक्षर करने वालों ने शीर्ष अदालत के पहले के आदेशों का हवाला देते हुए शर्मा की सभी प्राथमिकियों को एक साथ जोड़ने की याचिका का भी बचाव किया. इसमें कहा गया, ‘यह समझ से परे है कि नूपुर शर्मा के मामले के साथ अलग व्यवहार क्यों किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट का यह रुख प्रशंसनीय नहीं है और यह इस देश की शीर्ष अदालत की शुचिता एवं गरिमा को प्रभावित करता है.’

भारतीय संविधान के सार और भावना को नष्ट करती हैं न्यायिक टिप्पणियां

बयान में कहा गया, ‘जो मामले अदालत के समक्ष लंबित नहीं हैं, उन पर इस प्रकार की न्यायिक टिप्पणियां भारतीय संविधान के सार और भावना को नष्ट करती हैं. याचिकाकर्ता को इस तरह की निंदात्मक टिप्पणियों से मजबूर करना, उसे बिना मुकदमे के दोषी घोषित करना और याचिका में उठाये गये मुद्दे को लेकर उसे न्याय तक पहुंच से वंचित करना कभी लोकतांत्रिक समाज का हिस्सा नहीं हो सकता.’

कोर्ट ने की थी दिल्ली पुलिस की खिंचाई

टेलीविजन पर प्रसारित एक बहस के दौरान शर्मा की विवादित टिप्पणी के विरोध में देश भर में प्रदर्शन हुए थे और कई खाड़ी देशों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी. भाजपा ने बाद में नूपुर शर्मा को पार्टी से निलंबित कर दिया था. न्यायालाय ने नूपुर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने वाली दिल्ली पुलिस की खिंचाई करते हुए कहा था, ‘अभी तक की जांच में क्या हुआ है? दिल्ली पुलिस ने अब तक क्या किया है? हमारा मुंह न खुलवाएं? उन्होंने आपके लिए लाल कालीन बिछाया होगा.’

टिप्पणी को ‘अवांछित’ घोषित किया जाये

इसके बाद, प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण के समक्ष एक जुलाई को दायर एक पत्र याचिका में नूपुर शर्मा के खिलाफ न्यायालय की पीठ द्वारा की गयी प्रतिकूल टिप्पणी को वापस लेने का आग्रह किया गया था. टिप्पणी वापस लेने संबंधी पत्र याचिका दिल्ली निवासी अजय गौतम द्वारा दायर की गयी, जो स्वयं को सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं. पत्र याचिका में कहा गया कि इसे जनहित याचिका के तौर पर देखा जाये और सुनवाई के दौरान की गयी टिप्पणियों को ‘अवांछित’ घोषित किया जाये.

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