108 फीट ऊंचे नए संसद भवन पर 150 टुकड़ों में बांटकर स्तंभ लगाने में लगे 2 महीने.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
ब्रॉन्ज से बना 6.5 मीटर लंबा, 9500 किलो वजनी, 6500 किलो का सपोर्टिंग स्ट्रक्चर। ये खासियतें हैं नए संसद भवन के शीर्ष पर लगे अशोक स्तंभ यानी राष्ट्रीय प्रतीक की, जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 जुलाई को उद्घाटन किया। 1200 करोड़ रुपए में बन रहे नए संसद भवन का निर्माण इस साल के अंत या 2023 की शुरुआत में पूरा होने की उम्मीद है।
8 स्टेज से गुजरा है नए संसद भवन पर लगा अशोक स्तंभ
1. नए संसद भवन की छत पर बना अशोक स्तंभ यानी राष्ट्रीय प्रतीक ब्रॉन्ज से बना है, जिसका वजन 9500 किलो है और उसकी लंबाई 6.5 मीटर है।
2. इसके चारों ओर स्टील का एक सपोर्टिंग स्ट्रक्चर बनाया गया है, जिसका वजन करीब 6500 किलोग्राम है।
3. इस अशोक स्तंभ के कॉन्सेप्ट और इसे नए संसद भवन की छत पर लगाने तक की प्रक्रिया आठ स्टेज से गुजरी है।
4. इस प्रोसेस में क्ले मॉडलिंग और कंप्यूटर ग्राफिक्स से लेकर ब्रॉन्ज की ढलाई और इसकी पॉलिशिंग तक के प्रोसेस शामिल हैं।
5. सबसे पहले, इस प्रोजेक्ट में शामिल आर्किटेक्ट्स और ग्राफिक डिजाइनरों ने एक कंप्यूटर ग्राफिक स्केच तैयार किया था। इसके बाद ग्राफिक स्केच के आधार पर एक क्ले मॉडल बनाया।
6. केंद्रीय लोक निर्माण विभाग यानी CPWD की सलाह पर ब्रॉन्ज मेटल से बने राष्ट्रीय प्रतीक का शुरुआती कॉन्सेप्ट डिजाइन अहमदाबाद के हसमुख सी पटेल ने तैयार किया था।
7. इसके बाद टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड और औरंगाबाद के सुनील देवरे ने क्ले और थर्मोकोल मॉडल तैयार किए।
8. इस अशोक स्तंभ के बनाने के बाकी प्रोसेस को जयपुर और दिल्ली में लक्ष्मण व्यास की अगुआई में विशेषज्ञ कारीगरों ने पूरा किया।
9. इस अशोक स्तंभ को बनाने में 100 से ज्यादा कारीगरों ने 9 महीने से ज्यादा समय तक काम किया।
10. इस प्रतीक को नए संसद भवन की छत पर ले जाना बेहद चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि ये जमीन से 33 मीटर यानी करीब 108 फीट ऊंचा है। इसके लिए प्रतीक को 150 टुकड़ों में बांटा गया था और फिर इसे छत पर असेंबल किया गया। इसके 150 टुकड़ों को असेंबल करने में ही करीब दो महीने लग गए।
11. इस प्रतीक को उच्च गुणवत्ता वाले कांस्य यानी ब्रॉन्ज से बनाया गया है। इसे भारतीय कारीगरों द्वारा पूरी तरह हाथ से बनाया गया है।
12. रिपोर्ट्स के मुताबिक, मटेरियल और शिल्प कौशल के लिहाज से भारत में कहीं और अशोक स्तंभ का इस तरह चित्रण नहीं किया गया है
13. ये मॉडल अशोक स्तंभ का प्रतिरूप है। दरअसल, अशोक स्तंभ या अशोक चिह्न ही भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है। इसे सारनाथ स्थित ‘अशोक की लाट’ या ‘लॉयन कैपिटल ऑफ अशोक’ से लिया गया है।
14. भारत के राष्ट्रीय प्रतीक को 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया था, उसी दिन देश का संविधान लागू हुआ था।
चलिए जानते हैं कि विपक्ष इसे लेकर सवाल क्यों उठा रहा है…
विपक्ष ने नए संसद भवन की छत पर लगे राष्ट्रीय प्रतीक में शेर बदलने का आरोप लगाया है। आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने एक ट्वीट को शेयर करते हुए सवाल उठाया कि मैं 130 करोड़ भारतवासियों से पूछना चाहता हूं कि राष्ट्रीय प्रतीक बदलने वालों को राष्ट्र विरोधी बोलना चाहिए कि नहीं बोलना चाहिए।
तृणमूल कांग्रेस के सांसदों जवाहर सरकार और महुआ मोइत्रा ने नए संसद भवन के शीर्ष पर लगाए गए अशोक स्तंभ के शेरों को उचित ढंग से नहीं दिखाने को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा है। सरकार और मोइत्रा का आरोप है कि इस अशोक स्तंभ के शेरों को ‘आक्रामक’ और ‘बेडौल’ तरीके से दिखाया गया है।
राज्यसभा सांसद सरकार ने ट्विटर पर लिखा, “हमारे राष्ट्रीय प्रतीक, राजसी अशोक शेरों का अपमान। असली बाईं ओर है, सुंदर, वास्तविक रूप से आत्मविश्वासी। दाईं ओर वाला मोदी का वर्जन है, जिसे नए संसद भवन के ऊपर लगाया गया है – झुंझलाहट, अनावश्यक रूप से आक्रामक और बेडौल। शर्म करो! इसे तुरंत बदलो!”
इसके साथ ही सोशल मीडिया पर नए संसद भवन पर लगे अशोक स्तंभ को लेकर बहस छिड़ गई है। कई लोग ट्वीट कर राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ के सारनाथ म्यूजिम वाले मूल स्वरूप और अब नए संसद भवन में लगे अशोक स्तंभ के अंतर की तस्वीरें शेयर कर रहे हैं।
अब अशोक स्तंभ की ऐतिहासिकता को जानिए
सारनाथ में अशोक स्तंभ बनने की कहानी भी काफी रोचक है। 273 ईसा पूर्व में भारत में मौर्य वंश के तीसरे राजा सम्राट अशोक का शासन था। शुरुआत में सम्राट अशोक काफी क्रूर शासक माने जाते थे, लेकिन कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार ने उन्हें पूरी तरह से बदल दिया।
इसका असर यह हुआ कि उन्होंने राजपाट त्याग दिया और बौद्ध धर्म अपना लिया। यहीं से अशोक स्तंभ बनने की शुरुआत होती है। सम्राट अशोक बौद्ध धर्म अपनाने के बाद उसके प्रचार में जुट गए। 3 वर्षों के बीच उन्होंने 84,000 स्तूपों का निर्माण करवाया था। जिनमें सारनाथ का अशोक स्तंभ भी शामिल है। इसे 250 ईसा पूर्व बनवाया गया था।
यही अशोक स्तंभ आजादी के बाद भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया है।
अशोक स्तंभ में 4 शेरों के इस्तेमाल की कहानी जानिए
अशोक स्तंभ में शेरों को शामिल करने के पीछे की कहानी रोचक है। भगवान बुद्ध को सिंह का पर्याय माना जाता है। बुद्ध के सौ नामों में से शाक्य सिंह, नर सिंह नाम का उल्लेख मिलता है। इसके अलावा सारनाथ में दिए भगवान बुद्ध के धर्म उपदेश को सिंह गर्जना भी कहते हैं, इसलिए बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए शेरों की आकृति को महत्त्व दिया गया।
भारत के राष्ट्रीय प्रतीक को सम्राट अशोक की राजधानी सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ से लिया गया है। अशोक स्तंभ में शीर्ष पर 4 एशियाई शेर बने हैं, जो एक-दूसरे की ओर पीठ किए हुए हैं। ये चारों शेर शक्ति, साहस, विश्वास और गर्व को दर्शाते हैं।
राष्ट्रीय प्रतीक में भले ही 4 शेर हैं, लेकिन गोलाकार आकृति हाेने के चलते हर एंगल से देखने पर सिर्फ 3 ही दिखाई देते हैं। इसके अलावा स्तंभ पर घोड़े, बैल, हाथी और शेर की भी फोटो है। एक ही पत्थर को काट कर बनाए गए इस शेर स्तंभ के ऊपर धर्मचक्र रखा हुआ है।
सभी अशोक स्तंभों को चुनार और मथुरा के पत्थर का उपयोग करके उसी क्षेत्र के शिल्पकारों द्वारा तराशा गया था। राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे मुण्डकोपनिषद का सूत्र ‘सत्यमेव जयते’ देवनागरी लिपि में लिखा हुआ है।
अशोक स्तंभ के इस्तेमाल से जुड़े कानूनी पहलू को जान लेते हैं…
राष्ट्रीय प्रतीक भारत के राष्ट्रपति और केंद्र व राज्य सरकारों की आधिकारिक मुहर है और भारत सरकार के आधिकारिक लेटरहेड का एक अनिवार्य हिस्सा है।
राष्ट्रीय प्रतीक सभी भारतीय करेंसी और पासपोर्ट का एक हिस्सा है। भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी यानी IPS की कैप पर राष्ट्रीय प्रतीक होता है।
राष्ट्रीय प्रतीक का उपयोग स्टेट एम्ब्लेम ऑफ इंडिया एक्ट 2005 के तहत प्रतिबंधित हैं। इसके तहत निजी व्यक्ति या संगठन कॉरेस्पॉन्डेंस यानी पत्र-व्यवहार के लिए इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते।
किन सरकारी इमारतों में हो सकता है इस्तेमाल
राष्ट्रपति भवन
संसद भवन
सुप्रीम कोर्ट
केंद्रीय सचिवालय बिल्डिंग
राजभवन
हाईकोर्ट
राज्य सचिवालय बिल्डिंग
भारतीय दूतावास