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नई संसद के नए ‘मुकुट’ पर इतना विलाप क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अशोक स्तंभ अब देश के नए संसद भवन और भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती का भी प्रतीक चिन्ह बन गया। विपक्ष इसे लेकर बहुत सारे सवाल उठा रहा है। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी इसे सीधे तौर पर सांवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन बता रहे हैं।

देश की नई संसद का नया मुकुट और लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर का सबसे बड़ा प्रतीक चिन्ह। यानी भारत का विशाल और गौरवशाली राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ देश की नई संसद की पहचान बन गया है। अशोक स्तंभ अब देश के नए संसद भवन और भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती का भी प्रतीक चिन्ह बन गया। विपक्ष इसे लेकर बहुत सारे सवाल उठा रहा है।

एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी इसे सीधे तौर पर सांवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन बता रहे हैं। ओवैसी के अपने सवाल हैं तो कांग्रेस ने कार्यक्रम में न बुलाए जाने पर नाराज रिश्तेदार की तरह मुंह फुला लिया है। दूसरी तरफ लेफ्ट पार्टियों ने इसमें धर्म वाला एंगल जोड़कर अपनी शिकायत दर्ज करा दी। देश की नई संसद की नई संसद का नया मुकुट मोदी विरोध के विलाप की वजह बन गया। ऐसें में आज आपको देश की नई संसद के अशोक स्तंभ और विपक्ष की आपत्तियों के साथ ही ये भी बताते हैं कि भारत के राजचिह्न अशोक स्तंभ के मायने, इसका इतिहास क्या है और इसे क्यों इतनी मान्यता दी जाती है। अशोक स्तंभ का इतिहास 

268 ईसा पूर्व से लेकर 232 ईसा पूर्व तक अखंड भारत पर 36 वर्ष शासन करने वाले महान सम्राट अशोक को भला कौन नहीं जानता। सम्राट अशोक ने भारत के विभिन्न हिस्सों में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए स्तंभों का निर्माण कराया और बुद्ध के उपदेशों को इन स्तंभों पर शिलालेख के रूप में उत्कृत कराया। अशोक स्तंभ भी इन्हीं में से एक है जिसका निराण 250 ईसा पूर्व सम्राट अशोक की राजधानी सारणनाथ में हुआ था। इस स्तंभ के शीर्ष पर चार शेर बैठे हैं और सभी की पीठ एक दूसरे से लगी है। कई लोगों के मन में सवाल उत्पन्न होंगे कि आखिर शेर ही क्यों? दरअसल, इसके पीछे की कई वजहें हैं। भगवान बुद्ध को सिंह का पर्याय माना जाता है। बुद्ध के सौ नामों में शाक्य सिंह, नर सिंह नाम भी हैं। इसके अलावा सारनाथ में भगवान बुद्ध ने जो धर्म उपदेश दिया था, उसे सिंह गर्जना के नाम से जाना जाता है। इसी कारण बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए शेरों की आकृति को महत्व दिया जाता है।

26 जनवरी 1950 को  राष्ट्रीय चिह्न के रूप में अपनाया गया

भारत को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली। लेकिन भारत का संविधान 26 जनवरी 1949 को ग्रहण किया गया। जबकि इसे इसे 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया। इसी खास दिन को भारत सरकार ने संवैधानिक रूप से राष्ट्रीय चिह्न के रूप में अशोक स्तंभ को भी अपना लिया।  जब देश का संविधान लागू हुआ था। इसके नीचे देवनागरी लिपि में ‘सत्यमेव जयते’ भी लिखा होता है, जिसका अर्थ है – सत्य की ही जीत होती है।

 अशोक चक्र की 24 तीलियां

अशोक स्तंभ में चारों शेरों के नीचे अशोक चक्र नजर आता है। इसे भारत के तिरंगे झंडे में भी देखा जाता है। तिरंगे में अशोक च्क्र में 24 तिलियां होती हैं। ये बौद्ध धर्मचक्र का चित्रण या यूं कहें कि धम्म चक्र परिवर्तन का चित्रण हैं। इस चक्र में मौजूद 24 तिलियां इंसान के 24 गुणों को दर्शाती हैं।

लायन कैपिटल

पूरे अशोक स्तंभ को कमल के फूल की आकृति के ऊपर बनाया गया है। इसमें बनाए गए बड़े स्तंभ को लायन कैपिटल कहा जाता है। बता दें कि तीसरी शताब्दी में इसका निर्माण भारत के महान शासक अशोक द्वारा करवाया गया था।

चार शेर, लेकिन सामने से दिखते केवल तीन

इस स्तंभ में चार शेर हैं। हालांकि सामने से केवल इसमें 3 ही शेर दिखाई देते हैं। क्योंकि एक शेर की आकृति पीछे की तरफ छिप जाती है। ये चार शेर शक्ति, साहत, आत्मविश्वास और गौरव के प्रतीक हैं।

घोड़ा और बैल की भी आकृति 

इस स्तंभ में घोड़ा और बैल की भी आकृति आपको दिखाई पड़ती है। घोड़े और बैल के बीच एक पहिया की आकृति को भी देखा जा सकता है। स्तंभ की पूर्व दिशा की ओर हाथी, पश्चिम की ओर बैल, दक्षिण की ओर घोड़ा और उत्तर की ओर शेर दिखाई पड़ते हैं जिन्हें पहियों के माध्यम से अलग होते दिखाया गया है।

आदर्श वाक्य

अशोक स्तंभ के निचले भाग पर भारतीय परंपरा का सर्वोच्च वाक्य यानी आदर्श वाक्य सत्यमेव जयते लिखा गया है। इसका मतलब है सत्य की विजय। बता दें कि इसे मुण्डका उपनिषद से लिया गया है।

पीएम मोदी ने किया राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ का आनावरण 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते दिन नए संसद भवन की बिल्डिंग की छत पर कांस्य के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ का आनावरण किया। संसद भवन की छत पर बने कांस्य के राष्ट्रीय प्रतीक की लंबाई 6.5 मीटर है। इसका वजन 9 हजार 500 किलोग्राम का बताया जा रहा है जो कांस्य से बनाया गया है। इसके सपोर्ट के लिए करीब 6500 किलो वजन के एक स्टील की सहायक संरचना का भी निर्माण करवाया गया है। बताया जा रहा है कि नए संसद भवन की छत पर लगने वाले अशोक स्तंभ चिन्ह को आठ चरणों की प्रक्रिया के बाद तैयार किया गया है।

किसी को पूजा करने से दिक्कत, किसी ने स्वरूप बदलने का लगाया आरोप

राष्ट्रीय जनता दल ने ट्वीट करते हुए लिखा कि मूल कृति के चेहरे पर सौम्यता का भाव तथा अमृत काल में बनी मूल कृति की नक़ल के चेहरे पर इंसान, पुरखों और देश का सबकुछ निगल जाने की आदमखोर प्रवृति का भाव मौजूद है। हर प्रतीक चिन्ह इंसान की आंतरिक सोच को प्रदर्शित करता है। इंसान प्रतीकों से आमजन को दर्शाता है कि उसकी फितरत क्या है। वरिष्ठ वकील और कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने ट्वीट कर लिखा है कि, ‘गांधी से लेकर गोडसे तक, हमारे राष्ट्रीय प्रतीक, जिसमें शेर के शान के साथ शांति से बैठे हैं; से लेकर, सेंट्रल विस्टा में निर्माणाधीन नए संसद भवन के शीर्ष के लिए अनावरण किए गए नए राष्ट्रीय प्रतीक तक; जिसमें दांत दिखाते गुस्सैल शेर हैं।

ये है मोदी का नया भारत!’ देवी काली पर अपनी हालिया टिप्पणी के लिए आलोचनाओं का सामना कर रही तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी बिना कुछ लिखे राष्ट्रीय प्रतीक की दो विषम तस्वीरें साझा कीं। आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने ने एक ट्वीट को शेयर करते हुए सवाल उठाया कि मैं 130 करोड़ भारतवासियों से पूछना चाहता हूँ राष्ट्रीय चिन्ह बदलने वालों को “राष्ट्र विरोधी”बोलना चाहिये की नही बोलना चाहिये। सीपीएम की तरफ से भी इस पूरे विवाद पर एक ट्वीट किया गया। उनके मुताबिक पीएम ने अनावरण के दौरान पूजा-पाठ किया, जो ठीक नहीं था।

विपक्ष के आपत्ति की वजह? 

जैसे ही पीएम मोदी ने विशाल अशोक स्तंभ का अनावरण किया उसी पल विपक्ष को ये तस्वीरें कांटे की तरह चुभ गईं। विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उद्घाटन की आलोचना करते हुए कहा कि यह संविधान का “उल्लंघन” है जिसमें कार्यपालिका और विधायिका के बीच सत्ता के विभाजन की परिकल्पना की गई है। विपक्ष का आरोप है कि राष्ट्रीय चिह्न को जस का तस ही उतारा जाना चाहिए, बिलकुल उसी तरह जैसा कि संविधान ने उसे मान्यता दी है। राष्ट्रीय चिह्न के स्वरूप, हावभाव और उसके अनुपात में कोई भी परिवर्तन, उसका विकृतिकरण करना हुआ, और, राष्ट्रीय चिह्न का विकृतिकरण, एक दंडनीय अपराध भी है।

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