सावन माह में करें यह उपाय, आपके जीवन में धन एवं ऐश्वर्य की होगी प्राप्ति
सावन मास शिव का है, उनको प्रसन्न करने के लिए करें रूद्राभिषेक
रूद्राभिषेक में शिव वास की होती है महत्व
किस वस्तु से रूद्राभिषेक करने से क्या मिलता है फल
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
सनातन धर्म में कहा गया है कि अषाढ़ शुक्ल पक्ष एकदाशी यानी हरिसायनी एकादशी को भगवान विष्णु शयन करने चले जाते हैं और सृष्टि का देख रेख भगवान शिव करने लगते हैं। इसलिए सावन मास से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष देवठन एकादशी को भगवान विष्णु सृष्टि का देख रेख स्वयं करने लगते हैं। इसी लिए सावन मास का अधिपति शिव को कहा गया है।
आइये जानते हैं क्या है रूद्राभिषेक
रुद्र अर्थात भूतभावन शिव का अभिषेक। शिव और रुद्र परस्पर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही ‘रुद्र’ कहा जाता है, क्योंकि रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानी कि भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं।
हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।
रुद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका अर्थात सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रुद्र की आत्मा हैं। हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है। साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं। किसी खास मनोरथ की पूर्ति के लिए तदनुसार पूजन सामग्री तथा विधि से रुद्राभिषेक किया जाता है!
शिव वास का पता कैसे लगाये
ऐसे अनुष्ठान जिन्हें स्वीकारना भगवान शिव की भक्ति विवशता होती है उनमें शिव वासदेखा जाना अनिवार्य होता है.
रुद्राभिषेक, शिवार्चन, महामृत्युंजय अनुष्ठान सहित शिव जी के कई अनुष्ठान अचूक होते हैं.
उनकी प्रार्थनायें और उर्जायें भगवान शिव तक पहुंचती ही हैं. इनके लिये पहले से पता करलें कि शिव जी उस समय क्या कर रहे हैं.
कहा जाता है भोलेनाथ अपने भक्तों की भक्ति से विवश होकर हर समय उनकी प्रार्थनायें पूरी करने में जुटे रहते थे. जिससे ब्रह्मांड के कामकाज प्रभावित होने लगे.
इसे ऐसे समझें जैसे कोई प्राइम मिनिस्टर हर दिन 24 घंटे जनसमस्यायें ही सुनता रहे तो राज काज नही चल सकता. उसके लिये भी समय देना जरूरी होता है.
देवताओं के समक्ष बड़े संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई. साथ ही शिव जी के परिवार के लोग उनका साथ पाने को तरसने लगे.
तब भगवान विष्णु ने शिव वास का नियम बनाया. ताकि भोलेनाथ को भक्तों की पुकार सुनने के साथ ही संसार का संचालन करने का भी समय मिल सके. साथ ही वे कुछ समय अपने परिवार को भी दे सकें.
शिव वास से पता चलता है कि उस समय भगवान शिव क्या कर रहे हैं. उनसे प्रार्थना का कौन सा समय उचित है.
नारद ऋषि द्वारा रचित शिव वास देखने का फार्मूला समझ लें. उसके अनुसार शिव वास का विचार करें.
जिस दिन रुद्राभिषेक या कोई भी विशेष शिव साधना करनी हो उस दिन की तिथि को 2 गुना कर दें. उसमें 5 जोड़ दें. उसके टोटल को 7 से डिवाइड करें.
उससे प्राप्त शेष शिव वास बताता है.
शेष 1,2,3 बचे तो शिव वास अनुकूल है. उसमें रुद्राभिषेक या शिव का कोई भी विशेष अनुष्ठान कर सकते हैं. शेष में 0, 4, 5, 6 बचे तो शिव वास प्रतिकूल है. उसमें रुद्राभिषेक या महामृत्युंजय प्रयोग या विषेश शिव अनुष्ठान न करें.
1 शेष आने का मतलब है भगवान शिव माता गौरी के साथ भक्तों के कल्याण का काम कररहे हैं. इस समय की गई शिव साधना सुख समृद्धि जरूर देती है.
2 भगवान कैलाश पर विराजमान होकर आनंद में होते हैं. इस समय की गई शिव साधनासे परिवार में हर तरह के सुख स्थापित होते हैं.
3 शेष आने का मतलब है भगवान शिव माता पार्वती के साथ नंदी पर सवार होकर लोगों का दुख दूर करने निकले हैं. इस समय की गई शिव साधना से मनोकामनायें जरूर जरूर होती हैं.
0 शेष आने का मतलब है भगवान शमशान में विराजमान हैं. इस समय की विशेष शिवसाधना मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट देने वाली बताई गई है.
4 शेष आने का मतलब है महादेव दूसरे देवी देवताओं की समस्या सुन रहे हैं. इस समयकी विशेष शिव साधना दुख पैदा करने वाली बताई गई है.
5 शेष आने का मतलब है शिवशंकर माता पार्वती के साथ एकांत वास में हैं. इस समय की विशेष शिव साधना संतान को पीड़ित करने वाली बताई गई है.
6 शेष आने का मतलब है भगवान शिव भोजन ग्रहण कर रहे हैं. इस समय की विशेषशिव साधना रोग पैदा करने वाली बताई गई है.
तिथि की गणना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक 1 से 30 तक करें
किस पक्ष में किस तिथि को शिव वास नहीं होता हैः-
कृष्ण पक्ष – 2, 3, 4, 6, 7, 9, 10, 13 तिथि को षिववास नहीं होता है
शुक्ल पक्ष – 1, 3, 4, 7, 8, 10, 11 ,14, 15 तिथि को षिववास नहीं होता है।
किस वस्तु से रूद्राभिषेक करने से क्या फल मिलता है
जल – जल से सामुहिक रूद्राभिषेक करने से गांव में बारिस होती है।
कुश मिश्रित जल – रोग और दुखों से मुक्ति के लिए कुषा मिश्रित जल से रूद्राभिषेक करना चाहिए।
दही – घर बनवाने, वाहन की प्राप्ति के लिए दही से रूद्राभिषेक करना चाहिए।
गन्ने की रस – भाग्य साथ देने के लिए, लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए, प्रसन्नता के लिए गन्ने की रस से रूद्राभिषेक करना चाहिए!
तीर्थों का जल या गंगा जल – मोक्ष की प्राप्ति के लिए, लंबी बुखार से मुक्ति के लिए तीर्थों के जल या गंगा जल से रूद्राभिषेक करना चाहिए।
दूध – संतान, पुत्र प्राप्ति, प्रत्येक मनोकानाओं की प्राप्ति के लिए, क्लेष दूर करने के लिए दूध से रूद्राभिषेक करना चाहिए।
दूध मिश्री या शर्करा – अधिक बुद्धि, सदबुद्धि के लिए, नौकरी की तैयारी करने वालों को दूध में मिश्री या शर्करा मिलाकर रूद्राभिषेक करना चाहिए।
गाय के घी – संतान प्राप्ति के लिए गाय के घी से रूद्राभिषेक करना चाहिए।
पंचामृत – अधिक धन प्राप्त करने के लिए पंचामृत से रूद्राभिषेक करना चाहिए
(पंचामृत बनाने की माप क्या हो दूध से आधा दही, दही से आधा शक्कर, शक्कर से आधा घी और घी से आधा मधु लेनी चाहिए जैसे दूध 200 ग्राम तो दही 100 ग्राम, शक्कर 50 ग्राम, घी 25 ग्राम और मधु 12 ग्राम)
शुद्ध शहद – असाध्या बीमारी से मुक्ति के लिए शुद्ध शहद से रूद्राभिषेक करना चाहिए।
सरसो तेल – शत्रुओं के नाष /रोगों के नाष के लिए सरसो तेल से रूद्राभिषेक करना चाहिए।
इत्र – दाम्पत्य जीवन में प्रेम की वृद्धि के लिए इत्र से रूद्राभिषेक करना चाहिए।
इत्र मिश्रित जल – रोगों के नाष के लिए इत्र मिश्रित जल से रूद्राभिषेक करनी चाहिए।
भांग मिश्रित दूध – मनोकामना पूर्ति के लिए , नौकरी प्राप्ती के लिए भांग मिश्रित दूध से रूद्राभिषेक करना चाहिए।
घी, शक्कर मिश्रित दूध – संतान और लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए दूध में घी और शक्कर मिलाकर रूद्राभिषेक करना चाहिए।
जल में मधु – लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए जल में मधु मिलाकर रूद्राभिषेक करना चाहिए।
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