सर्वदलीय बैठक में विपक्षी दलों ने महंगाई और अग्निपथ योजना पर चर्चा की मांग की

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला संसद का मानसून सत्र शुरू होने से दो दिन पहले शनिवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई. जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने हिस्सा लिया. सभी दलों के नेताओं ने लोकसभा अध्यक्ष को आश्वस्त किया है कि हम सदन कि कार्यवाही में सहयोग करेंगे.

बैठक के बाद क्या बोले लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला

सर्वदलीय बैठक के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा, सभी दलों के नेताओं ने आश्वस्त किया है कि हम सदन कि कार्यवाही में सहयोग करेंगे. उन्होंने आगे बताया, संसद का मानसून सत्र 18 जुलाई से प्रारंभ होकर 12 अगस्त तक चलेगा. सत्र के संबंध में आज सभी दल के नेताओं से विचार विमर्श हुआ. मैंने सभी दलों के नेताओं से आग्रह किया है कि देश के हित में महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करें. सदन बिना हस्तक्षेप के मर्यादा के साथ चले.

सूत्रों के हवाले से खबर है कि लोकसभा अध्यक्ष द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में विपक्षी दलों के नेताओं ने महंगाई, अग्निपथ योजना और डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट पर चर्चा की मांग उठाई.

इन मुद्दों पर भी चर्चा की गयी

सर्वदलीय बैठक में सत्र के दौरान किन मुद्दों को उठाया जाएगा और विभिन्न विधेयकों पर चर्चा के लिए कितना समय दिया जाएगा इन विषयों के बारे में भी चर्चा की गयी.

मानसूत्र सत्र में पेश किये जायेंगे दो दर्जन विधेयक

संसद के 18 जुलाई से शुरू होने वाले मानसून सत्र के दौरान सरकार लोकसभा में चर्चा एवं पारित करने के लिये दो दर्जन नये विधेयक पेश करेगी. इसमें वन संरक्षण संशोधन विधेयक, ऊर्जा संरक्षण संशोधन विधेयक, परिवार अदालत संशोधन विधेयक, राष्ट्रीय रेल परिवहन संस्थान को गतिशक्ति विश्वविद्यालय में परिवर्तित करने संबंधी विधेयक शामिल हैं.

ये विधेयक भी किये जायेंगे पेश

सत्र के दौरान भारतीय अंटार्कटिक विधेयक 2022 फिर से पेश किया जायेगा. पहले, इस विधेयक को एक अप्रैल 2022 को पेश किया गया था. सत्र के दौरान माता पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण एवं कल्याण संशोधन विधेयक, सहकारी समिति संशोधन विधेयक, नेशनल डेंटल कमीशन विधेयक, भारतीय प्रबंध संस्थान संशोधन विधेयक 2022 पेश किया जायेगा. इस सत्र के दौरान केंद्रीय विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक 2022 भी पेश किया जायेगा जिसके माध्यम से राष्ट्रीय रेल परिवहन संस्थान को गतिशक्ति विश्वविद्यालय में परिवर्तित करने का प्रस्ताव है.

असंसदीय शब्दों की सूची के संकलन में आम बोलचाल के कुछ शब्दों को शामिल किए जाने को लेकर पैदा हुए विवाद के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने गुरुवार को कहा कोई भी शब्द प्रतिबंधित नहीं है, निकाले गए शब्दों का संकलन जारी है. उन्होंने कहा, जिन शब्दों को हटा दिया गया है, वे विपक्ष के साथ-साथ सत्ता में पार्टी द्वारा भी संसद में कहे और उपयोग किए गए हैं. केवल विपक्ष द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्दों के चयनात्मक निष्कासन के रूप में कुछ भी नहीं है. उन्होंने कहा कोई शब्द प्रतिबंधित नहीं है, उन शब्दों को हटा दिया है जिन पर पहले आपत्ति की गई थी.

यह 1959 से जारी एक नियमित प्रथा है

बिरला ने आगे कहा पहले इस तरह के असंसदीय शब्दों की एक किताब का विमोचन किया जाता था. यह 1959 से जारी एक नियमित प्रथा है. कागजों की बर्बादी से बचने के लिए हमने इसे इंटरनेट पर डाल दिया है. उन्होंने कहा विपक्ष ने 1100 पन्नों की डिक्शनरी को पढ़ा है. यह 1959, 1986, 1992, 1999, 2004, 2009, 2010 में जारी की गई थी. जो 2010 से सालाना आधार पर रिलीज हो रही है.

जुमलाजीवी जैसे शब्दों को असंसदीय बताना लोकतंत्र का अपमान

कांग्रेस ने जुमलाजीवी और कई अन्य शब्दों को असंसदीय अभिव्यक्ति की श्रेणी में रखे जाने को लेकर गुरुवार को सरकार पर लोकतंत्र का अपमान करने का आरोप लगाया और कहा कि वह संसद के दोनों सदनों में इन शब्दों का इस्तेमाल करती रहेगी. मुख्य विपक्षी दल ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू से यह आग्रह भी किया कि वे इस फैसले पर पुनर्विचार करें. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि प्रधानमंत्री की शासन शैली का सही वर्णन करने वाले शब्दों को बोलने पर अब प्रतिबंध लगा दिया गया है.

विपक्ष ने केंद्र सरकार पर लगाया आरोप

कांग्रेस पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, मोदी सरकार की सच्चाई दिखाने के लिए विपक्ष द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सभी शब्द अब असंसदीय माने जाएंगे. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने दावा किया, सरकार की मंशा है कि जब वह भ्रष्टाचार करे, तो उसे भ्रष्ट नहीं बल्कि, भ्रष्टाचार को ‘मास्टरस्ट्रोक’ बोला जाए. उन्होंने कहा 2 करोड़ रोजगार, किसानों की आय दुगनी जैसे जुमले फेंके, तो उसे जुमलाजीवी नहीं बल्कि ‘थैंक यू’ बोला जाए. उन्होंने प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए सवाल किया, संसद में देश के अन्नदाताओं के लिए आंदोलनजीवी शब्द किसने प्रयोग किया था?

जितने असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल इस चुनाव में हो रहा है, उतना इससे पहले कभी नहीं हुआ था. कालेधन के मामले में भी इस चुनाव ने रिकाॅर्ड कायम किया है. हां, पश्चिम बंगाल को अपवाद मानें तो बूथों पर कब्जा के मामले में सुधार जरूर देखा जा रहा है.
दरअसल धनबल, बाहुबल की जगह ले रहा है. साम्प्रदायिक और जातीय भावनाओं का इस्तेमाल कमोवेश पहले ही जैसा है. हां, चुनाव प्रचार के दौरान अनेक बड़े नेताओं के द्वारा भी असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल अधिक चिंताजनक बात है.
संसद अब तक हंगामों के लिए जानी जाती रही है. अब शायद गाली- गलौज के रूप में नया तत्व जुड़ जाये. स्पीकर के चयन में इस बार और अधिक ध्यान रखना होगा. जिन्हें संसद में जाकर सिर्फ संसदीय शब्दों का ही इस्तेमाल करना है, वे भी चुनाव-प्रचार के दिनों अपनी गरिमा भूल जा रहे हैं. नतीजतन नयी पीढ़ी के सामने वे लोकतंत्र की गलत तस्वीर पेश कर रहे हैं.
नयी पीढ़ी में जो लोग राजनीति में जाने को सोच भी रहे होंगे तो उन्हें यह मान कर ही जाना पड़ेगा कि उन्हें भी गालियां सुननी भी पड़ेंगी और देनी भी. यानी गाली भी खादी की तरह राजनीति का जरूरी ‘लिबास’ बन चुकी है.
भूली-बिसरी याद :
कर्पूरी ठाकुर पहली बार सन 1970 के दिसंबर में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. जून, 1970 तक रहे. उससे पहले वह सन 1967 में उपमुख्यमंत्री बने थे. मुख्य मंत्री के लिए आवंटित बड़े बंगले में कर्पूरी ठाकुर नहीं रहते थे. इतना ही नहीं, उन्होंने सलाह दी थी कि राज्यपाल महोदय, मुख्यमंत्री के लिए निर्धारित बंगले में रहें. पटना स्थित विशाल राज भवन में कुछ सरकारी दफ्तरों को स्थानांतरित कर दिया जाये.
अभी राज्य सरकार के कई दफ्तर किराये के मकानों में हैं. उन पर हर साल किराये के नौ लाख रुपये खर्च होते हैं. कर्पूरी ठाकुर ने यह भी कहा था कि चूंकि राज भवन राष्ट्रपति के अधिकार में होता है, इसलिए केंद्र सरकार ही इस संबंध में कुछ कर सकती है. पर, केंद्र सरकार ने कुछ नहीं किया तो कर्पूरी ठाकुर ने अन्य दलों तथा प्रेस से अपील की थी कि वे इस शुद्ध प्रशासनिक और गैर राजनीतिक कार्य में मेरी मदद करें.
एक तो कर्पूरी ठाकुर जैसे नेता थे, जो सरकार के पैसे बचाने के लिए अपनी सुविधा भी कम कर रहे थे. दूसरी ओर आज के कई नेता हैं जिन लोगों ने चुनाव का खर्च भी इतना अधिक बढ़ा दिया है कि लगता ही नहीं है कि यह चुनाव एक गरीब देश में हो रहा है. याद रहे कि सन 1970 के एक सौ रुपये के बराबर 2019 के 3878 रुपये होते हैं.
और अंत में :
भाजपा सांसद उदित राज पिछली शाम तक भाजपा से एक बार फिर टिकट की उम्मीद करते रहे. नहीं मिला तो दूसरे ही दिन कांग्रेस में शामिल हो गये. ऐसे ही अन्य दलों के टिकटार्थी बिना कोई संकोच किये भाजपा में शामिल होते रहे. कई अन्य दलों का भी कमोवेश यही हाल रहा. पहले ऐसे दल बदल पर आश्चर्य होता था. अब नहीं होता. पहली बार 1967 में तो झटका लगा था जब बिहार के हरसिद्धी क्षेत्र के सीपीआइ विधायक एसएन अब्दुल्ला मंत्री बनने के लिए शोषित दल में शामिल हो गये थे.
बाद में उन्होंने इन पंक्तियों के लेखक को उसका ठोस कारण भी बताया था. अब तो हर तरफ एक ही अघोषित नारा है-‘टिकट कर्मा, टिकट धर्मा, धर्मा-कर्मा टिकट-टिकट!’ आमतौर पर अधिकतर नेताओं के लिए नीति-सिद्धांत और लाॅयल्टी का कोई मतलब नहीं रह गया है. टिकट नहीं मिलने के बावजूद जो नेता मूल पार्टी में रह जाये, उसके लिए अलग से लाॅयल्टी पुरस्कार का इंतजाम होना चाहिए.

 

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