मस्जिद से मांगी जाती है कांवरियों के लिए खास दुआ,कहाँ?
मोहम्मद वसीम कांवरियों के टी-शर्ट पर करते हैं पेंटिंग, खानदानी पेशा बनाया
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पूरे सावन सुलतानगंज में सौहार्द की अद्भुत मिसाल दिखती है. मुस्लिम भाई भी कांवरियों की सेवा में लगे रहते हैं. इधर सावन के पहले जुमे को को शाही मस्जिद में मुस्लिम भाइयों ने विशेष नमाज अदा कर अपने कांवरिया भाइयों के लिए सुख, शांति व समृद्धि की दुआ मांगी. मस्जिद के इमाम ने बताया कि हर वर्ष सावन में कांवरिये के लिए यहां खास नमाज अदा कर दुआ मांगी जाती है. कई कांवरिया भी चादरपोशी करते हैं. कांवरिया भाइयों की राह आसान हो, घर सही सलामत पहुंचें, अल्लाह ताला से हम उनके लिए यही दुआ मांगते हैं.
कांवरिया की सेवा से मिलता है सुकून
हर साल श्रावणी मेले का इंतजार मुस्लिम तबके के लोगों को भी बेसब्री से रहती है. मो इजराइल, मो चांद, मो मंजूर, मो नईम उद्दीन, मो सफरूद्दीन आदि ने बताया कि सुलतानगंज में कई मुस्लिम परिवार सालों भर श्रावणी मेला में बिकने वाली सामग्री बनाते हैं. सावन में हमारे लिए भी कांवरियों की सेवा सर्वोपरि होती है. मो मुन्ना, जब्बार, मो अब्बास, मो टुनटुन, मो कलाम, मो फिरोज, मो शहनवाज आदि कांवरियाें के उपयोग की वस्तुओं की बिक्री करते हैं. कांवरियों को अतिथि मान कर सभी सेवा भाव में जुटे रहते हैं. मो महमूद ने बताया कि सावन में कांवरियों के सामानों की बिक्री के लिए पूरी शुद्धता बरती जाती है. मांस-मुर्गा की दुकानें भी बंद कर दी जाती हैं. घर में भी मांसाहार का सेवन नहीं करते हैं.
दुनिया का सबसे लंबा श्रावणी मेला की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां सभी धर्मों के लोग एक साथ मिल कर काम करते हैं. उद्देश्य सिर्फ यह होता है कि बाबा नगरी की यात्रा पर जानेवाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी नहीं हो. ऐसे ही लोगों में एक मोहम्मद वसीम सुलतानगंज सीढ़ी घाट के पास एक दुकान में पेंट करते दिखे.
वसीम का खानदानी पेशा
वसीम डाक बम की टी-शर्ट पर बम का नाम, मोबाइल नंबर आदि पेंट कर रहे थे. इसके बदले 20 से 50 रुपये तक चार्ज ले रहे थे. उनका कहना था कि यह उनका खानदानी पेशा है. पिता मो शनीफ ने यह काम 40 वर्ष पहले शुरू किया था. अब अपने भाई के साथ यह काम करते हैं.
मोहम्मद वसीम के पास जाते हैं कांवरिये
सुल्तानगंज में गंगा घाट से बाहर निकलते ही सड़क मार्ग पर सड़क किनारे कांवर, भोजन, जलपात्र, कपड़े वगैरह की दुकानें हैं. इन दुकानों के बीच एक ऐसा दुकान और दुकानदार परिवार है जो श्रावणी मेले में अलग संदेश देता है. यह मेला सभी धर्म के लोगों से जुड़ा है, इसका एक उदाहरण यहां देखने को मिलता है. सड़क किनारे डाक बमों का जत्था मोहम्मद वसीम को घेरे हुए दिखता है. सभी डाक बम अपने टी-शर्ट/ बनियान में नाम-पता वगैरह लिखवाते मिलते हैं.
खगड़िया के वसीम का यह खानदानी पेशा
कांवरियों के टी-शर्ट में नाम-पता वगैरह का छापा लगा रहे परबत्ता खगड़िया निवासी मोहम्मद वसीम ने प्रभात खबर को बताया कि वो करीब 10 साल से ये काम कर रहे हैं. उससे भी आगे उन्होंने जानकारी दी कि ये उनका खानदानी पेशा बन चुका है. उनसे पहले उनके पिता इसे संभालते रहे.
40 साल से करते रहे हैं यह काम
वसीम के पिता शेख शनीफ भी वहां मौजूद थे. उन्होंने बताया कि जब से ये पुराना सीढ़ी घाट बना है तब से ये काम वो कर रहे हैं. शेफ शनीफ ने कहा कि 40 साल से अधिक समय बीत गया जो इस काम को हर साल वो करते आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि वो लोग तीन महीने तक इस काम को यहां करते हैं. सावन, भादो, आश्विन महीने तक यानी दुर्गा पूजा तक यहां काम करते हैं और उसके बाद वापस हो जाते हैं. बताया कि अब उनके बेटे भी इस कार्य से जुड़ गये हैं और सभी मिलकर ये कर रहे हैं.
इस काम को लेकर वसीम ने बताया कि कांवरिया अपने कपड़ों पर नाम-पता या मोबाइल नंबर इसलिए लिखवाते हैं ताकि रास्ते में वो कहीं अचेत भी होकर गिर पड़ें तो उनके घर के पते पर संपर्क किया जा सके. बताया कि ये रंग छूटता नहीं है. कलर और फेविकॉल के मिश्रण से इसे तैयार किया जाता है.
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