फिज़ा में तो थे सिर्फ मुंशी जी!
✍️गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया सीवान –
सीवान। रविवार का दिन। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती। सीवान जिला परिषद का सभागार। प्रसिद्ध कवि सुभाष यादव जी द्वारा वाग्देवी की दिव्य स्वर आराधना। लोक गायिका प्रज्ञा पुष्प द्वारा स्वागत गान। डॉक्टर अशोक प्रियम्वद द्वारा सारगर्भित उद्बोधन। राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोल रहे थे अन्य विद्वान वक्ता। सम्मानित हो रही थीं समाज से विसंगतियों को दूर करने के लिए प्रयासरत प्रतिभाएं। काव्य सम्मेलन में कवियों के स्वर का आनंद उठा रहे थे श्रोता।
परंतु फिज़ा में सिर्फ और सिर्फ कथा सम्राट के कृतित्व और व्यक्तित्व की गूंज थी। ऐसा लग रहा था जैसे मुंशी जी कहीं आस पास ही बैठे हैं। आयोजन में मुंशी जी का व्यक्तित्व जीवंत हो चुका था और उनका कृतित्व अनंत शब्दों तले मुखरित हो रहा था। मंथन चला, काव्य पाठ हुआ और निष्कर्ष यहीं रहा कि मुंशी प्रेमचंद जी की लेखनी का यथार्थ अभी भी कायम है। छोटे छोटे संवेदनशील और सकारात्मक प्रयास, जो समाज की विसंगतियों को दूर कर सकें, वे ही मुंशी जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हो सकते हैं।
अवसर था मुंशी प्रेमचंद जयंती सह राष्ट्रीय संगोष्ठी सह सम्मान समारोह सह कवि सम्मेलन का। आयोजक थे विश्व भोजपुरी परिषद्, नई दिल्ली और हिंदी साहित्य सम्मेलन सिवान जिला इकाई। मुख्य अतिथि थीं जिला परिषद अध्यक्ष श्रीमती संगीता यादव और कार्यक्रम की अध्यक्षता की श्री आर एन यादव ने। कार्यक्रम के संयोजक रहे डॉक्टर मन्नू राय।
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