नौकरशाही को भ्रष्टाचार से मुक्त बनाना क्यों जरूरी है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
हमारे देश में भ्रष्टाचार नियंत्रण के लिए समय-समय पर प्रशासनिक सुधार पर बल दिया जाता रहा है। द्वितीय प्रशासनिक सुधार, खन्ना समिति, होता समिति आदि की रिपोर्ट में प्रशासनिक सुधार के महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट सुझाया गया, जिसमें नौकरशाही को पारदर्शी, जवाबदेह तथा मजबूत बनाया जा सके। इसी उद्देश्य से वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार भी लाया गया, जिसमें जनता, सरकारी कार्यों में सहभागिता को निर्धारित कर सके और जनता तथा सरकार के बीच नजदीकियां बढ़ें, ताकि पारदर्शिता को बढ़ावा मिल सके और भ्रष्टाचार कम हो सके।
सरकारी कार्यों में यदि जनता का हस्तक्षेप होगा, तो निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाया जा सकेगा, लेकिन भारत में नागरिक समाज की कमी के कारण लोग मात्र अपने अधिकारों की अपेक्षा करते हैं, कर्तव्यों को तरजीह नहीं देते। इसी कारण लोग आरटीआइ का उपयोग निजी हित तथा दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए करने लगे जिससे आरटीआइ भी अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकी। सुशासन की अवधारणा भी भारत में अधूरी ही रही है, क्योंकि सुशासन का अर्थ ही यही है कि सरकार के कार्यों को कम करने के लिए लोगों की सहभागिता, लेकिन नागरिक समाज की कमी उद्देश्यों को पूर्ण करने में बाधा बन रही है।
उल्लेखनीय है कि लगातार भ्रष्टाचार में लिप्त नौकरशाही के स्वच्छ नौकरशाही बनाने के लिए अनेक प्रयास किए जाते रहे हैं जैसे नागरिक चार्टर, केंद्रीय सतर्कता आयोग, लोकपाल की नियुक्ति आदि। भ्रष्टाचार मुक्त नौकरशाही बनाना अत्यावश्यक है, क्योंकि नौकरशाही देश के विकास के कार्यों को प्रचालित करने में मेरुदंड का कार्य करती है, साथ ही सुदृढ़ समाज की स्थापना भी करती है। आज का समय कुछ इस तरह से हो गया है जिसमें नेता, अधिकारी और अपराधी, व्यापारी की दुरभिसंधि का एक चतुष्कोणीय अभिकरण सा बन गया है।
चिंता की बात है कि भारतीय नौकरशाही मौका मिलने पर सिविल सर्विस कोड में दी गई अपार शक्तियों का प्रयोग केवल अपने स्वार्थ के लिए करने लगे और देश की गरीब जनता का शोषण करने के साथ-साथ कल्याणकारी योजनाओं के लिए आवंटित धन में हेरा-फेरी करने लगे। मगर हैरानी की बात यह है कि रंगे हाथों पकड़े जाने पर भी किसी नौकरशाह पर अभियोग चलाने के लिए सरकार की अनुमति अनिवार्य है।
भारत के वरिष्ठ नौकरशाह और चीफ विजिलेंस कमिश्नर रहे एन विट्ठल ने कहा था कि राजनीतिज्ञों से ज्यादा नौकरशाह भ्रष्ट हैं, क्योंकि राजनेताओं को तो जनता एक समय बाद हटा सकती है, लेकिन नौकरशाह पूरी सेवा काल तक भ्रष्टाचार करता रहता है। काफी हद तक यह सही भी प्रतीत होता है, क्योंकि राजनेता पर प्रत्येक पांच वर्ष बाद चुने जाने का दबाव होता है, जो नौकरशाह पर नहीं होता है।
वर्तमान में बंगाल सरकार के एक मंत्री के यहां से भारी मात्र में सोना चांदी समेत करोड़ों रुपये बरामद होना तथा बीते दिनों झारखंड में पदस्थ एक महिला आइएएस अधिकारी के यहां से अकूत संपत्ति का मिलना, यह सब दर्शाता है कि भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है, लेकिन अच्छी बात यह है कि यह सब पकड़ा भी जा रहा और सजा भी मिल रही है। लेकिन इसका प्रचार प्रसार होना चाहिए जिससे डर का माहौल बने, क्योंकि रामचरितमानस में कहा गया है- भय बिनु होई न प्रीति।
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