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समाजवादी विचारधारा के लोग एकजुट होते रहे हैं, टूटते रहे हैं और बिखरते भी रहे हैं,कैसे?

समाजवादी विचारधारा के लोग एकजुट होते रहे हैं, टूटते रहे हैं और बिखरते भी रहे हैं,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार में सत्ता परिवर्तन के बाद भारत की राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में तेजी से बदलाव और विपक्षी राजनीति का नए सिरे से ध्रुवीकरण होने लगा है. विपक्षी पार्टियां एक बार फिर सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ खड़ी होने लगी हैं और राष्ट्रीय स्तर पर एक सशक्त राजनीतिक विकल्प तैयार करने में जुट गई हैं. यह सच है कि बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम से भाजपा को एक करारा झटका लगा है, लेकिन इस बीच विपक्षी राजनीति को लेकर कई सवाल भी पैदा होने लगे हैं. इन्हीं ज्वलंत सवालों में सबसे बड़ा यह है कि बिहार के ‘बूस्टर डोज’ के बाद फिलहाल विपक्ष इतना मजबूत हो गया है कि वह भाजपा को टक्कर दे सकेगा?

पहले भी समाजवादी विचारधारा हुई है एक

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रंजीव की मानें, तो भाजपा के खिलाफ भारत में समाजवादी विचारधारा को एक साथ आना कोई पहली बार नहीं हो रहा है. इससे पहले भी समाजवादी विचारधारा के लोग एकजुट होते रहे हैं, टूटते रहे हैं और बिखरते भी रहे हैं. पहली बात यह कि इससे पहले जब कभी भी समाजवादी विचारधारा के लोग एकजुट हुए, तब कांग्रेस सबसे बड़ी मजबूत पार्टी थी, आज भाजपा सबसे मजबूत है. उन्होंने कहा कि अबकी भाजपा पहले वाली भाजपा नहीं है. ज्यादा मजबूत भाजपा है, जिससे निबटना बहुत आसान नहीं होगा.

विपक्ष को मेहनत करने की जरूरत

राजनीतिक विश्लेषक रंजीव ने आगे कहा कि ये थोड़ा सरलीकरण है. हमको लगता है कि बिहार में दोनों दल (जदयू और राजद) आ गए, तो इसलिए पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने जो बयान दिया हो, उन्होंने इसी आशय में दिया हो, क्योंकि वे भी जनता दल परिवार के एक घटक हैं. इसलिए उन्हें लग रहा हो कि इसी राजनीतिक विस्तार का एक हिस्सा बन सकते हैं. बता दें कि बिहार में सत्ता परिवर्तन के बाद पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने एक बयान में जनता दल को भारत में दूसरा राजनीतिक विकल्प बनने की बात कही है. राजनीतिक विश्लेषक रंजीव ने कहा कि लेकिन हमको ये थोड़ा सा सरलीकरण लगता है. हमको लगता है कि विपक्ष को थोड़ा सा और मेहनत करने की जरूरत है.

विपक्ष को बनाना होगा आपसी एका

रंजीव ने कहा कि विपक्ष को जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर सड़क पर आना पड़ेगा. उसे जनता को बताना पड़ेगा कि वास्तविक रूप से विपक्ष एक है और राजनीतिक तौर पर एक विकल्प देना चाहता है. विपक्ष राजनीतिक विकल्प देने को लेकर जनता में कितना भरोसा पैदा कर पाएगा, यह इसी बात पर निर्भर करेगा कि वह बिहार में हुए इस नए प्रयोग को कैसे लेते हैं. बिहार के दो दल साथ आ गए और नई सरकार बन गई है, तो विपक्ष किस दिशा में जाएगा. मुझे लगता है, ‘यह इसी से निर्धारित होगा कि विपक्ष अपनी एका और राजनीतिक विकल्प को कितनी मजबूती से पेश करेगा. यही विपक्ष की दिशा तय करेगा.’

2019 के बाद भाजपा को तगड़ा झटका

उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय स्तर पर हुए बदलाव और एका को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती के साथ पेश करना होगा. इसको हम कहते हैं कि उन्हें जनता में विश्वसनीयता स्थापित करनी होगी. बिहार के घटनाक्रम को मैं नकार नहीं रहा हूं. ये बहुत बड़ा पॉलिटिकल डेवलपमेंट है. 2019 में भाजपा की सत्ता में वापसी के बाद बिहार में उसे सबसे तगड़ा राजनीतिक झटका लगा है. ये कोई छोटा-मोटा घटनाक्रम नहीं है. अभी तक हम आप यह देखते आ रहे हैं कि किसी राज्य में भाजपा सरकार में आ गई या भाजपा ने गठबंधन करके सरकार बना लिया, लेकिन बिहार में 2019 के बाद पहली बार ऐसा देखा जा रहा है कि भाजपा को तगड़ा झटका लगा है.

निकलेगा दूरगामी परिणाम

रंजीव ने कहा कि यह पहली बार ऐसा हुआ है कि बिहार में भाजपा गठबंधन से बाहर कर दी गई है और दो दूसरे दलों ने सरकार बना लिया. ये बड़ी घटना है, इसके निहितार्थ हैं. इसका भारतीय राजनीति पर दूरगामी असर दिखाई देगा, लेकिन इसे विपक्ष की राजनीति या विपक्षी पार्टियां कैसे दिशा देती हैं, ये देखना रोचक होगा. देखना यह होगा कि वह इसे आगे कैसे ले जाते हैं. यह देखना सरल होगा कि दो प्लस दो बराबर चार हो गया, तो यह ज्यादा सरलीकरण होगा.

भाजपा को हराना आसान नहीं

उन्होंने कहा कि जब तक विपक्ष कोई ठोस राजनीतिक विकल्प लेकर नहीं आते हैं, तब तक कोई भाजपा को हरा नहीं सकता है. विपक्ष की राजनीतिक एका और विपक्ष की वैकल्पिक राजनीति देने की क्षमता ही आगे दिशा तय करेगी. यही दो चीजें यह तय करेंगी कि बिहार में विपक्ष ने भाजपा को जो मात दिया है, वे उसे आगे कैसे भुना पाएंगे. मेरा मानना है, ‘विपक्ष की व्यापक एका बनाने और वैकल्पिक राजनीति की मजबूती ही जनता में भरोसा पैदा कर सकती है.’ उन्होंने कहा कि अभी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष एक नहीं रह पाया, तो लंबी राजनीति में दिक्कत है.

बूस्टर डोज से दिखेगा पराक्रम?

उन्होंने कहा, ‘अच्छी बात यह है कि लोकतंत्र तभी खूबसूरत होता है, जब विपक्ष को भी ताकत मिलती है. उस नजरिए से देखेंगे, तो बिहार का घटनाक्रम भारतीय राजनीति में विपक्ष की उम्मीद बनाए रखने के लिए एक ‘बूस्टर डोज’ की तरह है. अब उस ‘बूस्टर डोज’ से कितना पराक्रम दिखा सकते हैं, यह उन पर ही निर्भर करता है. वे राजनीति एका कैसे दिखाते हैं और राजनीतिक विकल्प कैसे तैयार करते हैं? ये उन पर भी निर्भर करता है.’

 

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