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आजादी के गुमनाम नायक रहे जीरादेई के पंडित वैद्यनाथ मिश्र!

आजादी के गुमनाम नायक रहे जीरादेई के पंडित वैद्यनाथ मिश्र!

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आजादी के अमृत महोत्सव के संदर्भ में विशेष आलेख श्रृंखला

✍️गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सीवान। अब हम आजादी के अमृत महोत्सव को मनाने जा रहे हैं। देश के लिए यह बेहद गौरव का क्षण है। परंतु इस बात पर बेहद अफसोस होता है कि आज भी आजादी के कई गुमनाम नायकों पर चर्चा नहीं हो पाती है। ये गुमनाम नायक अभी तक इतिहास के पन्नों में समाहित नहीं हो पाए हैं। ऐसे गुमनाम नायक सीवान में भी कई मौजूद रहे हैं। इसमें एक गुमनाम नायक के तौर पर सीवान के जीरादेई प्रखंड के खड़कीरामपुर निवासी स्वतंत्रता सेनानी पंडित वैद्यनाथ मिश्र का नाम भी आता है। जिनके स्वाधीनता संग्राम में अमूल्य योगदान के बावजूद इतिहास के पन्नों में न्यायपूर्ण स्थान अभी तक नहीं मिल पाया है। यहां तक कि उनकी प्रतिमा भी परिजन ने निजी जमीन पर निजी आर्थिक स्रोत से स्थापित कराई है।

भागलपुर सेंट्रल जेल जाना पड़ा

पंडित वैद्यनाथ मिश्र सीवान थाना कांग्रेस कमिटी के 10 साल तक संयुक्त मंत्री रहे। 1930- 32 के दौर में जब सविनय अवज्ञा आंदोलन चल रहा था, पंडित वैद्यनाथ मिश्र को जेल भी जाना पड़ा। उस दौरान सीवान, छपरा के हवालातों के साथ भागलपुर सेंट्रल जेल भी जाना पड़ा। उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री रामेश्वर मिश्र ने यह भी बताया कि बाबूजी अपने युवा अवस्था में कहा करते थे कि जब ब्रिटिश सैनिक गले पर बंदूक तानकर भी कहेंगे कि जय ब्रिटेन बोलो तो भी आवाज तो यही निकलेगी कि जय गांधी, जय नेहरू, भारत माता की जय। धन्य थे हमारे स्वतंत्रता सेनानी पंडित वैद्यनाथ मिश्र।

1942 की आज़ादी के जंग में परिवार की परेशानी भी नहीं रोक पाई कदम

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय भी पंडित वैद्यनाथ मिश्र तकरीबन चार सालों तक भूमिगत रहकर ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध जंग लड़ते रहे। परिवार में बड़े भाई दमा से ग्रस्त थे और बड़ी भाभी प्रसूता रोग से। परिवार तबाह होता रहा लेकिन पंडित वैद्यनाथ मिश्र ब्रिटिश पुलिस की दबिश से बचते हुए राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूती प्रदान करते रहे। पुलिस ने कई बार इनकी तलाश में छापे मारे लेकिन उन्हें पकड़ नहीं पाई। छपरा के डोरीगंज के स्वतंत्रता सेनानी रघुनाथ डोम और गणेश प्रसाद वर्मा पंडित वैद्यनाथ मिश्र के 1942 के आंदोलन में सहभागिता की पुष्टि की है। ऐसा परिजन गर्व के साथ बताते हैं।

गुलाम देश में गुलाम संतान नहीं चाहते थे पंडित मिश्र

पंडित वैद्यनाथ मिश्र गुलाम देश में गुलाम संतान की ख्वाहिश नहीं रखा करते थे। इसलिए उन्होंने भारत के स्वाधीन होने तक अपनी शादी नहीं की। कांग्रेस की गतिविधियों में तन मन धन से सक्रिय योगदान करते रहते थे। हालांकि परिवार में बड़े भाई और भाभी के निधन के उपरांत परिवार की स्थिति बेहद नाजुक थी। भारत के स्वाधीन होने पर उन्होंने शादी किया, जिसके अवसर पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री का शुभकामना संदेश भी आया।

ब्रिटिश हुकूमत के दहशत तले लोग पंडित मिश्र को देखते ही घरों में युवाओं को छुपा लेते थे

पंडित वैद्यनाथ मिश्र खादी की धोती, कुर्ता, टोपी पहन कर हाथ में तिरंगा लेकर राष्ट्रीय चेतना जागृत करने के लिए बाहर निकलते थे तो उस समय ब्रिटिश हुकूमत तले दहशत के चलते लोग परिवार के युवा सदस्यों को घरों में छिपा लेते थे। लेकिन आजादी का यह दीवाना हर बात को दरकिनार कर जन जन में राष्ट्रीय चेतना का संचार करता रहता था। ना कोई डर, न कोई भय, बस राष्ट्र सेवा की धुन। कमाल के थे हमारे स्वतंत्रता सेनानी पंडित वैद्यनाथ मिश्र।

बबुनी के रहे निजी सचिव

पंडित वैद्यनाथ मिश्र राजेंद्र बाबू की बहन भगवती देवी के निजी सचिव रहे। स्वतंत्रता आंदोलन और उसके बाद स्वाधीन भारत में भगवती देवी को पंडित वैद्यनाथ मिश्र ने सदैव सहयोग करते रहे। इसी दौरान इनकी राजेंद्र बाबू से भी गहरी घनिष्ठता हो गई। कालांतर में देश के स्वाधीन होने पर राजेंद्र बाबू ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद को लिखे पत्र में पंडित वैद्यनाथ मिश्र के व्यक्तित्व की सरलता का जिक्र किया है।

एक संवेदनशील गौ सेवक

पंडित वैद्यनाथ मिश्र एक संवेदनशील गौ सेवक भी थे। जब वे जीरादेई और जमापुर से अपने गांव की तरफ जाते थे तो अपनी गायों के लिए हरी हरी घासें लेना उनका शौक था। भले ही उनके सफेद कपड़े गंदे हो जाय। गौ सेवा को पंडित मिश्र अपने जीवन की सार्थकता मानते थे। स्वतंत्रता आंदोलन के समय गाय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण आधार हुआ करती थी। शायद इसलिए पंडित मिश्र गौ सेवा के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना भी जागृत करना चाहते थे।

शिक्षा के प्रसार के विशेष अनुरागी

पंडित वैद्यनाथ मिश्र शिक्षा के प्रति विशेष अनुरागी रहे। उन्होंने अपने सामाजिक कर्तव्यों के तौर पर माध्यमिक विद्यालय के लिए अपनी जमीन दान कर दी तो जीरादेई, भरथुयी, ठेपहा के हाईस्कूलों में भी सहयोग प्रदान करते रहे। 2001 में निधन के पूर्व तक पंडित वैद्यनाथ मिश्र सामाजिक कार्यों में सदैव सक्रिय रहे। सामाजिक कार्यों में उनकी सक्रियता गरीब असहायों की सेवा के तौर पर ही रही। प्रख्यात शिक्षाविद, मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति जब्बार हुसैन भी पंडित वैद्यनाथ मिश्र के शिक्षा के प्रति अनुराग के विशेष मुरीद रहे।

कुल मिलाकर देखा जाए तो पता चलता है पंडित वैद्यनाथ मिश्र ने स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आजादी के अमृत महोत्सव के संदर्भ में हम सभी भारतीयों का यह महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि हम आजादी के गुमनाम नायकों के बारे में जानें और अन्य लोगों को भी उनके बारे में बताएं। राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ा हर व्यक्तित्व हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। साथ ही उम्मीद करते हैं कि सरकार की नज़र भी आजादी के इस गुमनाम नायक के कृतित्व और व्यक्तित्व की तरफ पड़ेगी और इतिहास के पन्नों में भी उनका सुप्रतिष्ठित स्थान है।

 

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