आज़ादी के इस पावन अवसर पर हम दूसरों की जिंदगी में बदलाव कैसे लाएं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

क्या दूसरों के जीवन में वह परिवर्तन लाना हमारा कर्तव्य नहीं है? असल में इन्हीं बदलावों का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज है। सब जानते हैं तिरंगे के रंग क्या दर्शाते हैं। केसरिया ताकत-साहस का प्रतीक है, जबकि सफेद शांति व सच्चाई, वहीं हरा उवर्रता, समृद्धि, धरा की खुशहाली का प्रतीक है। कुछ शायद नहीं जानते होंगे कि अशोक चक्र बदलाव दर्शाता है और बताता है कि गति में ही जीवन है।

फंडा यह है कि 75वें आजादी के अमृत महोत्सव में व्यक्तिगत ध्येय होना चाहिए कि हम काम, शब्द व उदारता से दूसरों की जिंदगी में बदलाव लाएं, ऐसा व्यक्तिगत या व्यावसायिक स्तर पर जब भी मुमकिन हो, करेंगे।

फंडा यह है कि अकसर हम क्या कहते या करते हैं, इसका महत्व इतना नहीं होता, जितना इसका कि हम उसी चीज को कैसे कहते या करते हैं। हमारे वो शब्द उन्हें अपना काम अलग तरह से करने को प्रेरित कर सकते हैं, जिससे समाज में एक सकारात्मक संदेश जा सकता है।

1: एक स्वतंत्र देश के रूप में शुरुआती दिनों की तुलना में आज भी हम दूसरे देशों के बनिस्बत बहुत अमीर नहीं हैं। आजादी के बाद हमारी प्रतिव्यक्ति आय दुनिया के औसत का 18% थी, 1990 के दशक की शुरुआत तक यह 6% हो गई थी। अब फिर यह 18% के आसपास है।

2: आजादी के समय एक डॉलर का मूल्य चार रुपए के बराबर था। अब यह 79 हो चुका है। यानी 75 सालों में हमारी राष्ट्रीय मुद्रा में 75 रुपयों की गिरावट आई। इसके बावजूद आज यह दुनिया की सबसे प्रतिस्पर्धात्मक मुद्राओं में से एक है और विदेशी यात्रियों को दुनिया की 90% से ज्यादा राष्ट्रीय मुद्राओं की तुलना में किफायती लगती है।

3: एक दशक पहले स्टॉक मार्केट की कुल वैल्यू में सरकारी कम्पनियों की हिस्सेदारी 25% थी, अब यह 7% हो गई है। लेकिन पब्लिक सेक्टर खुद अपने कुप्रबंधन के कारण घटा है, इसलिए नहीं कि सरकार सार्वजनिक-कम्पनियों को बेच रही है।

4: शिक्षा, स्वास्थ्य और मानव-विकास के दूसरे संकेतकों पर भारत का रिकॉर्ड उसके निम्न-मध्य आयवर्ग के अनुरूप है, लेकिन 22% भारतीय महिलाएं ही औपचारिक रूप से काम कर रही हैं, जबकि इसी आयवर्ग में दूसरे देशों में औसतन 45% और चीन में 70% महिलाएं कामकाजी हैं।

5: 1990 तक भारत और चीन का आर्थिक आकार और औसत आय लगभग समान थे, लेकिन उसके बाद चीन की अर्थव्यवस्था 50 गुना बढ़ चुकी है। उसके नागरिकों की औसत आय में भी 40% का इजाफा हुआ है। आर्थिक सुधारों के बाद भारत भी बदला, लेकिन इतनी गति से नहीं।

6: दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पांच देश ही पांच दशक तक 5% की विकास दर कायम रख सके हैं। चीन इनमें शुमार है। लेकिन तीन देश ऐसे भी हैं, जिन्होंने चार दशकों तक 5% की विकास दर को कायम रखा। भारत उनमें से एक है।

7: 1990 के बाद से स्टॉक मार्केट ने औसतन 12% वार्षिक रिटर्न डिलीवर किए हैं, जो कि 5% के वैश्विक औसत के दोगुना से भी अधिक हैं।

8: 800 उभरते मार्केट स्टॉक- जो बीते दशक में 500% तक बढ़े और 1 अरब डॉलर या उससे ज्यादा की वैल्यू तक पहुंचे- में से 150 भारत में हैं। यह चीन के बाद दूसरी सबसे बड़ी संख्या है।

9: बिग मार्केट सक्सेस स्टोरीज़ में बूम से अरबपतियों की संख्या बढ़ी, जिससे विषमता को लेकर चिंताएं जगीं। लेकिन इस ट्रेंड ने भी तीव्र प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया है, ठहराव को नहीं। हमारी कमजोर कड़ी निर्माण-क्षेत्र भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है और आज वह जीडीपी का 17% हो चुका है।

10 : आजादी के समय भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था। 1990 में वह 12वें स्थान पर पहुंच गया। अब वह फिर छठे स्थान पर वापसी कर चुका है। ऐसा कैसे हुआ कि भारत इतने संघर्ष के बावजूद फिर वहीं पहुंच गया, जहां से उसने शुरू किया था? क्योंकि वह अपनी आरम्भिक भूलों से अभी तक उबरने का ही प्रयास कर रहा है। दूसरे एशियाई देशों में आर्थिक आजादी पहले आई, राजनीतिक बाद में। भारत को पहले राजनीतिक आजादी मिली, लेकिन उसने समाजवादी अर्थ-प्रणाली अख्तियार की, जिसने आर्थिक आजादी देने में कोताही बरती।

1990 के बाद यह बदलना शुरू हुआ, जब भारत ने मुक्त-बाजार प्रणाली अपनाई, लेकिन पूरी तरह नहीं। उसके बाद से भारत धीरे-धीरे हैरिटेज फाउंडेशन की आर्थिक आजादी रैंकिंग में ऊपर चढ़ता गया है, लेकिन वह आज भी बॉटम 30% में आता है। आज पोस्टवॉर बूम खत्म हो गया है, वैश्विक आबादी में बढ़ोतरी थमी है, उत्पादकता घट रही है, बाजार सुस्त हैं और आने वाले कल के विकास पर बड़े कर्जों का बोझ है, ऐसे में 7% से अधिक की विकास दर को कायम रखने का चमत्कार कम ही देश कर पाएंगे। 5% विकास दर ही निम्न आय वाले देशों के लिए एक अच्छा लक्ष्य होनी चाहिए। और भारत यह कर सकता है।

2032 तक तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी

भारत 5% की विकास दर से आगे बढ़ते हुए सुस्त बाजारों वाली दुनिया में एक चमचमाता सितारा साबित हो सकता है। अगर वह ऐसा कर पाया तो 2032 तक वह यूके, जर्मनी और जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

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