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मेरे प्यारे नौटंकीलाल! जन्माष्टमी के पावन पर्व के अवसर पर प्रभु श्री कृष्ण का वंदन

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जन्माष्टमी के पावन पर्व के अवसर पर प्रभु श्री कृष्ण का वंदन

✍️गणेश दत्त पाठक, सेंट्रल डेस्‍क, श्रीनारद मीडिया :

जन्माष्टमी का पावन, पवित्र मनोहारी त्योहार। कान्हा के वृंदावन में तो कृष्णप्रेम की सुनामी आएगी ही। सनातन परंपरा के श्रद्धालुजन भी प्रभु श्री कृष्ण के अनुराग में डूब जाएंगे। उपवास, पूजन, अर्चन, आरती का सिलसिला प्यारे प्रभु के स्नेह में चलता रहेगा। आस्था की तरंगें हिलोरे लेती रहेंगी। कृष्ण भक्ति की अविरल सरिता बहती रहेगी। कितनी अजीब बात है कि जो जन्म से परे हैं, उसका जन्मदिन! लेकिन बालगोपाल का मोह, उनसे जुड़ाव, अहसास का वो रास्ता दिखाती हैं, जहां परम् कल्याणकारी प्रभु श्रीकृष्ण की अहैतुक कृपा से आस्था में मन तरंगित हो उठता है और भाव एकाकार।

प्रभु श्री कृष्ण के लिए नौटंकीलाल का संबोधन थोड़ा आश्चर्यजनक लग सकता है! आपको लेकिन जब थोड़ा कान्हा के लीलाओं के बारे में सोचे, उनके बचपन के बाल लीलाओं को देखें, उनके किशोरावस्था के कारगुजारियोंं को देखें, चराचर संसार में उनकी विविध लीलाओं को देखें तो यह महसूस होगा कि प्रभु श्री कृष्ण के लिए इससे बेहतर उपाधि नहीं मिल सकती है।

आखिर हो भी क्यों न? श्रीमद्भागवत गीता में प्रभु स्वयं यह स्वीकार करते हैं कि मैं ही सब कुछ हूं। मैं ही प्रत्येक जीव के हृदय में आसीन हूं। तो फिर इस शाश्वत संसार की समस्त गतिविधियों के लिए जिम्मेवार किसे माना जाए?

निश्चित तौर पर संसार की संचेतना के सूत्रधार प्यारे प्रभु श्री कृष्ण ही है। वह माया की कहानी हो या प्रारब्ध की जुबानी। हर मंगल की सुनहरी दास्तां लिखने वाले नौटंकीलाल ही है तो हर अमंगल में खेवनहार भी नौटंकीलाल ही हैं। हर सुख के प्रदाता नौटंकीलाल ही हैं तो हर दुख में आश्रयदाता नौटंकीलाल ही हैं। हर सौभाग्य के विधाता नौटंकीलाल हैं तो हर आपदा के तारणहार भी नौटंकीलाल ही हैं। हर सफलता के मददगार नौटंकीलाल हैं तो हर असफलता में पालनहार नौटंकीलाल ही हैं।

चराचर जगत ही नौटंकीलाल की लीला से गुंजायमान है। जन्मों से परे होने पर भी वो अवतार लेते हैं। कभी मर्यादा की पहचान बनते हैं तो कभी कुरुक्षेत्र के सूत्रधार। कभी बाल लीला से वात्सल्य की अविरल धारा बहाते हैं तो कभी अपनी सौम्यता से मन मोह ले जाते हैं। कभी गोपियों की पुकार पर गोकुल नहीं जा पाते हैं तो कभी द्रौपदी की करुण गुहार पर पल में द्वारिका से हस्तिनापुर पहुंच जाते हैं। कभी अर्जुन के कुरुक्षेत्र में मार्गदर्शक बन जाते हैं तो कभी कंस के जीवन संकट में डाल जाते हैं।

कभी विविध सुरों के बीच ऐसी सरगम छेड़ते हैं कि आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता। कभी भावों की ऐसी वंशी बजाते हैं कि सुध बुध भी खो जाता हैं। वे आदर्श हैं, वे विराट हैं, वे मधुर हैं, वे स्नेह हैं, वे उपदेश हैं, वे ज्ञान हैं, वे मार्गदर्शन हैं, वे दुलारे हैं, वे न्यारे हैं, वे प्यारे हैं। वहीं तो सबकुछ हैं।

विभिन्न अवतारों में अनंत लीलाओं द्वारा अनंत संदेश देनेवाले नौटंकीलाल रहस्य से परिपूर्ण हैं। पर नौटंकीलाल की सबसे बड़ी विडंबना यह भी हैं कि तर्क से साधने पर वे असाध्य मालूम पड़ते हैं। जबकि श्रद्धा से वे मामूली प्रयास में ही अपने हो जाते हैं।

नौटंकीलाल की लीला तो नौटंकीलाल ही जानें। पर सुखसागर, श्याम सुंदर आनंद के अनुपम स्रोत हैं। दयासमुद्र, करुणा निधान नौटंकी लाल की हर गाथा मार्गदर्शन की अद्भुत सौगात हैं। आप महसूस कर पाएं तो दयासागर अपनी अहैतुक कृपा से पल पल माया की नौटंकी के बीच आपके साथ हैं। उनका आशीर्वाद आपके साथ है।

फिलहाल तो बस..हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की!

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