बिहार-झारखंड में क्यों हुई इतनी कम बारिश?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
झारखंड में मानसून इसबार राह भटक गया है। इस बार मानसून बंगाल की खाड़ी में बनने वाले निम्न दबाव व अति दाब राज्य के दक्षिणी हिस्से से होकर पश्चिम की ओर निकल जा रहे हैं। इससे झारखंड के उत्तर व मध्य भाग में बारिश नहीं हो रही है। इसी वजह से बिहार में भी कम बारिश हो रही है। मौसम वैज्ञानिक इसे जलवायु परिवर्तन का असर बता रहे हैं।
इस सीजन में बने मानसून के सभी पांच सिस्टम राज्य के दक्षिणी हिस्से को छूते छत्तीसगढ़ निकल गए, जबकि खाड़ी में बननेवाले सिस्टम आमतौर पर मध्य झारखंड होते बिहार तक बरसते हैं। लेकिन इस बार राज्य के उत्तरी भाग स्थित संताल और पलामू प्रमंडल में बारिश नहीं हो रही।
मौसम विज्ञानियों के मुताबिक जून के दौरान खाड़ी में एक भी निम्न दाब नहीं बना। जुलाई में दो बार बना और ओडिशा व आंध्र होते हुए छत्तीसगढ़ निकल गया। आठ अगस्त के बाद तीन सिस्टम बने। तीनों जमशेदपुर, खूंटी-रांची और सिमडेगा-गुमला के करीब से होकरनिकल गए। जबकि अधिकांश सिस्टम मध्य भाग से होकर पूरे झारखंड पर बरसते हैं। यह पूर्वी सिंहभूम-रांची-रामगढ़-हजारीबाग-चतरा होते बिहार तक जाता है। इससे पलामू और संताल समेत बिहार में भी बारिश होती है।
पलामू और संताल में सूखा
राज्य के दक्षिणी हिस्सों में अच्छी बारिश हुई पर उत्तरी इलाके वंचित रहे। बारिश की कमी झेल रहे दक्षिण के सात जिले सामान्य के निकट आ गए, जबकि संताल में सभी छह जिलों में बारिश 62 फीसदी कम हुई है। वहीं पलामू प्रमंडल में 45 फीसदी कम बारिश हुई। यहां सूखे की स्थिति है। 62 फीसदी कम बारिश हुई संताल के छह जिलों में और 45 फीसदी कम बारिश हुई पलामू प्रमंडल में।
क्या कहते हैं मौसम वैज्ञानिक
मौसम वैज्ञानिक अभिषेक आनंद ने कहा कि खाड़ी में पांच सिस्टम बने। सभी झारखंड के दक्षिण हिस्से से होकर निकल गए। अमूमन पूरे सीजन 10 सिस्टम बनते हैं। इसमें कई झारखंड के मध्य होकर गुजरते हैं और पूरे राज्य में बारिश होती है। इस बार ऐसा नहीं हुआ।
मानसून या पावस, मूलतः हिन्द महासागर एवं अरब सागर की ओर से भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर आनी वाली हवाओं को कहते हैं जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि में भारी वर्षा करातीं हैं। ये ऐसी मौसमी पवन होती हैं, जो दक्षिणी एशिया क्षेत्र में जून से सितंबर तक, प्रायः चार माह सक्रिय रहती है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ की अर्थव्यवस्था अधिकांशत: कृषि पर ही निर्भर है। इसीलिए यह बहुत आवश्यक है कि पर्याप्त मात्रा में जल कृषि के लिए उपलब्ध हो। मानसून में होने वाली अच्छी वर्षा काफ़ी हद तक किसानों को समृद्ध बना देती है। भारत ही नहीं विश्व की कई प्रमुख फ़सलें मानसूनी वर्षा पर निर्भर हैं। भारत अगर छह ऋतुओं का देश है, तो मानसून उस चक्र की धुरी है। आज भी मानसून से होने वाली वर्षा, भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है। सकल घरेलू उत्पाद का 30 प्रतिशत कृषि से आता है, जबकि लगभग 67 प्रतिशत मज़दूरों की निर्भरता कृषि या इस पर आधारित उद्योगों पर ही है। मानसूनी हवाओं के दो प्रकार होते हैं-
- गर्मी का मानसून, जो अप्रैल से सितम्बर तक चलता है।
- जाड़े का मानसून, जो अक्टूबर से मार्च तक चलता है।
भारत में वर्षा करने वाला मानसून दो शाखाओं में बँटा होता है-
- अरब सागर का मानसून
- बंगाल की खाड़ी का मानसून
‘मानसून’ शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से हुई है। अरब के समुद्री व्यापारियों ने समुद्र से स्थल की ओर या इसके विपरीत चलने वाली हवाओं को ‘मौसिम’ कहा, जो आगे चलकर ‘मानसून’ कहा जाने लगा। मानसून का जादू और इसका जीवन–संगीत भारतीय उपमहाद्वीप में ही फैला हो, ऐसा नहीं है। वास्तव में, यह पृथ्वी पर सबसे बड़ी जलवायु संरचना है।
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