कर साहब, जितने बाहर से कठोर थे, उतने ही अंदर से कोमल!

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बहुत याद आयेंगे कर सर आप!

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सीवान जिले के जीरदेई का महेंद्र उच्च विद्यालय वैसे तो कई कहानियों का केंद्र बिंदु रहा हैं। लेकिन वहां के एक शिक्षक के उल्लेख के बिना विद्यालय का एक लंबा इतिहास खालीपन का एहसास कराएगा। छोटा कद, कड़ी मूछ और कड़क आवाज की प्रखरता ऐसी कि छात्रों के पसीने छूट जाएं, नटखट से शैतान तक की श्रेणी में आनेवाले छात्रों के लिए एक बड़ी हिदायत थे वे। लेकिन जब आप उनके निकट जाते हैं तो पता चलता है कि वे इतने संवेदनशील थे कि आप उनके हृदय की विशालता की थाह भी नही लगा पाएंगे।

ऊपर से कठोर दिखने वाले वे इतने कोमल थे कि थोड़ी सी बात पर पसीज जाते थे। वे इतने सहज थे कि उनकी सरलता प्रभावित कर जाती थी। वे इतने भावुक थे कि उनके बारे में सुनी बातें एक अफवाह ही साबित हो जाती थी। जी हां, हम बात कर रहे हैं दिलीप कुमार कर सर की, जिन्हे लोग स्नेह से कर साहब भी कहा करते थे। जो महेंद्र उच्च विद्यालय, जीरादेई जिला सिवान में शिक्षक के तौर पर कार्यरत रहे थे। आज उनके देवलोक गमन की जानकारी से मन व्यथित हो गया और आंखों के सामने स्कूल का जीवन सामने आ गया। भगवान उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करें तथा उनके शोक संतप्त परिवार को इस दुखद स्थिति का सामना करने की शक्ति प्रदान करें।

जब कर सर से मिलने के नाम पर छूटे थे पसीने

महेंद्र उच्च विद्यालय में नामांकन के बाद एक दिन मेरे पिता जी द्वारा उनसे आवास पर मिलने का आदेश मिला। पूर्व में उस विद्यालय में पढ़ चुकी बहनों द्वारा उनके कठोर व्यक्तित्व के बारे में काफी कुछ सुनने को मिलता रहता था। उनके बारे में अच्छी बातों का तो स्मृति लोप हो गया था लेकिन उनके दहशत से जुड़ी बातें मानस पटल पर ज्यों की त्यों अंकित थी। घर से स्कूल तक जाने के दौरान स्थिति इतनी भयावह थी कि पूरा शरीर कांप रहा था।

जब उनसे मुलाकात हुई तब तो धड़कन काफी ज्यादा बढ़ चुकी थी और माथे पर पसीने की बूंदों ने अपना कब्जा तालिबानी अंदाज में जमा चुकी थीं। परंतु जब उनसे मिले तो उन्होंने बरबस पूछ ही लिया ‘इतने घबराएं हुए क्यों हो?’ मन को थोड़ा सुकून मिला ही था कि अगले सवाल कि सुना हैं तुम बहुत शरारती हो! सुनते ही ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की नीचे। कुल मिलाकर पहले मुलाकात में उनके केवल बाहरी व्यक्तित्व का ही परिचय हुआ। कालांतर में जब उनका सान्निध्य प्राप्त हुआ तो पता चला की उनके बाहरी और आंतरिक व्यक्तित्व में काफी फासला था। जितने वे बाहर से कठोर थे उतने अंदर से कोमल।

जब उनके आने की खबर सुन छुप गए थे घर में

बात उस समय कि हैं, जब मैं सातवीं कक्षा का छात्र था। उस समय तक कर सर से कभी मुलाकात तो नही हुई थी लेकिन उनके चर्चे घर पर होते रहते थे। सिवान में अयोध्यापुरी में मेरे नवनिर्मित मकान के गृहप्रवेश के अवसर पर पिता जी ने उन्हें सपरिवार आमंत्रित किया था और उनको लाने के लिए वाहन भी भेजा था। उस समय के मेरे ड्राइवर को वाहन निकलते देखकर मैंने पूछा कहां जा रहे हो? ड्राइवर जोगेंद्र के यह कहते ही कि जीरादेईं से कर सर को लाने जा रहे हैं, हमारी सिट्टी पीटी गुम हो गई। उसके बाद हम केवल उनके आने तक ही आयोजन में शरीक हुए। जब कर सर आ गए तो एक कमरे में ही दुबके रहे। बाद में जब कर सर के संसर्ग में आए तो उस बाल दहशत के बारे में सोचकर हंसी आ जाती थी।

आत्मनिर्भरता की पहली पाठशाला उनकी छोटी सी बागवानी

स्कूल प्रांगण में ही कर सर ने एक छोटी सी बागवानी बना रखी थी। जिसमे सुंदर- सुंदर फूल खिला करते थे। जब कभी जाना होता था तो वहां पर कभी – कभी कुछ करने का निर्देश भी मिलता था। उस समय तो बहुत अच्छा नहीं लगता था लेकिन कर सर कहा करते थे कि व्यक्ति को हर काम में पारंगत होना चाहिए। घर पर पौधो और फूलों का रोपण कर उनकी देखभाल करना चाहिए और इन सब कामों को स्वयं ही करने का प्रयास करना चाहिए। उनके दिए कई पौधों को हमने अपने घर के प्रांगण में भी लगाए थे, जो काफी सुंदर दिखते थे। उनकी सीख कालांतर में मेरी आत्मनिर्भरता की आदत की मजबूत बुनियाद बनी थी।

डेली 10 वर्ड मीनिंग का फलसफा आगे आया काम

कर सर बार बार कहते थे अंग्रेजी को मजबूत करने के लिए प्रतिदिन 10 वर्ड को याद करों। उनका यह फलसफा आगे की पढ़ाई में भारी मददगार बना। सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी और कालांतर में पत्रकारिता के दौरान मजबूत शब्दकोष से भारी मदद मिली। जो निश्चित तौर पर उनकी गुरु दीक्षा का असर थी।

उनके घर का दूध के हलवे का जायका आज भी याद

कर सर का पूरा परिवार लजीज व्यंजनों का शौकीन हैं। नित नए लजीज व्यंजन बना करते थे। एक बार उनके घर जाने और दूध से बना हलवा खाने को मिला, जिसे सर और मैडम ने मिलकर बनाया था। वह हलवा इतना लजीज था कि आज भी जेहन में उसका स्वाद मौजूद हैं।

स्कूल में हर समस्या के समाधान थे कर सर

महेंद्र उच्च विद्यालय में पढ़ाई के दौरान मैंने देखा था कि जब भी किसी छात्र की तबियत खराब हो जाती थी तो सबसे पहला उपचार कर सर द्वारा ही दिया जाता था। साथ ही, संसाधन हीन छात्रों को उनका सहयोग क्षेत्र में प्रसिद्ध था।

अनुशासन और लिखावट के प्रति विशेष अनुग्रही

अंग्रेजी के शिक्षक के तौर पर कार्यरत कर साहब अनुशासन और लिखावट के प्रति विशेष संवेदनशील रहा करते थे। छात्रों के जिंदगी में उनकी अनुशासन संबंधी सीख ने कई जिंदगियों को संवारा। उनका कहना था कि अनुशासन खुशहाल जिंदगी के लिए सबसे पहली आवश्यकता है। साथ ही, लिखावट की सुंदरता बढ़ाने के लिए वे छात्रों को प्रोत्साहित करते रहते थे। उनका कहना होता था कि उत्तर पुस्तिका में परीक्षक आपको लिखावट की सुंदरता के आधार पर ही पहचानता है और प्रभावित होता है। मेरी भी लिखावट को सुधारने में कर साहब का विशेष योगदान रहा।

पूरा परिवार ही रहा मिलनसार

कर सर का पूरा परिवार ही मिलनसार था। सर के साथ मैडम भी बेहद संवेदनशील हैं। वहीं उनके पुत्र रजत और दोनों बेटियां भी बेहद मिलनसार है। कर सर के नेतृत्व में उनका परिवार संवेदनशीलता की मिसाल है।

आज जबकि कर सर इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन उनका मार्गदर्शन प्राप्त अनेक छात्रों का जीवन उनके वसूलों और सिद्धांतों से रौशन है। कठोरता और कोमलता के सुंदर सामंजस्य वाला ऐसा महान व्यक्तित्व विरले ही मिलते हैं। कर सर, आप बहुत याद आयेंगे!
शत शत नमन आपको.

सादर,
गणेश दत्त पाठक
निदेशक, PATHAK’S IAS

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