आत्महत्याएं कैसे रोकी जायें?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आज से कुछ ही दिनों बाद 10 सितंबर को वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे मनाया जाएगा, जिसका उद्देश्य आत्महत्या को रोकना है, लेकिन हाल में जारी आंकड़ों में आत्महत्या की दर में तीव्र वृद्धि देखी गई है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, भारत में 2020 में आत्महत्या के कुल 1,53,052 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2021 में सात प्रतिशत अधिक कुल 1,64,033 मामले दर्ज किए गए थे। महाराष्ट्र में आत्महत्या के सर्वाधिक मामले दर्ज हैं। तमिलनाडु और मध्य प्रदेश दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे हैं।
वर्ष 2021 में आत्महत्या करने वालों में सबसे अधिक संख्या दिहाड़ी कामगारों, स्वरोजगार से जुड़े लोगों, बेरोजगारों और खेती-किसानी से जुड़े लोगों की रही. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल 1.64 लाख से अधिक लोगों ने खुदकुशी की थी, जिनमें से लगभग 1.05 लाख लोगों की सालाना आमदनी एक लाख रुपये से कम तथा 51.8 हजार लोगों की यह आय एक से पांच लाख रुपये के बीच थी.
खुदकुशी करने वालों में 45 हजार से अधिक महिलाएं थीं. ये आंकड़े इंगित करते हैं कि महानगरों से लेकर गांव-कस्बे तक गरीबी और लाचारी का भयानक साया पसरा है. इनसे यह भी पता चलता है कि महामारी ने अर्थव्यवस्था पर ग्रहण लगा दिया है, जिससे उबरने में समय लगेगा. आकलनों की मानें, तो 2021 में 15 से 20 करोड़ अतिरिक्त लोग गरीबी की जद में आये थे. आम तौर पर माना जाता रहा है कि बड़े शहरों में गुजारा करने के लिए कुछ न कुछ काम मिल ही जाता है.
लेकिन 2021 में बेरोजगारी के कारण हुई 40 फीसदी से ज्यादा आत्महत्याएं अकेले दिल्ली और मुंबई में दर्ज की गयी हैं. इसके बाद अन्य महानगरों का स्थान है. देश के 53 बड़े शहरों में 2018 से 2021 के बीच आत्महत्या की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं. भारत उन कुछ देशों की श्रेणी में है, जहां सबसे अधिक खुदकुशी होती है, जिसके अनेक कारण हो सकते हैं.
लेकिन ताजा सूचनाएं यह बताती हैं कि हमें अधिक से अधिक रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे. आर्थिक तंगी अवसाद और आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण है. यह अपराध बढ़ने का भी सबसे बड़ी वजह है. यह संयोग नहीं है कि शहरों में आपराधिक घटनाओं में भी बढ़ोतरी हो रही है. विभिन्न नीतिगत पहलों और कल्याणकारी कार्यक्रमों के माध्यम से सरकार महामारी से उत्पन्न संकट से नागरिकों, विशेष रूप से वंचित वर्ग, को राहत व मदद मुहैया करा रही है.
इसके सकारात्मक प्रभाव भी देखे जा सकते हैं. लेकिन केवल इन कोशिशों से पूरा समाधान नहीं हो सकता है. निश्चित रूप से हमें अर्थव्यवस्था को बढ़ाना होगा और यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह वृद्धि रोजगारपरक हो. महंगाई पर लगाम लगाने के ठोस उपायों की दरकार है ताकि गरीबों की बुनियादी जरूरतें पूरी हो सकें.
मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार कर तमाम परेशानियों से लाचार अवसादग्रस्त व्यक्ति को भी अपनी जान देने से रोका जा सकता है. पिछले कुछ समय से मानसिक स्वास्थ्य को अहमियत मिल रही है, लेकिन संसाधनों और सुविधाओं का बड़ा अभाव है. कामकाज की जगहों पर जागरूकता तथा संवेदनशीलता के लिए समुचित उपाय होने चाहिए.
आत्महत्या का विचार आना एक सामान्य समस्या है और ज्यादातर लोग इसे तब महसूस करते हैं, जब वे किसी तनाव या डिप्रेशन से गुजर रहे होते हैं। समाज की अलग-अलग संस्कृतियों और तबकों में आत्महत्या की वजहें अलग-अलग हैं, लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि आत्महत्या, मृत्यु का सबसे निरोध्य कारण है। यानी इसे रोका जा सकता है। आत्महत्या की कोशिशें अक्सर मदद की एक पुकार ही होती हैं और अब तो तेजी से एक मनोवैज्ञानिक इमरजेंसी के तौर पर देखी जा रही हैं। आत्महत्या को रोकने की जिम्मेदारी हम सब की है।
आत्महत्या को रोकना सरकार का काम नहीं है और सरकार यह काम कर भी नहीं सकती। यह जिम्मेदारी परिवार तथा समाज की है। सबसे ज्यादा जिम्मेदारी तो परिवार की ही है। अकेलापन, शिक्षा तथा करियर में जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा, प्रेम में विफलता, बीमारियां, उम्मीदों के मुताबिक नतीजे न मिलना, घर का नकारात्मक माहौल, गरीबी, कर्ज का बोझ जैसे कई कारण हैं जो लोगों को अवसाद में ले जाते हैं। अवसाद के लक्षण बहुत साफ नजर आ जाते हैं। अवसाद में जाने के बाद संबंधित व्यक्ति के हाव-भाव, बोलचाल, उसका व्यवहार बदल जाता है। ये परिवर्तन स्पष्ट दिखते हैं, लेकिन परिवार तथा आसपास के लोग पीड़ित की बीमारी समझ नहीं पाते।
यदि मन में आत्महत्या का ख्याल आ रहा है तो किसी अपने और भरोसेमंद व्यक्ति के साथ बैठकर अपने मन की सभी बातें बोल दें। जी भर कर रोएं, ऐसा करने से आत्महत्या का सोच दिल से कम हो जाता है। यदि आप आशाहीन महसूस कर रहे हैं या ऐसा महसूस कर रहे हैं कि आप अब और जीने के लायक नहीं हैं। तो ऐसे में याद रखें कि उपचार की मदद से आप फिर से अपने जीवन के दृष्टिकोण को प्राप्त कर सकते हैं और जीवन को बेहतर बना सकते हैं। जिंदगी ख़ुद को सुधारने का एक मौका हर किसी को जरूर देती है, लेकिन सुसाइड तो जिंदगी ही छीन लेती है।
जरूरत है कि जिंदगी के महत्व को समझें और समझ कर ऐसे कुविचारों से बचें, क्योंकि इससे समस्या का समाधान नहीं होता है, उल्टे आपके चहेतों को जख्म देकर चला जाता है। जीवन को गंवाएं नहीं, बल्कि बचाएं।