यात्राओं ने बदल दी भारतीये सत्ता की तस्वीर,कैसे ?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कांग्रेस पार्टी ने भारत जोड़ो यात्रा शुरू हो चुकी है। माना जाता है कि बिखरती हुई कांग्रेस पार्टी को एकसूत्र में बांधने के इरादे से राहुल गांधी भारत यात्रा पर निकले हैं और पीएम मोदी के सामने तगड़ी चुनौती पेश करना चाहते हैं, क्या ऐसा हो पाएगा, यह आने वाला समय बताएगा। आजाद भारत इससे पहले भी देश में कई राजनीतिक यात्राएं हो चुकी हैं। उनका बड़ा सामाजिक- सांस्कृतिक प्रभाव रहा है।
आज़ाद भारत में इस तरह की यात्रा 1951 में आचार्य विनोबा भावे, 1982 में एनटी रामाराव की चैतन्य रथम यात्रा, 1983 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, 2003 में वाईएसआर रेड्डी, 2013 में चंद्रबाबू नायडू, 2017 में दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा शामिल है। सिर्फ उत्तर और मध्य भारत ही नहीं दक्षिण भारत में भी यात्राओं का शानदार इतिहास रहा है। आंध्र प्रदेश की राजनीति में पदयात्रा का कुछ ऐसा इतिहास रहा है कि वहां की राजनीति में सत्ता तक पहुंचाने का सबसे सटीक तरीका पदयात्रा को माना जाता है। आइये जानते हैं देश की कुछ राजनीति यात्राओं के बारे में
सत्त में रहते हुए शुरू हुई थी ‘कांग्रेस संदेश यात्रा’
1984 में इंदिरा गांधी के निधन के बाद कांग्रेस को रिकार्ड लोकसभा सीटें मिली थीं। 1985 में मुंबई (तब बांबे) में कांग्रेस के शताब्दी सत्र में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष और नए प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ‘कांग्रेस संदेश यात्रा’ की घोषणा की थी। राजीव गांधी ने इस यात्रा का जिम्मा अखिल भारतीय कांग्रेस सेवा दल को सौंपा था। राजीव गांधी ने यात्रा के शुभारंभ के अवसर पर तत्कालीन कांग्रेस सेवा दल प्रमुख तारिक अनवर को पार्टी का झंडा सौंपा था।
इस यात्रा की शुरुआत मुंबई, कश्मीर, कन्याकुमारी और उत्तर पूर्व के राज्यों से हुई थी और इसे तीन महीने के भीतर दिल्ली के रामलीला मैदान में समाप्त किया गया था। कांग्रेस के महासचिव तारिक अनवर ने कहा कि मुझे खुशी इस बात कि है कि राजीव जी ने कांग्रेस संदेश यात्रा शुरू की थी। इस यात्रा ने सेवा दल और पार्टी के कार्यकर्ताओं को पूरे भारत को कवर करने के लिए प्रेरित किया।
सत्ता से हटने के बाद भी राजीव गांधी ने की थी यात्रा
1989 में चुनाव में हार मिलने के बाद राजीव गांधी ने साल 1990 में भारत यात्रा की शुरुआत की थी, लेकिन उन्हें इसमें सफलता नसीब नहीं हुई थी। इस दौरान राजीव गांधी ने ट्रेनों में सेंकेंड क्लास की बोगी में यात्रा की थी, लेकिन यह यात्रा उम्मीदों के मुताबिक परिणाम देने में कारगर नहीं रही। उस दौरान राजीव गांधी के नेतृत्व को लेकर कई सवाल भी उठने लगे थे।
भारत यात्रा के जरिए राजीव गांधी आम लोगों के साथ जुड़ना चाहते थे, लेकिन गुटबाजी की वजह से भारत यात्रा को सफल बनाने में कामयाब नहीं हो पाए थे। उस दौरान कांग्रेस में कई क्षत्रप थे, जिन्होंने राज्य में यात्रा कर कांग्रेस को महत्वपूर्ण जीत दिलाई है इनमें वाईएसआर रेड्डी का नाम सबसे अहम है.
1982 में एनटी रामाराव की चैतन्य रथम यात्रा ने दिलाई सत्ता
स्वतंत्रता के बाद भारतीय राजनीति में तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के संस्थापक एनटीआर को ‘रथ यात्रा’ का अग्रदूत माना जाता है। आंध्र प्रदेश में वर्ष 1982 में एनटी रामाराव ने चैतन्य रथम यात्रा निकाली। 75 हजार किलोमीटर लंबी इस यात्रा ने प्रदेश के चार चक्कर लगाए जो गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज है।
एक शेवरले वैन में बदलाव करके बने रथ में एनटीआर एक दिन में 100-100 जगहों पर रुकते। जनता इंतजार उनका करती थी, महिलाएं उनकी आरती उतारती थीं। यात्रा के बाद विधानसभा चुनाव में तेलुगुदेशम पार्टी को 294 में से 199 सीटें मिलीं और एनटीआर आंध्र प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। यात्रा के दौरान अभिनेता से राजनेता बने एनटीआर ने सड़क किनारे होटलों में खाना खाया, अपने रथ में सोए।
2002 में नरेंद्र मोदी की गुजरात गौरव यात्रा से हुई सत्ता वापसी
अपने पद से इस्तीफा देने और गुजरात विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने से नौ महीने पहले भंग करने की सिफारिश करने के बाद नरेंद्र मोदी ने ‘गुजरात के लोगों के गौरव’ की अपील करने के लिए सितंबर 2002 में गुजरात गौरव यात्रा शुरू की थी। 2002 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने और मोदी ने मुख्यमंत्री के रूप में दूसरी बार शपथ लेने के साथ यह यात्रा बड़ी सफल साबित हुई। राज्य में सांप्रदायिक दंगों के महीनों बाद दिसंबर में चुनाव हुए थे। भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले गुजरात में इसी तरह की यात्रा शुरू की और पार्टी विजयी हुई थी।
लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा ने बदल दी राजनीति की दश और दिशा
90 के दशक में एक और यात्रा ने देश में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया। जिसका प्रभाव दशकों पर रहा। वीपी सिंह के प्रधानमंत्री के काल में 25 सितंबर 1990 में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की अुगवाई में सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा की शुरुआत की थी। इस यात्रा के जरिए भाजपा ने न केवल राम मंदिर के निर्माण का मुद्दा उठाया बल्कि ‘मंडल’ की राजनीति के खिलाफ ‘कमंडल’ के दांव को आगे बढ़ाया। अयोध्या पहुंचने से पहले ही लाल कृष्ण आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया था, उस दौरान बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे। रथयात्रा के बीच राममंदिर आंदोलन में भारी संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंचे।
इस यात्रा ने मंदिर वही बनाएंगे जैसे नारों के बीच भाजपा की किस्मत के अलावा भारतीय राजनीति की दशा और दिशा को काफी बदल दिया। इसने देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की लहर पैदा की। इस यात्रा ने देश के राजनीतिक विमर्श को बदल दिया। वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 120 सीटें मिलीं, जो पिछले चुनाव से सीधे 35 अधिक थीं। 1997 में आडवाणी ने 15,000 किमी की दूरी तय करने वाली स्वर्ण जयंती रथ यात्रा में भी भाग लिया।
चंद्रशेखर की भारत यात्रा का दूरगामी असर
1983 में की गई चंद्रशेखर की भारत यात्रा की चर्चा आज भी होती है। युवा तुर्क के नाम से मशहूर और तत्कालीन जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर ने कन्याकुमारी से भारत यात्रा शुरू की थी। चंद्रशेखर ने 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक कन्याकुमारी से राजघाट तक भारत यात्रा 4260 किलोमीटर की पूरी की थी। ‘
भारत यात्रा’ नाम से उनकी इस यात्रा को भी काफी तवज्जो मिली थी। यात्रा के उद्देश्यों में ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं, सामाजिक असमानताओं और जातिवाद की जड़ को खत्म करना शामिल था। इंदिरा गांधी के खिलाफ जनमत तैयार करने में इस यात्रा ने बड़ी भूमिका अदा की थी। लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। बाद में इस यात्रा ने चंद्रशेखर को 1990 में देश के प्रधानमंत्री बनाने में बड़ी भूमिका अदा की।
वाईएसआर रेड्डी की आंध्रप्रदेश में यात्रा से मिली थी कामयाबी
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने वाईएसआर रेड्डी को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष तेलगु देशम पार्टी से लोहा लेने के लिए बनाया था। साल 2004 में वाईएसआर ने आंध्र प्रदेश में करीब 1600 किलोमीटर की पदयात्रा की और सत्ता पर काबिज हुए। वाईएसआर द्वारा किसानों और ग्रामीणों के लिए चलाई गई मुहिम शानदार तरीके से कामयाब हुई। यात्रा के दौरान वाईएसआर के चुनावी मुद्दों में मुफ्त बिजली और ऋण माफी शामिल थे, जो आम लोगों को आकर्षित करने के लिए थे।
आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस को 27 लोक सभा सीटें जिताने और यूपीए की सरकार बनाने में कारगर साबित हुए थे। वाईएसआर 5 वर्षों तक सरकार चलाने में सफल रहे थे और कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में उनकी गिनती होने लगी थी। बाद में उनके बेटे जगन मोहन रेड्डी उसी तर्ज पर आंध्र प्रदेश की यात्रा की थी और टीडीपी को हराकर सत्ता में आए थे।
दिग्विजय की नर्मदा परिक्रमा पदयात्रा कांग्रेस को मिली सत्ता
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की साल 2017 की नर्मदा यात्रा पार्टी के लिए असरदार साबित हुई थी। 192 दिन की दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के बरमान घाट पर समाप्त हुई थी। दिग्विजय सिंह ने मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 110 सीटों का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने लोगों की समस्याओं को भी सुना था।
नर्मदा नदी के दोनों किनारे करीब 3,300 किलोमीटर की यात्रा दिग्विजय सिंह ने अपने समर्थकों के साथ 6 महीने में पूरी की थी। 2018 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में इसका असर भी साबित हुआ था। कांग्रेस 230 सीटों में 114 सीटों पर जीतने में कामयाब रही, वहीं भाजपा को 56 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। बाद में 2020 में मध्य प्रदेश में गुटबाजी की वजह से 22 कांग्रेस विधायकों ने पार्टी छोड़ दी थी और सरकार अल्पमत में आने की वजह से सत्ता से दूर हो गई।
2011 में वाम मोर्चा को हराने के लिए ममता बनर्जी की पदयात्रा
महात्मा गांधी की किताब से एक सबक लेते हुए तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने जनता से जुड़ने के लिए 2011 के राज्य विधानसभा चुनावों के लिए पश्चिम बंगाल में कई बड़े पदयात्राएं निकालीं। यह उन कारकों में से एक था, जिसने टीएमसी को वाम मोर्चे को हराने में मदद की। इसने पश्चिम बंगाल में 33 साल बाद वाम मोर्चा को हराने में मदद की। इन यात्राओं से ममता बनर्जी को ‘स्ट्रीट-फाइटर’ का खिताब हासिल किया।
2017 में जगन रेड्डी की प्रजा संकल्प यात्रा ने दिलाई सत्ता
वर्ष 2009 में वाईएस राजशेखर रेड्डी की हेलीकाप्टर दुर्घटना में मौत के बाद कांग्रेस ने उनके बेटे जगनमोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाने से इन्कार कर दिया था। इसके बाद जगमोहन ने वाईएसआर कांग्रेस पार्टी बनाकर पिता की यात्रा निकाली जो उनके राजनीतिक करियर की खेवनहार बनी। 2014 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद वाईएसआर कांग्रेस पार्टी सुप्रीमो वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने 6 नवंबर, 2017 को 3,648 किलोमीटर की पैदल यात्रा (प्रजा संकल्प यात्रा) शुरू की। यात्रा के दौरान आंध्र प्रदेश के लगभग सभी जिलों को कवर किया गया। 341 दिनों में वाईएसआरसीपी प्रमुख ने 100 से अधिक जनसभाओं को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) शासन की ‘विफलताओं’ को निशाना बना गया।
रेड्डी हर दिन लगभग 15-30 किलोमीटर की यात्रा करते थे। महीनों बाद वाईएसआरसीपी ने 2019 के विधानसभा चुनावों में 175 में से 151 सीटें जीतकर शानदार जीत दर्ज की। जगहन मोहन रेड्डी की पार्टी ने लोकसभा चुनाव में राज्य की 25 में से 22 सीटों पर भी जीत हासिल की।
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