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फिरोज गांधी को भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज युद्ध छेड़ने वाला पहला व्यक्ति माना जाता है

फिरोज गांधी को भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज युद्ध छेड़ने वाला पहला व्यक्ति माना जाता है

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

फिरोज गांधी को अक्सर इंदिरा गांधी के पति और जवाहरलाल नेहरू के दामाद के रूप में याद किया जाता है। लेकिन फिरोज गांधी कौन थे? एक कांग्रेस कार्यकर्ता, एक युवा स्वतंत्रता सेनानी, एक सांसद, या सिर्फ एक और गांधी?

कौन थे फिरोज गांधी

क्या आपको पता है कि फिरोज गांधी के पूरे खानदान में किसी का सरनेम गांधी नहीं था। फिर उनका नाम अचानक से फिरोज खान से फिरोज गांधी कैसे हो गया। आइये आपको बताते चले कि फिरोज, खान से गांधी कैसे बन गए। पारसी परिवार से नाता रखने वाले फिरोज का जन्म 12 सितंबर 1912 में हुआ था और वह एक फ्रीडम फाइटर के साथ-साथ लोकसभा के महत्वपूर्ण सदस्य थे। वह प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति भी थे।

अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में फिरोज गांधी कुछ समय तक अंडरग्राउंड रहने के बाद गिरफ्तार कर लिए गए थे। रिहा होने के बाद उन्होंने 1946 में लखनऊ के अखबार नेश्नल हेराल्ड के मेनेजिंग डायरेक्टर का पद संभाला। फिरोज खान बचपन से ही थोड़े विद्रोही स्वभाव के थे। वह कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए। आजादी की लड़ाई में भी रहे और पत्रकार बने फिर घूमते-घूमते उत्तर भारत में जा बसे।

इंदिरा और फिरोज लव स्टोरी

इंदिरा गांधी जब फिरोज गांधी से मिली तो वह केवल 13-14 साल की थी और उस वक्त फिरोज की उम्र 16 साल की थी। फिरोज ने उस वक्त कई बार इंदिरा को प्रपोज किया लेकिन छोटी उम्र होने के कारण ये ममुकिन नहीं हो सका। जब दोनों की मुलाकात एक बार फिर से पेरिस मे हुई तो दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया। दोनों ने लंदन में एक ही कॉलेज से पढाई की लेकिन दोनों के रिश्ते से इंदिरा के पिता यानि की जवाहर लाल नेहरू को बहुत ऐतराज था। कैथरीन फ्रैंक की पुस्तक “the life of Indira Nehru Gandhi” में बताया गया है कि जब वह लंदन में थे तभी उनकी मुलाकात इंदिरा गांधी से हुई और दोनों ने गुपचुप तरीके से शादी कर ली थी।

फिरोज खान से ऐसे बने फिरोज गांधी

फिरोज गांधी के ससुर जवाहर लाल नेहरू उन्हें सख्त नापसंद करते थे। जीप घोटाला में नेहरू सरकार के भ्रष्टाचार के मामले उठाने के कारण नेहरू उनसे काफी नाराज थे। फिरोज गांधी को भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज युद्ध छेड़ने वाला पहला व्यक्ति माना जाता है। दोनों के अलग-अलग धर्म होने के कारण भारतीय राजनीति में खलबली मचने का डर जवाहरलाल नेहरू को सताने लगा और इस बीच नेहरू ने महात्मा गांधी से सलाह और मदद मांगी। महात्मा गांधी ने फिरोज को गांधी सरनेम दे दिया जिससे फिरोज खान, फिरोज गांधी बन गए और इंदिरा नेहरू, इंदिरा गांधी बन गईं। बता दें कि फिरोज और इंदिरा की शादी 1942 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई थी।

फिरोज गांधी के अंतिम दर्शन करने पहुंचे लोगों को देखकर पंडित नेहरू हो गए थे हैरान 

फिरोज गांधी जब अपने अंतिम दिनों में थे तब इंदिरा गांधी उनके साथ थी। 8 सितंबर 1960 को फिरोज ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। बीबीसी के मुताबिक, जब फिरोज को पहला दिल का दौरा पड़ा था तब ही उन्होंने अपने दोस्तों से हिंदू रिति-रिवाज से अंतिम संस्कार कराने को कह दिया था क्योंकि उन्हें पारसी अंतिम संस्कार का तरीका पसंद नहीं था जिसमें शव को चीलों के लिए खाने के लिए छोड़ दिया जाता है।

लेखक कैथरीन फ्रैंक ने अपने किताब ‘द लाइफ ऑफ इंदिरा नेहरू गांधी’ में भी बताया गया है कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से किया गया था। फिरोज गांधी के अंतिम दर्शन करने पहुंचे लोगों को देखकर पंडित नेहरू भी हैरान रह गए थे। बर्टिल फाक अपनी किताब फिरोज-द फॉरगॉटेन गांधी में लिखते हैं, वहां मौजूद भीड़ को देखकर नेहरू के मुंह से निकला था, मुझे पता नहीं था कि फिरोज लोगों के बीच इतने लोकप्रिय हैं।

 

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