क्या राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता देने की बात है ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 उपराष्ट्रपति के पद से वेंकैयानायडू का विदाई समारोह चल रहा था। सभी गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वेंकैया जी के राजनीतिक गुणों की चर्चा कर रहे थे। राजनीतिक गुणों के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके भाषा प्रेम की प्रशंसा की। वहां प्रधानमंत्री ने एक सूचना साझा की कि भारत सरकार ने भाषिणी के नाम से एक वेबसाइट बनाई है।

प्रधानमंत्री मोदी ने बतया कि इस वेबसाइट पर भारतीय भाषाओं की समृद्धि को प्रदर्शित किया गया है। यहां एक भारतीय भाषा से दूसरी भारतीय भाषा में अनुवाद करने की व्यवस्था है। प्रधानमंत्री इतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने मंच पर बैठे लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश से एक अनुरोध किया।

उन्होंने कहा कि संसद के दोनों सदनों में जब कोई सदस्य मातृभाषा में भाषण करें या सदस्य किसी चर्चा में हस्तक्षेप करते हैं तो कई सदस्य के भाषण से या किसी चर्चा पर उनके हस्तक्षेप से बहुत बढिया शब्द निकलते हैं। भारतीय भाषाओं के वो शब्द दूसरी भाषा के सदस्यों के लिए बहुत रुचिकर भी होता है और सार्थक भी लगता है।

प्रधानमंत्री ने मंच से ही ओम बिरला और हरिवंश से अनुरोध किया कि हमारे दोनों सदनों में ऐसे सार्थक, रुचिकर और भाषा वैविध्य को लेकर आनेवाले भारतीय भाषा के शब्दों का संग्रह करने की व्यवस्था की जाए। उसके बाद प्रतिवर्ष ऐसे शब्दों का एक संग्रह प्रकाशित करने की परंपरा का आरंभ किया जाए। प्रधानमंत्री मोदी ने वेंकैया जी के मातृभाषा प्रेम के हवाले से एक बेहद गंभीर बात तो की ही, भारतीय भाषाओं के शब्दकोश बनाने की पहल करने का सुझाव भी दे दिया।

पिछले दिनों हिंदी दिवस के अवसर पर सूरत में आयोजित हिंदी दिवस समारोह में गृह मंत्री अमित शाह ने शब्द सिंधु के नाम से एक खोजपरक डिजीटल शब्दकोश के पहले संस्करण का शुभारंभ किया। ये शब्दकोश हिंदी से हिंदी का है। इसमें शब्दों के अर्थ और आवश्यकतानुसार वाक्य प्रयोग भी दिए गए हैं।

इसमें अभी इक्यावन हजार शब्द डाले गए हैं। भविष्य में इस शब्दकोश में शब्दों की संख्या बढ़ाई जाएगी। इसमें विज्ञान. तकनीक, न्यायिक प्रक्रिया और प्रोद्योगिकी से जुड़े शब्दों को शामिल किया गया है। ये शब्दकोश गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग, शिक्षा मंत्रालय के केंद्रीय हिंदी निदेशालय और विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध होने की बात कही गई । इस शब्दकोश में भारतीय भाषाओं के शब्दों को भी शामिल करने का लक्ष्य रखा गया है। शब्दकोश में भारतीय भाषाओं के शब्दों को शामिल करने में एक असुविधा हो रही है।

हिंदी के कई शब्द ऐसे हैं जिनका भारतीय भाषाओं और बोलियों में अलग अर्थ होता है। उदाहरण के तौर पर अगर शिक्षा शब्द को लिया जाए तो हिंदी में इसका अर्थ होता सिखाना। कुछ भारतीय भाषा और बोलियों में सिखाने का प्रयोग दंड के तौर पर भी होता है। इस शब्दकोश को बनाने वालों के सामने ये बड़ी चुनौती है कि किस प्रकार से भारतीय भाषाओं और हिंदी के शब्दों में साम्य स्थापित किया जाए ताकि अर्थ का अनर्थ हो।

बताया गया कि भाषा विशेषज्ञ इस पर कार्य कर रहे हैं। इस शब्दकोश का एक लाभ ये है कि सरकारी कार्यालयों में जिस प्रकार की हिंदी का प्रयोग होता है उसको सरल बनाया जा सकेगा। दूसरी भाषाओं से हिंदी में अनुवाद करने में भी ये शब्दकोश सहायक सिद्ध होगा। इस शब्दकोश को अद्यतन करने के लिए विशेषज्ञों और तकनीकविदों की एक समिति निरंतर कार्य कर रही है। इसका संकेत इस बात से भी मिलता है कि अभी इसका पहला संस्करण जारी किया है और भविष्य में इसके अनेक संस्करण प्रकाशित होते रहेंगे।

सूरत के सम्मेलन में ही राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने भी भारतीय भाषाओं के शब्दों को लेकर अपनी प्राथमिकता बताई। उनके मुताबिक भारतीय भाषाओं के सात सौ से अधिक शब्दों का चयन किया गया है जो रुचिकर और सार्थक शब्द हैं। इन शब्दों का उपयोग सभी भाषाओं में हो सकता है।

इन प्रयासों से ये लगता है कि भारतीय भाषाओं और हिंदी को समृद्ध करने के लिए सरकारी स्तर पर गंभीरता से प्रयास हो रहे हैं। स्वाधीनता के अमृतकाल में इस तरह की बातों के सामने आने से मातृभाषा या भारतीय भाषाओं के लिए सरकार के स्तर संगठित प्रयास भाषा-प्रेमियों के साथ साथ बौद्धिक जगत के लिए भी संतोष के संकेत हैं। हिंदी में शब्दकोश की परंपरा को पुनर्जीवित करके भाषा को समृद्ध किया जा सकता है।

अब भी हिंदी के शब्दकोश की बात होती है तो दशकों पूर्व प्रकाशित ज्ञानमंडल शब्दकोश या फादर कामिल बुल्के के शब्दकोश या फिर हरदेव बाहरी के शब्दकोश तक बात आकर रुक जाती है। अपने देश में शब्दकोश संस्कृति सशक्त नहीं हो पाई है। शब्दों के अर्थ और उसकी उत्पत्ति को लेकर हम सजग नहीं रहते हैं।

हिंदी या भारतीय भाषाओं में जो भाषाई समृद्धि है उसको जानने समझने के लिए शब्दकोश संस्कृति को पुनर्जीवित करना होगा। इससे न केवल अकादमिक जगत में बल्कि पूरे भारतीय समाज में सांस्कृतिक चेतना का विकास होगा। शब्दकोश को अद्यतन करने और उसमें अन्य भाषाओं के शब्दों को शामिल करके न केवल भाषा को समृद्ध किया जा सकता है बल्कि इसका दायरा भी बढ़ाया जा सकता है। एक तरह से देखें तो ये औपनिवेशिक भाषाओं के चंगुल से मुक्ति का अभियान भी है।

इस संबंध में फ्रांस का उदाहरण दिया जा सकता है। सूरत में एक चर्चा के दौरान पता चला कि फ्रांस के लोग अपनी भाषा और मातृभाषा को लेकर कितने सजग हैं। एक मित्र ने बताया कि फ्रांस में अगर आप रास्ता भटक जाएं तो कभी भी किसी फ्रेंच से अंग्रर्जी में रास्ता न पूछें। वो बिना बताए आगे बढ़ जाएगा।

आप भले ही हिंदी या भोजपुरी या तमिल में बात करें वो ठहरकर आपके हावभाव से आपके प्रश्नों को समझने का प्रयास करेंगे और आपकी सहायता भी करेंगे। जैसे ही आपने अंग्रेजी में कुछ कहा कि वो आपसे बात किए बिना आगे बढ़ जाएंगे। लेकिन स्वाधीनता के पचहत्तर वर्ष बीतने के बाद भी हमारे देश में विदेशी भाषा की अहमियत बनी हुई है।

अगर इसके कारणों की पड़ताल करेंगे तो इसके पीछे स्वाधीनता के बाद के शीर्ष भारतीय नेतृत्व की कमजोरी और उनका विदेशी भाषा प्रेम ही दिखाई पड़ता है। भाषा के नाम पर इस देश ने बहुत राजनीति देखी, भाषा को लेकर हिंसा भी हुई है, भाषाई आधार पर राज्यों का विभाजन भी हुआ है। दो भाषाओं के बीच कटुता भी देखी गई है।

पूर्व में साहित्य अकादमी के चुनाव के दौरान इस तरह की कटुता खुलकर सामने आती रही है। हिंदी का विरोध भी देखा गया। हिंदी विरोध के पीछे राजनीति रही है जिसने शिक्षा और अकादमिक जगत में भाषाई विष फैलाने का काम किया है। अब इस विष को खत्म करने का कार्य आरंभ हुआ है। हिंदी नहीं बल्कि सभी भारतीय भाषाओं को साथ लेकर चलने की नीति पर कार्य हो रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता देने की बात की गई है। इस दिशा में समग्रता में कार्य भी हो रहा है।

यह अनायस नहीं है कि प्रधानमंत्री एक सभा में भारतीय भाषाओं के शब्दकोश बनाने की बात करते हैं। इसके लिए संसद के दोनों सदनों के जिम्मेदार अधिकारियों से अनुरोध करते हैं और दूसरी तरफ गृह मंत्री हिंदी शब्दकोश को अद्यतन करने का उपक्रम आरंभ करते हैं। उसके क्रियान्वयन की जानकारी राष्ट्र को देते हैं।

यह सरकार का भाषा के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन भी है और अपनी संस्कृति पर अभिमान भी। अपनि संस्कृति पर अभिमान के इस अभियान में हर भारतीय नागरिक को जुड़ना चाहिए और आनेवाली पीढ़ी को शब्दकोश से संपर्क बनाने और बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।

 

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