सियासत का सीमांचल क्यों बना केन्द्र?

सियासत का सीमांचल क्यों बना केन्द्र?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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बिहार में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और भारतीय जनता पार्टी की राहें जुदा होने के बाद सियासी गणित पूरी तरह बदल गया है। दोनों तरफ से जुबानी जंग के दौर के बीच अब मैदान पर ताकत दिखाने की कवायद तेज कर दी गई है। केंद्रीय मंत्री अमित शाह 23 और 24 सिंतबर को बिहार के पूर्णिया और किशनगंज में बड़ी रैली करने वाले हैं।

माना जा रहा है कि इस रैली के जरिए भाजपा मिशन 2024 की शुरुआत करेगी। इधर अब महागठबंधन भी मैदान में ताकत दिखाना चाहता है। लेकिन सवाल यह है आखिर बीजेपी और महागठबंधन की और से सीमांचल को ही क्यों चुना गया? और महागठबंधन की जवाबी रैली के क्या मायने हैं?

सीमांचल में क्यों हो रहा है शक्ति प्रदर्शन?

सीमांचल में विधानसभा की 24 और लोकसभा की चार सीटें हैं। दोनों बीजेपी और महागठबंधन सीमांचल पर फोकस इसलिए कर रहे हैं कि सीमांचल का मैसेज पूरे प्रदेश में जा सके। पश्चिम बंगाल का कुछ इलाका भी सीमांचल से सटा है। अगर यहां झंडा बुंलद होता है तो यकीनन पश्चिम बंगाल में भी कुछ फायदा मिल सकता है। शायद यही वजह है कि बीजेपी ने यहां से मिशन 2024 के शंखनाद की प्लानिंग की है।

केंद्रीय मंत्री अमित शाह इस इलाके में दोन दिनों तक प्रवास करेंगे और बड़ी रैली को संबोधित करेंगे। भाजपा की तरफ से रैली को सफल बनाने की पूरी तैयारी की जा रही है। इसके साथ ही यह दावा भी है कि रैली ऐतिहासिक होगी। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सिर्फ अररिया लोकसभा सीट पर सफलता मिली थी, जबकि पूर्णिया और कटिहार जदयू के खाते में गई थी और किशनगंज से कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी।

रैली के जरिए ताकत दिखाना चाहता है महागठबंधन

केंद्रीय मंत्री अमित शाह के सीमांचल दौरे के बाद अब महागठबंधन रैली का जबाव रैली से देने के मूड में है। दरअसल महागठबंधन किशनगंज, अररिया और कटिहार में जुटान कर शक्ति प्रदर्शन को जरिए कार्यकर्ताओं को सक्रिया भी करना चाहता है। जबावी रैली के जरिए बिहार में महागठबंधन की क्या ताकत है इसको भी दिखाने की कोशिश की जा रही है।

सीमांचल पर क्यों है जोर?

दोनों गठबंधनों की तैयारी इस लक्ष्य से की जा रही है कि सीमांचल का संदेश पूरे राज्य में जाए। भाजपा आशान्वित है कि अगर इस इलाके में ध्रुवीकरण होता है तो बिहार के साथ पश्चिम बंगाल में भी लाभ मिलेगा। यही कारण है कि अमित शाह ने अपने दो दिनों के प्रवास के लिए इसी इलाके को चुना है। एआइएमआइएम की सक्रियता से भी भाजपा को लाभ मिलने की उम्मीद है। भले ही एमआइएमआइएम के पांच में से चार विधायक राजद में चले गए हों, मुस्लिम आबादी के बीच उसके प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता है।

किशनगंज, कटिहार और अररिया में होगी रैली

भाजपा की ध्रुवीकरण की आस को महागठबंधन अपने लिए खतरा समझ रहा है। एमआइएम की सक्रियता से उसे काफी नुकसान हुआ है। 2020 के विधानसभा चुनाव में आठ से अधिक सीटों पर राजद और कांग्रेस की हार एमआइएम के चलते हुई थी। भाजपा की रैली तो सिर्फ पूर्णिया में हो रही है। महागठबंधन ने पूर्णिया के साथ किशनगंज, कटिहार और अररिया में भी रैली करने का फैसला किया है। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह ने कहा-हमलोग सामाजिक सदभाव के लिए रैली करेंगे।

कितने मुस्लिम वोटर 

एक अनुमान के मुताबिक किशनगंज में 70, अररिया 45, कटिहार में 40 और पूर्णिया 30 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं। ओवैसी के प्रवेश से पहले यह तबका कांग्रेस, राजद और जदयू को पसंद करता था। लेकिन 2020 के चुनाव में इन तीनों दलों को मिला कर उतना भी वोट नहीं मिला, जितना अकेले ओवैसी बटोर ले गए। जबकि 2015 में जब जदयू भी महागठबंधन के साथ था, उसे 24 में से 18 विधानसभा सीटों पर सफलता मिली थी। भाजपा के हिस्से में छह सीटें आई थीं।

इस इलाके में फर्क नहीं 

2015 में जदयू अलग था। 2020 में वह भाजपा के साथ था। फिर भी भाजपा को 24 में से छह विधानसभा सीटों पर ही सफलता मिली। पार्टनर बदलने के बाद भी जदयू की 2015 की छह सीटें 2020 में भी छह ही रही। जदयू से दोस्ती के बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा के परिणाम पर फर्क पड़ा। 2014 के मोदी लहर में भी भाजपा लोकसभा की चारों सीट हार गई थी। 2019 में जदयू के साथ आने पर उसे अररिया में सफलता मिली। जदयू को दो और कांग्रेस को एक सीट पर सफलता मिली।

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