क्या एक बार पुनः असम आना ही होगा !
यात्रा वृतांत राजेश पाण्डेय की लेखनी से
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
असम एक बार पुनः आना ही होगा। लोकमंथन-2022 में भाग लेने हेतु गुवाहाटी आना हुआ, लेकिन किंवदंती के अनुसार हमारी आत्मायें वहीं ठहर गई है, इस पहले सफर में पहाड़ी ढलानों पर उगे पेड़ों और उनके सुर्ख फूलों के मोहपाश में वह फंस चुकी है, उसे वापस लाने के लिए हमें आना ही होगा! वहां यादें ठिठककर रह जाता है, यह फैसला करना मुश्किल है। सफर में चलती रेलगाड़ी से बाहर दिखती हरियाली मन के कई भावों को खोलती रही।रेलमार्ग से यात्रा कई मायनों यादगार रही,सफर कैसे गन्तव्य तक पहुँच गया,यह अपने-आप में रहस्य बना रहा।
समुद्रतल से 1200 मीटर की ऊंचाई पर बसे असम की पहाड़ियों से सुदूर अरुणाचलप्रदेश में पूर्वी हिमालय और उसके पार नमचा बरवा की धवल चोटियों के दर्शन होते हैं। पहाड़ों पर फूलों की क्यांरियां किसी ने सजायी हैं या बस यों ही मनमाने ढंग से वो रंगीन आभा चारों तरफ फैल गई है, इसे बताने वाला वहां कोई नहीं है।
उत्तरपूर्व में किस्सें हैं, कहानियां हैं, विश्वास है, आस्थाा है और वो खोयी-खोयी-सी, चुप-चुप-सी पगडंडियां हैं जिन पर हमें बढ़ते जा रहे है। उस सुदूर असम गांव में किसी मोड़ या पहाड़ी के मुहाने पर, किसी झरने के सुरताल में खोयी अपनी आत्मा को वापस लाने की खातिर ….
एक लोकविश्वास यह भी है कि मृतात्माएं अपने अंतिम सफर में इस गांव में ठहरती हैं, सुस्ताती हैं और फिर स्वर्ग की राह पर आगे बढ़ती हैं। यानी कुछ तो है यहां जो मन की गहराइयों तक को लुभाता है, आकर्षित करता है और बिना यहां ठहरे आगे बढ़ने नहीं देता।
जनजातिय समाज की दंतकथाओं, रीतियों-रिवाजों और परंपराओं में झांकने के लिए असम तक चले आए हैं हम।
मिथकों से परे है उत्तर पूर्व
कुछ मिथक हैं जो उत्तरपूर्व आने पर चटकते हैं। इस लिहाज से असम सबसे ऊपर रखा जा सकता है। इसकी तंग सड़कों पर जैसे हर घड़ी फैशन परेड गुजरती है, खूबसूरत युवतियां चुस्त। फैशनेबल वेस्टैर्न ड्रैस में आधुनिकता की मिसाल की तरह घूमती हैं और लड़के भी कहां पीछे हैं उनसे। एक से एक हेयर स्टाइल, टैटू, पियर्सिंग से सजे-धजे चलते-फिरते मॉडल। इसलिए जो टूरिस्ट यह सोचकर यहां आते हैं कि सड़कों पर तीर-कमान, भाले ताने और पारंपरिक परिधानों में लिपटे आदिवासी दिखेंगे उन्हेंै जोर का झ्टाका लगता है। जनजातिय जनजीवन देखने के लिए सूदरवर्ती जिलों की बस्तियां कम नहीं हैं। यहां का समाज अपनी गर्मजोशी और मेहमाननवाज़ी के लिए विख्यात है। लेकिन स्थांनीय परंपराओं और आचार-व्यवहार, रवायतों की जानकारी के अभाव में कई बार आपको लग सकता है कि इसे कैसे टटोला जाए। ऐसे में बेहतर होगा की पूरी योजना के साथ पर निकलें।
टूरिज़्ोम की जड़ें पूरे उत्तरपूर्व में बहुत गहरी नहीं हैं मगर यहां का उत्सुक समाज आपको अकेला या बेगाना महसूस नहीं होने देगा। यहाँ के समाज की भाषा और बोलियां अनजानी हो सकती हैं लेकिन हर किसी की कोशिश रहती है कि वो आपकी बात को भरपूर समझे और आपके सवालों के जवाब दे। सुपर मार्केट,पान बाज़ार,फैंसी बाज़ार, में हमने इस समीकरण को समझा और सराहा। किसी भी दूसरे हिल स्टेशन की तरह नगर की सड़कें भी दिनभर ट्रैफिक जाम से उलझती हैं, और सुपर मार्केट जैसे इलाके में भीड़-भाड़ भी कुछ ज्यादा रहती है।
उत्सवों का राजा हैं उत्तरपूर्व।
किराने, कपड़ों और कुछ देसी-विदेशी आइटमों से पटी पड़ी दुकानों को जनता लांघकर पहुंच जाते है। इस बाजार के सबसे आकर्षक कोने में, यह था मार्केट। बिल्कुल सही सुना-समझा आपने,समाज की धड़कनों को यहां सलीके से महसूस किया जा सकता है। बाज़ार की कमान मुख्य रूप से औरतों के हाथों में है और दुर्लभ किस्म के जिनिस को ट्रे में सजाकर बेचने के लिए रखा गया है। साथ ही बिछी है फलों और सब्जियों की दुकानें, बांस का सिरका, बांस का अचार और हर सब्जी, शोरबे में मिलाकर पकाने के लिए ताज़ा जूस।
पूर्वोत्तर में ज्यादातर आदिवासी धर्मांतरित ईसाई हैं लेकिन अपने मूल प्राकृतिक धर्म और पुरानी परंपराओं से आज भी जुड़े हैं। यही कारण है कि पूरे बारह महीने यहाँ की धरती पर उत्सवों के गान सुनायी देते हैं, ज्यादातर पर्व खेती-बाड़ी से जुड़े हैं और खाने-पीने, नाचने-गाने से लेकर सुरूर और मौज-मस्तीा के लिए जाने जाते हैं। समाज की मुक्त जीवनशैली को भी दर्शाते हैं ये पर्व लेकिन उनके खुलेपन को किसी आमंत्रण की तरह लेने की भूल कतई नहीं करनी चाहिए। और यह जानने के बाद तो बिल्कुल नहीं कि एक जमाने में सिर कलम करने के लिए कुख्यात थे उत्तरपूर्व के आदिवासी !
यहाँ पर्यटन का अलग ढर्रा और अंदाज़ है
पूर्वोत्त र के राज्योंो में टूरिज़्मम की उस रटी-रटाई लीक से अलग हटकर सोचें जो देश के दूसरे पर्यटन ठिकानों में आम होती है। मसलन, यहां लग्ज़री ट्रैवल नाम की कोई चीज़ नहीं होती लेकिन उसके बावजूद कुछ होता है जो वाकई अलग और खास आकर्षण लिए होता है। इतने सुदूरवर्ती राज्य में सफर करना ही अपने आप में किसी चुनौती से कम नहीं है, ऐसे में फाइव स्टार सुविधाओं की अपेक्षा करना तो बेमानी होगा। दिल और दिमाग खुले रखें और स्थाननीय लोगों की मेहमाननवाज़ी का आनंद लें। यहां के हिसाब से ट्रैवल करें, सवेरे जल्दी शुरूआत करें और अंधेरा होने के बाद सड़कों की बजाय अपने होटल में लौट जाएं।
महानगरों की तरह यहां नाइटलाइफ नहीं होती, प्रकृति की लय-ताल के संग चलने वाले इस समाज के सुर से सुर मिलाकर चलने में सचमुच आनंद भी है। ऐसा नहीं है कि यहां आप बोर हो जाएंगे, सच तो यह है कि देश के बाकी भागों में अगर आपको उत्सव मनाने के लिए किसी बहाने का इंतजार करना होता है तो उत्तरपूर्व में आपको महसूस होगा जैसे पूरा जीवन ही एक उत्सव है और राज्यों का हर इलाका, हर आदिवासी समाज अपनी-अपनी परंपराओं का शिद्दत से पालन करते हुए इतने किस्म के पर्व मनाता है कि उत्तरपूर्व को उत्सवों का राजा कहना गलत नहीं होगा। इस लिहाज से यहां साल के किसी भी महीने आया जा सकता है, किसी न किसी प्रांत में, कोई न कोई उत्सव चल ही रहा होगा जिसका साक्षी बना जा सकता है।
यहाँ सूरज को देखना अद्भुत अनुभव होता है, जब सांझ धीरे-धीरे पेड़ों से सरकती हुई बांस की टहनियों पर से गुजरते हुए हरी घास पर ओस की बूंदों में सहमकर बैठ जाती है। क्षितिज भी यहां कहीं दूर नहीं होता, एकदम करीब मानो हाथ बढ़ाकर सूरज के उस विशालकाय गोले को छूआ जा सकता है। यहां आकर यकीन हो जाता है कि सूरज का ठिकाना वाकई यहीं कहीं है, इसी पूरब की जमीन में|
आपका आना और मौसम
उत्तरपूर्व में मई से सितंबर तक बारिश रहती है, जून-जुलाई के महीने सबसे ज्यादा बारिश वाले होते हैं। अक्टूबर से मौसम सुहाना हो जाता है और दिसंबर से फरवरी तक यहां सर्दी का मौसम होता है जिनमें पर्यटन गतिविधियां सबसे ज्या दा रहती हैं।
उत्तरपूर्व पहुंचने के लिए सबसे आसान विकल्प है गुवाहाटी का गोपीनाथ बरदलोई हवाई अड्डे तक आना जो दिल्ली, कोलकाता, जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ा है। दूसरे,दिल्ली-डिब्रूगढ़ राजधानी और ब्रह्मपुत्र मेल समेत कई रेलगाड़ियां गोवाहाटी से भी संपर्क सुविधा देती हैं। और अगर आपको सड़क मार्ग पसंद है तो गोवाहाटी तक चले आएं जो देशभर के कई राज्यों से हवाई और रेल मार्ग से जुड़ा है।
चाय बागानों और चाय फैक्टीरियों के बीच से होकर, कहीं घने जंगलों और वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी से होकर गुजरने वाली सड़कें आपकी यात्रा को यादगार बनाएंगी, सचमुच।
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