लोकमंथन 2024 में हम सभी एक बार फिर मिलेंगे !
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
लोकमंथन 2022 में भाग लेने हेतु गुवाहाटी आना हुआ. लोकमंथन 2022 के चौदह सत्र भारत वर्ष के सभ्यता व संस्कृति को चरितार्थ करते हुए इसके विभिन्न आयाम व पहलुओं को विस्तार से बताया। विशेषकर अपने बीज व्यक्तित्व में प्रो. कपिल तिवारी जी ने भारत की वाचिक लोक परंपरा को विस्तार से बताते हुए हजारों वर्ष की संस्कृति पर प्रकाश डाला।
वहीं अंतिम सत्र में सरसंघचालक दत्तात्रेय हसबोले ने राष्ट्र के मूल में जन, भूमि और संस्कृति को इसका मूल तत्व बताया। लोकमंथन के चौदह सत्रों को वक्ताओं एवं प्रबुद्ध जनों के द्वारा संचालन किया गया। देश के कोने-कोने से आए लगभग 700 प्रबुद्ध व्यक्तियों ने इन सभी सत्रों का मनन किया।
जबकि सांध्य बेला में अष्टलक्ष्मी राज्यों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का सभी ने जमकर लुफ्त उठाया।
लोकमंथन 2022, सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए काम करने वाले बुद्धिजीवियों और चिकित्सकों को एक साथ लाने वाला चार दिवसीय सम्मेलन समाप्त हो गया है।
चौथे दिन लोकमंथन ने विभिन्न जनजातियों और जातियों के विवाह अनुष्ठानों का प्रदर्शन किया। सामान्य विवाह परंपराओं की सांस्कृतिक प्रस्तुति छत्तीसगढ़ और उसके बाद मणिपुर, असम, राजस्थान और केरल द्वारा की गई।
लोक परंपरा में संस्कार और कार्तव्य की भावना: भारतीय समाज में औद्योगिक जातियों के संदर्भ में, ‘लोक परंपरा में पर्यावरण और जल संरक्षण’ और ‘लोक परंपरा में पर्यावरण और जैव विविधता’ विषयों पर विचार-मंथन सत्र आयोजित किए गए।
लोमंथन-लोकपरंपरा का उत्सव आज समापन समारोह के साथ संपन्न हुआ। इस अवसर पर केरल के माननीय राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान ने ‘मुख्य अतिथि’ के रूप में शिरकत की और कई अन्य सम्मानित गणमान्य व्यक्तियों ने मंच की शोभा बढ़ाई।
लोकमंथन 2022 के तीसरे संस्करण ने उत्तर पूर्व भारत की विविध संस्कृति और परंपराओं को गति देने के लिए एक मील का पत्थर के रूप में कार्य किया है। लोकमंथन, 2022 के परिसर में लोगों की संख्या में वृद्धि हुई और इसे व्यापक मीडिया कवरेज मिला।
बहरहाल लोकमंथन 2022 इस विश्वास के साथ समापन हो गया कि हम सभी एक बार फिर 2024 में मिलेंगे।
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