बिहार में नर देवी मंदिर में शाम ढलने के बाद होते हैं अलौकिक चमत्कार
पटना के छोटी पटनदेवी में कैसे होती है मां दुर्गा के लिए हवन?
महासप्तमी पर पटना में खुल गए मां के पट, घर बैठे आप भी करें दर्शन
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत नेपाल सीमा पर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घने वन क्षेत्र में प्राचीन काल से आस्था का महा केंद्र नर देवी मंदिर स्थापित है. शारदीय और चैत्र नवरात्र में सैकड़ों भक्तों की भारी भीड़ यहां प्रतिदिन उमड़ती है. किंतु सालों भर माता के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है. भक्तों का मानना है कि माता के दरबार में पहुंचने मात्र से ही उनकी मन्नत पूरी हो जाती हैं और उनके दुखों का निवारण हो जाता है. भक्तों की माने तो पूर्व समय में मंदिर की परिक्रमा माता की सवारी बाघ द्वारा प्रतिदिन सुबह शाम की जाती थी. भक्त शाम के बाद मंदिर में जाने से गुरेज किया करते थे.
नर बलि के कारण पड़ा नाम नर देवी
जानकारों की मानें तो नर देवी मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है. इतिहास के दो वीर योद्धा आल्हा उदल द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गयी थी. ऐसी मान्यता है कि बुंदेलखंड के राजा जासर के दो वीर और प्रतापी पुत्रों आल्हा और उदल द्वारा घने जंगल के बीच इस मंदिर में उनकी पूजा-अर्चना की जाती थी और वे श्रद्धा भाव से माता की पूजा में लीन रहा करते थे. पूजा समाप्त होने पर आल्हा उदल द्वारा माता के चरणों में अपने शीश की बलि दी जाती थी. किंतु माता का आशीर्वाद से उनके सिर फिर जुड़ जाते थे. नर बलि के कारण मंदिर का नाम नर देवी पड़ा.
मंदिर पहुंचने वाले भक्तों की मन्नतें होती हैं पूरी
नर देवी मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. दूर-दूर से भक्त यहां सालों भर माता के दर्शन को पहुंचते हैं. भक्तों की मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से उनके दुखों का निवारण हो जाता है. इस बाबत पूछे जाने पर मंदिर के पुजारी खाटू श्याम पूरी ने बताया कि आल्हा उदल द्वारा मंदिर की स्थापना की गयी थी. मंदिर की परिक्रमा बाघ द्वारा की जाती थी. परिक्रमा के बाद बाघ जंगल में वापस चला जाया करता था. किंतु कभी किसी भक्त के साथ कोई घटना नहीं घटी. चैत्र और शारदीय नवरात्र में वाल्मीकिनगर हरनाटांड़ थरुहट क्षेत्र और पड़ोसी देश नेपाल के अलावा उत्तर प्रदेश से भी भारी संख्या में भक्त माता के दर्शन को यहां पहुंचते हैं.
असाध्य रोग की दवा है अमृत कुआं का पानी
ऐसी मान्यता है कि मंदिर परिसर में स्थित कुआं जिसे अमृत कुआं कहा जाता है. जिससे पानी आज भी पूरी तरह स्वच्छ और निर्मल है. जिसका सेवन करने से कई असाध्य रोगों से लोगों को निजात मिल जाती है. मंदिर पहुंचने वाले भक्त अमृत कुआं का पानी का सेवन करने से नहीं चूकते. इस पानी को माता का प्रसाद भी माना जाता है.
पटना के छोटी पटनदेवी में कैसे होती है मां दुर्गा के लिए हवन?
नवरात्र में महानवमी को हवन करने का विधान है. आदि ग्रंथों में ऐसा बताया गया है कि हवन में दिए गए हविष्य को अग्नि देव जिस देवता के नाम से हवन किया जाता है उन तक उनका अंश पहुंचा देते हैं. ऐसे में पटना की नगररक्षिका पटनदेवी को प्रसन्न करने के लिए मंदिर में हवन का आयोजन किया जाता है. यहां मंदिर परिसर में योनिकुंड है. ऐसी मान्यता है कि इस हवन कुंड से डाली गयी सभी सामग्री पाताल चली जाती है. कुंड से आज तक कभी विभूति नहीं निकाली गयी है. महानवमी को यहां बड़ी संख्या में भक्त हवन के लिए आते हैं.
महत्वपूर्ण है नवरात्रि में हवन
नवरात्र में नौ दिनों के व्रत के बाद नवमी को हवन करने का बड़ा महत्व है. हवन करने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है. मां के कई ऐसे भक्त हैं जो व्रत रखने के बाद नवमी को सीधे पटनदेवी में हवन के लिए आते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन पटनदेवी के दर्शन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. पटनदेवी में वैष्णव और तांत्रिक दोनों विधि से मां की पूजा होती है. दोनों पद्दतियों संगम नवरात्र में देखने को मिलता है. यहां हवन में काले तील, अरवा चावल, मधु, जटामसी, धुअन, गुगुल आदि का प्रयोग किया जाता है. हालांकि हवन से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना काफी जरूरी है. बिना इन बातों का ध्यान रखे हवन करने से पूरे फल की प्राप्ति नहीं होती है.
हवन से पहले रखें इन बातों का ध्यान
मां को प्रसन्न करने से हवन करने से सबसे पहले उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहने. इसके बाद दैनिक पूजा कर लें. मां के किसी मंत्र का जप करें. जप के लिए लाल चंदन के माला का इस्तेमाल करें. हवन के बीच में किसी हाल में बोलना नहीं चाहिए. जिस हवन कुंड में हवन किया जा रहा हो उसका पंचभूत संस्कार जरूर करना चाहिए. हवन कुंड पर गाय का गोबर या मिट्टी से लेप करना चाहिए. मां को प्रसन्न करने के लिए सप्तशती के मंत्रों से हवन करना चाहिए.
महासप्तमी पर पटना में खुल गए मां के पट, घर बैठे आप भी करें दर्शन
उत्साह लोगों में दिख रहा है. शाम होते ही लोग सड़कों पर अपने परिवार के साथ घूमने के लिए निकल गये हैं. महासप्तमी के दिन मां का पट खुलने के साथ शहर का माहौल भक्तिमय हो उठा है. भक्त पूजा व दर्शन के लिए पहुंचने लगे हैं.
मां दुर्गा की पूजा पंडालों व मंदिरों से श्रद्धालु पारंपरिक ढोल-बाजे व वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच कर रहे हैं. काफी धूमधाम से बेल को लाकर पूजा अर्चना के बाद मां का पट खोला गया. इस दौरान जय माता दी के जयघोष व भक्ति गीतों से शहर भक्तिमय वातावरण में डूब गया. पूजा पंडालों की सजावट लोगों को काफी आकर्षित कर रही है.
मां दुर्गा की पूजा पंडालों व मंदिरों से श्रद्धालु पारंपरिक ढोल-बाजे व वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच कर रहे हैं. काफी धूमधाम से बेल को लाकर पूजा अर्चना के बाद मां का पट खोला गया. इस दौरान जय माता दी के जयघोष व भक्ति गीतों से शहर भक्तिमय वातावरण में डूब गया. पूजा पंडालों की सजावट लोगों को काफी आकर्षित कर रही है.
गोसाई टोला में माता के भक्तों के द्वारा भव्य पंडाल का निर्माण किया गया है. यहां शाम होने के बाद से भक्तों की काफी भीड़ जमा है. यहां अष्टमी को काफी भीड़ होने की संभावना है.
दरियापुर में मां की भव्य पूजा की जा रही है. यहां सुबह से ही भक्तों की भीड़ पूजा करने के लिए लगी है. मंदिर समिति के द्वारा भक्तों के भीड़ को नियंत्रित करने के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं.
बहादुरपुर में मां की प्रतिमा का निर्माण काफी वर्षों से किया जा रहा है. यहां आसपास की लोगों की बड़ी आस्था है. पंडाल में शाम से लोगों की काफी भीड़ है.