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'अल्पसंख्यकों को ना संघ से खतरा और ना हिंदुओं से'- मोहन भागवत - श्रीनारद मीडिया

‘अल्पसंख्यकों को ना संघ से खतरा और ना हिंदुओं से’- मोहन भागवत

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

विजयादशमी के मौके पर नागपुर में आयोजित आरएसएस के कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कई बातें कहीं। भागवत ने संघ पर सवाल उठाने वाले लोगों को भी जवाब दिया।

‘संघ के खिलाफ प्रचार का प्रभाव हुआ कम’

भागवत ने विरोधियों को जवाब देते हुए कहा कि संघ के खिलाफ ईर्ष्या और स्वार्थ के आधार पर चल रहे प्रचार का असर अब खत्म हो गया है। क्योंकि संघ की समाज में पहुंच अधिक हो गई है। इससे संघ की शक्ति में भी इजाफा हुआ है। उन्होंने कहा कि संघ समाज को एक संगठित ताकत, हिंदू संगठन के रूप में विकसित करने का काम करता है। हम उन सभी को संगठित करते हैं जो हिंदू धर्म, संस्कृति, समाज और हिंदू राष्ट्र के विकास की रक्षा के इस विचार को स्वीकार करते हैं।

‘अल्पसंख्यकों को संघ से खतरा नहीं’

भागवत ने आगे कहा, ‘कुछ लोगों को डरा-धमका कर कहा जा रहा है कि उन्हें हमारे या संगठित हिंदुओं के कारण खतरा है। यह न तो संघ का स्वभाव है और न ही हिंदुओं का। संघ भाईचारे, मित्रता और शांति के पक्ष खड़ा रहता है।

‘हर जगह हिंदू राष्ट्र की अवधारणा की चर्चा’

उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्र की अवधारणा की चर्चा हर तरफ हो रही है। इसको लेकर कई सहमत भी हैं, लेकिन ‘हिंदू’ शब्द के विरोध में हैं। वे लोग दूसरे शब्दों का उपयोग करना पसंद करते हैं। हमें इसमें कोई आपत्ति नहीं है। अवधारणा की स्पष्टता के लिए हम अपने लिए हिंदू शब्द पर जोर देते रहेंगे।

तथाकथित अल्पसंख्यकों से कुछ विशेष लोग हमसे मुलाकात कर रहे हैं, संघ के पदाधिकारियों के साथ विचार-विमर्श हो रहा है और यह जारी रहेगा। यह नया नहीं है। इसकी शुरुआत श्री गुरुजी के समय में ही हुई थी। हमें भारत को समझना चाहिए, उसका सम्मान करना चाहिए। हमें भारत का होना चाहिए। संघ का विजन भी राष्ट्रीय एकता और सद्भाव है। इसमें संघ का कोई दूसरा इरादा या निजी स्वार्थ नहीं है।

जनसंख्या असंतुलन से बने कोसोवो व दक्षिण सूडान जैसे नए देश

मोहन भागवत ने राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ (RSS) के स्‍थापना दिवस के अवसर पर नागपुर में देश की बढ़ती जनसंख्‍या को लेकर अहम बात कही। उन्‍होंने कहा कि जनसंख्या बोझ है, लेकिन ये साधन भी बन सकता है। बता दें कि देश में बढ़ती जनसंख्‍या को लेकर चर्चाएं होती रही हैं। कुछ लोगों का मानना है कि देश में जनसंख्‍या नियंत्रण के लिए एक नीति बनाई जानी चाहिए। हालांकि, मोहन भागवत ने देश की जनसंख्‍या को लेकर एक ऐसी योजना बनाने का सुझाव रखा, जिसका प्रभाव 50 साल बाद तक देखने को मिले।

संघ प्रमुख ने बताए बढ़ती जनसंख्‍या के दुष्‍परिणाम

मोहन भागवत ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ पांथिक आधार पर जनसंख्या संतुलन भी महत्व का विषय है। इसकी अनदेखी करना दुष्‍परिणाम के रूप में सामने आने तय हैं। उन्होंने सचेत करते हुए कहा, ‘एक भूभाग में जनसंख्या में संतुलन बिगड़ने का परिणाम है कि इंडोनेशिया से ईस्ट तिमोर, सुडान से दक्षिण सुडान व सर्बिया से कोसोवा नाम से नए देश बन गये। जनसंख्या नीति गंभीर मंथन के बाद तैयार की जानी चाहिए और इसे सभी पर लागू किया जाना चाहिए।

बढ़ती जनसंख्‍या भारी बोझ या फिर…!

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने देश की बढ़ती जनसंख्‍या को लेकर भी बेहद अहम बात कही। उन्‍होंने कहा कि अपने देश की जनसंख्या विशाल है, इसमें कोई दो राय नहीं है। जनसंख्या का विचार आजकल दोनों प्रकार से होता है। इस जनसंख्या के लिए उतनी मात्रा में साधन आवश्यक होंगे, वह बढ़ती चली जाए तो भारी बोझ, कदाचित असह्य बोझबनेगी। इसलिए उसे नियंत्रित रखने का ही पहलू विचारणीय मानकर योजना बनाई जाती है। भारत को भी ऐसी ही योजना पर काम करना होगा।

सरकारी नौकरी के पीछे न भागें युवा

मोहन भागवत ने कहा कि भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में आर्थिक तथा विकास नीति रोजगार उन्मुख हो यह अपेक्षा स्वाभाविक ही कही जाएगी। लेकिन रोजगार यानि केवल नौकरी नहीं यह समझदारी समाज में भी बढ़ानी पड़ेगी। कोई काम प्रतिष्ठा में छोटा या हल्का नहीं है, परिश्रम, पूंजी तथा बौद्धिक श्रम सभी क महत्व समान है, यह मान्यता व तदनुरूप आचरण हम सबका होना पड़ेगा। उद्यमिता की ओर जाने वाली प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन देना होगा। स्‍टार्टअप इसमें अहम भूमिका निभा रहे हैं, इन्‍हें और आगे बढ़ाने की जरूरत है।

50 वर्षों के पश्चात आज के तरुण प्रौढ़ बनेंगे, तब उनकी देखभाल…!

विचार का दूसरा प्रकार भी सामने आता है, उसमें जनसंख्या को एक निधि भी माना जाता है। उसके उचित प्रशिक्षण व अधिकतम उपयोग की बात सोची जाती है। पूरे विश्व की जनसंख्या को देखते हैं, तो एक बात ध्यान में आती है। केवल अपने देश को देखते हैं, तो विचार बदल भी सकता है। चीन ने अपनी जनसंख्या नियंत्रित करने की नीति बदलकर अब उसकी वृद्धि के लिए प्रोत्साहन देना प्रारंभ किया है। अपने देश का हित भी जनसंख्या के विचार को प्रभावित करता है। आज हम सबसे युवा देश हैं। आगे 50 वर्षों के पश्चात आज के तरुण प्रौढ़ बनेंगे, तब उनकी देखभाल के लिए कितने तरुण आवश्यक होंगे, यह गणित हमें भी करना होगा।

प्रमुख ने कहा कि जनसंख्या नीति ‌इतनी सारी बातों का समग्र व एकात्म विचार करके बने, सभी पर समान रूप से लागू हो, लोक प्रबोधन द्वारा इस के पूर्ण पालन की मानसिकता बनानी होगी। तभी जनसंख्या नियंत्रण के नियम परिणाम ला सकेंगे।

 

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