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इन कारणों से भी मनाया जाता है दशहरा का पर्व - श्रीनारद मीडिया

इन कारणों से भी मनाया जाता है दशहरा का पर्व

इन कारणों से भी मनाया जाता है दशहरा का पर्व

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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शारदीय नवरात्र समाप्त होते ही दशहरे का पर्व हर साल मनाया जाता है। हिंदू धर्म में दशहरा का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक में मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था। इसी कारण हर साल इस दिन को मनाते हैं। पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इस पर्व को मनाया जाता है। इस दिन रामलीला होने के साथ रावण के पुतले जलाने का विधान है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्री राम द्वारा रावण का वध ही नहीं बल्कि कई अन्य कारणों से भी दशहरा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन को अधर्म पर धर्म की विजय के साथ असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाते हैं।

दशहरा मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है जिसमें से हम आपको तीन मुख्य कथाओं के बारे में बता रहे हैं।

भगवान राम ने किया था रावण का वध

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, भगवान राम ने आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक मां दुर्गा की उपासना की थी। इसके बाद दशमी तिथि को उन्होंने रावण का वध किया था। इसी कारण हर साल विजयदशमी के पर्व को मनाया जाता है।

मां दुर्गा ने किया महिषासुर का वध

दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर और मां दुर्गा के बीच पूरे नौ दिनों तक युद्ध चला था और दसवें दिन उन्होंने महिषासुर का वध कर दिया था। इसी कारण आश्विन मास की दशमी तिथि को विजय के रूप में विजयदशमी मनाते हैं। मां दुर्गा द्वारा असत्य पर सत्य की विजय के रूप में इसे मनाते हैं।

पांडवों की हुई थी जीत

एक पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि इस दिन पांडवों को वनवास हुए थे और इसी दिन वनवास समाप्त होते ही शक्ति पूजा के साथ शमी के पेड़ में रखे शस्त्र पुन: निकाले थे और कौरवों पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की थी।

दशहरा या विजयदशमी भगवान राम की विजयी के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारतीय राज्यों में इस पावन पर्व को दशहरा तो वहीं पश्चिम बंगाल में इसे विजयदशमी कहा जाता है। हिंदू धर्म में दशहरा का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक में मनाया जाता है।

माना जाता है कि इस दिन भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था। इसी कारण हर साल इस दिन को मनाते हैं। दशहरा के समय भव्य रामलीला होने का साथ रावण के पुतले को जलाने का भी विधान है। पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा पर्व को मनाया जाता है। इस साल दशहरा 5 अक्टूबर बुधवार को मनाया जाएगा और इस दिन देश भर में जगह-जगह पर रावण के पुतले जलाए जाएंगे। तो आइए आपको बताते हैं इस त्योहार को मनाने के पीछे का इतिहास और महत्व।

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इतिहास

बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा असल में दो कहानियों से जुड़ा हुआ है। शारदीय नवरात्र की दशमी तिथि के दिन मां दुर्गा ने चंडी रूप धारण करके महिषासुर नामक असुर का वध किया था। मां दुर्गा ने लगातार 9 दिनों तक महिषासुर और उसकी सेना से युद्ध किया था और 10वें दिन महिसाषुर का अंत कर विजय प्राप्त की थी। इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्‍तम श्रीराम ने रावण का वध किया था।

राम ने 9 दिन तक मां दुर्गा की उपासनी की और 10वें दिन रावण पर विजय प्राप्त की, इसलिए इस त्योहार को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। रावण के बुरे कर्मों पर राम की अच्छाई की जीत हुई थी और बुराई पर अच्छाई की जीत के त्योहार के रूप में दशहरा को मनाते हैं। इस दिन रावण के साथ उनके पुत्र मेघनाद और भाई कुंभकरण के पुतले को भी फूंका जाता हैं।

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महत्व

विजयदशमी विजय का दिन है। कुछ लोग इस दिन को रामायण संघर्ष से भी जोड़ते हैं। अन्य लोग इसे राक्षसी महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय को याद करने के लिए मनाते हैं। देश के कुछ क्षेत्रों में दशहरा, दिवाली महोत्सव के रूप में भी मनाते है। दशहरा के बीस दिन बाद दिवाली है। रावण पर अपनी जीत के बाद भगवान राम 14 साल के वनवास के बाद घर लौटे थे।

इस दौरान अयोध्यावासियों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। इसी दिन के बाद से दिवाली को त्योहार के तौर पर मनाया जाने लगा। हालांकि, दशहरा त्योहार का मुख्य संदेश बुराई पर अच्छाई की जीत का है और इस दिन लोग समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करते हैं।

 

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