सुप्रीम कोर्ट के अनुसार नगर निकाय चुनाव के आरक्षण में तीन टेस्ट होना चाहिए 

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार नगर निकाय चुनाव के आरक्षण में तीन टेस्ट होना चाहिए

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श्रीनारद मीडिया, राकेश सिंह, स्‍टेट डेस्‍क:

1. “डेडीकेटेड आयोग” बनाना, जो राज्य के भीतर निकायों में जातियों के राजनीतिक पिछड़ेपन का “एमपिरिकल एनालिसिस” करेगा अर्थात प्रयोगों और व्यवहारिक अनुभव के आधार पर आधारित समीक्षा।

2. आयोग के सुझावों को ध्यान में रखकर निकायों में अनुपातिक आरक्षण तय करना।

3. अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति और पिछड़ों को दिया जाने वाला आरक्षण किसी भी स्थिति में 50 फीसदी से अधिक न हो।

अब “पटना हाईकोर्ट” के फैसले का जवाब तीसरे प्वाइंट से ऊपर की तरफ समझिए –

1. बिहार में निकायों में कुल आरक्षण 50 फीसदी से कम है।

2. “दि बिहार बिल म्युनिसिपल 2007” में स्पष्ट उल्लेख है कि बिहार में राजनीतिक भागीदारी को बराबर करने के लिए अतिपिछड़ों को 20 फीसदी आरक्षण देना है।

3. आयोग किस डेटा के आधार पर “एमपिरिकल एनालिसिस” करेगा ?

4. क्या कोई आयोग “जातिगत जनगणना” के बिना किसी पूर्वाग्रह से मुक्त होकर एनालिसिस कर सकता है ?

5. बिहार में यह गौर करने वाली बात है कि न सिर्फ आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से नीचे रखा गया बल्कि सामाजिक तौर पर “अतिपिछड़े वर्ग” को ही इसका फायदा दिया गया, न कि सामान्य OBC को। यानी सरकार के पूर्व के आयोग द्वारा सुझाए गए अतिपिछड़ों को ही आरक्षण दिया गया, जो सुप्रीम कोर्ट की मंशा के अनुरूप ही था।

इस ट्रिपल टेस्ट का मुख्य बिंदु आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं होना है और बिहार में ऐसा नहीं था, लेकिन महाराष्ट्र के नागपुर, वाशिम और भंडारा जैसे जिलों में SC/ST को आबादी के अनुसार आरक्षण देने और 0BC को 27 फीसदी आरक्षण देने की वजह से कुल सीमा 50 फीसदी को पार कर गया था। यानी कोर्ट ने फैसले को सुनाते समय यह ध्यान रखा कि OBC को SC/ST के बाद उतना ही आरक्षण मिले जिससे यह सीमा 50 फीसदी को पार न करे। यानी महाराष्ट्र में कई जिलों में यह आरक्षण 27 फीसदी से कम सुनिश्चित किया गया।

आलेख

Rahul Kumar जदयू नेता व The Economic Times के पूर्व पत्रकार

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