तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है मां बगलामुखी पीतांबरी सिद्धपीठ

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

देशभर में माता का पूजन किया जाता है और कई स्थानों पर उनके मंदिर स्थित हैं। लेकिन बिहार के मुजफ्फरपुर शहर में स्थित मां बगलामुखी पीतांबरी सिद्धपीठ कई मायनों में बेहद ही विशिष्ट है। यह मुजफ्फरपुर शहर के कच्ची सराय रोड पर स्थित है और मुख्य रूप से तान्त्रिक पूजा के लिए प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन व पूरी श्रद्धा से यहां पर माता के समक्ष अपनी कोई मनोकामना रखते हैं, तो वह अवश्य पूरी होती है। यह एक बेहद प्राचीन मंदिर हैं, जहां पर केवल स्थानीय या राज्य के लोग ही दर्शन हेतु नहीं आते हैं, बल्कि देश के कोने-कोने से भक्तगण यहां पर माता के दर्शन करते हैं। नवरात्रि के शुभ अवसर पर भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है।

मंदिर में स्थित है अष्टधातु की प्रतिमा 

बता दें कि मां बगलामुखी पीतांबरी सिद्धपीठ दस महाविद्या में मां का आठवां रूप है। इस मंदिर की एक खासियत यह भी है कि मंदिर में स्थापित माता की प्रतिमा अष्टधातु की बनी हैं, जिसका अनुपम सौंदर्य बस देखते ही बनता है। यहां पर आने वाले भक्तगण माता की पूजा हल्दी व दूब से करते हैं।

नवरात्रि में होती है विशिष्ट पूजा

यूं तो माता की भक्ति लोग वर्षभर करते हैं, लेकिन नवरात्रि के दिनों में यहां पर अनूठी पूजा की जाती है, जिसमें मंदिर में स्थापित सहस्त्र दल यंत्र का दुग्धाभिषेक किया जाता है। मंदिर में स्थापित सहस्त्र दल यंत्र भी अति विशिष्ट है। यह मंदिर के ठीक नीचे स्थित है और इसे एक सर्व मनोकामना सिद्ध महायंत्र माना गया है। जिसका सीधा तात्पर्य यह है कि यहां आने वाले हर व्यक्ति की मुराद अवश्य पूरी होगी। हालांकि, इसके लिए भक्त को 21 दिन नियमित दर्शन करने होंगे।

इस खास समय महिलाओं का प्रवेश है वर्जित

यूं तो यह माता का मंदिर है और इसलिए महिलाओं के यहां आने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। लेकिन नवरात्रि के दिनों में जब देश के कोने-कोने से लोग अघोर तांत्रिक साधना के लिए जुटते हैं, तो वे मंदिर के पीछे स्थित परिसर के हवन कुंड में तांत्रिक तंत्र क्रियाओं को पूरा करते हैं। यह तंत्र क्रियाएं रात में की जाती है और इस दौरान यहां पर महिलाओं के आने पर प्रतिबंध रहता है।

बेहद प्राचीन है मंदिर

यह मंदिर बेहद ही प्राचीन मंदिर है और इसलिए भी इस मंदिर की महत्ता काफी बढ़ जाती है। बता दें कि इस मंदिर की स्थापना यहां के महंत देवराज के पूर्वजों ने की थी। मां बगलामुखी इन्हीं के परिवार की कुलदेवी हैं। इन्होंने कोलकाता के एक तांत्रिक से गुरु मंत्र लेने के पश्चात् इस मंदिर की स्थापना की। प्रारंभ में यहां पर केवल मां बगलामुखी की मूर्ति स्थापित थी, लेकिन बाद में यहां पर मां त्रिपुर सुंदरी, मां तारा, बाबा भैरवनाथ व हनुमान जी की मूर्ति भी स्थापित की गई। आपको शायद जानकर आश्चर्य हो लेकिन इस मंदिर की स्थापना करीब 275 वर्ष पूर्व हुई थी।

 

 

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