सीवान में बड़ी पुरानी है सुरवल गांव की दुर्गा पूजा परम्परा
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
..और …आज दुर्गा जी हनुमान अखाड़े से चल कर उसरा आ गईं। हनुमान अखाड़ा सन्नाटे में घिर गया- एक बार फिर देवी की प्रतिक्षा में। उसरा में भी अब हनुमान जी विराजने लगे हैं। सुरवल-जीरादेई प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र जहां पहले जीरादेई थाना हुआ करता था।
बड़ी पुरानी है सुरवल गांव की दुर्गा पूजा परम्परा।
दुर्गा पूजा की प्रेरणा निश्चित रूप से बंगाल से हीं मिली होगी। 1920-21 …भारत स्वतंत्रता आंदोलन की जमीन तैयार कर रहा था। उत्सव के बहाने लोग एकजुट होते। सांस्कृतिक एकता राष्ट्रीय जागरण में सहायक हो रही थीं। सुरवल ग्राम में संभवत: 1921 से पूजा प्रारंभ हुई। गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं …कि … सुरवल गांव के प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित श्री मुरली मनोहर वर्मा जी ने इस परम्परा की नींव रखी। बाद में गांव के हर वर्ग के लोग देवी अराधना में सहर्ष जुटते गए। 1921 से 1951-52 तक देवी की प्रतिमा मुरली बाबू उर्फ बब्बन बाबू के दरवाजे के सामने स्थापित की जाती थीं।
बाद में…गांव के उत्तर-पश्चिम में स्थित प्रसिद्ध हनुमान अखाड़े के प्रांगण में दुर्गा-प्रतिमा की स्थापना की जाने लगी..और …तभी से…शारदीय नवरात्रि में कलश एवं प्रतिमा स्थापन के साथ देवी आदिशक्ति की विधिवत अराधना सम्पूर्ण सुरवल गांव वासियों के द्वारा हर वर्ष की जाती है। शारदीय नवरात्रि के समय ..पूरा गांव देवी भक्ति में डूबा रहता है। विजयादशमी के बाद…त्रयोदशी तक दुर्गा जी..हनुमान अखाड़ा में हीं विराजती हैं।
चतुर्दशी के दिन..हनुमान अखाड़े से प्रतिमा को पूरे भक्तिभाव से एक विशाल जनसमूह द्वारा माँ दुर्गा के जयकारे के बीच गांव के बीच रास्ते से पूरी श्रद्धा के साथ गांव के पूर्व स्थित उसरा में लाया जाता है। यहां अगले दिन यानि पंचमी को विशाल दंगल का आयोजन होता है..और उसी शाम ..को पास में हीं स्थित सोना नदी में प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।
देवी-अराधना के इस 15 दिनों में गांव के युवकों का उत्साह देखते हीं बनता है।गांव के सभी लोग बड़े हीं भक्ति-भाव से देवी-पूजा में सम्मिलित होते हैं। …. खासकर गांव के अनुशासित नवयुवक समूह को देखकर मन को बड़ा हीं संतोष मिलता है…कि यह भक्ति का सिलसिला यूं हीं चलता रहेगा- अनवरत …एवं उत्साह से भरपूर। माँ दुर्गा सुरवल गांव के हर निवासी पर अपनी कृपा बनाएं रखें…विशेषकर गांव के नवयुवकों पर ..जिनके कंधों पर इस महान परम्परा के निर्वहन का दायित्व है।
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