आखर के बंधु देवेंद्र नाथ तिवारी को मिली पीएचडी की उपाधि
देवेंद्र नाथ तिवारी ने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय से पी-एच.डी (जनसंचार) में उपाधि प्राप्त की है
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सभी ख़ास-ओ-आम को सूचित किया जाता है कि हमें महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा पी-एच.डी (जनसंचार) की उपाधि प्रदान की गई है। यह उपाधि ‘आध्यात्मिक संचारक के रूप में नाथ-संप्रदाय के योगियों की संचार प्रक्रिया’ विषयक शोध कार्य के लिए मिली है। इस शोध कार्य को आईसीएसएसआर द्वारा डीआरएफ शोधवृति दी गई थी। यह हमारे अकादमिक जीवन की सर्वोच्च उपाधि है।
कुल-ख़ानदान और अपने गाँव का पहला व्यक्ति हूँ, जो यहाँ तक पहुँचा है। आप सभी की शुभकामनाओं एवं आशीर्वाद की अपेक्षा है। यही मेरा संबल रहा है। इसे के बूते देवरिया का देवेन्द्र, आज डॉक्टर देवेन्द्र बन सका है।यकीनन आप सबों का प्यार और आशीर्वाद न होता, तो जीवन के उदास मौसम में इस कदर रंग न घुल पाते। यह कामयाबी आप सब प्यार करनेवालों, आत्मीय जनों के हवाले। साथ ही साथ यह गुज़ारिश भी है कि अब हमरे नाम को अपने कांटैक्ट लिस्ट/फ़ोन बुक में डॉ. देवेन्द्र के नाम से सुरक्षित कर लें। मुझे अच्छा लगेगा। हालाँकि यहाँ मैं ‘आत्मप्रशंसा’ या ‘आत्ममुग्धता’ का शिकार हो रहा हूँ, यह अहसास मुझे है।
वैसे हमारे नाना ने यह सपना देखा था कि मैं डॉक्टरेट करूँ। अगर नाना होते, तो बेहद खुश होते। उनका हँसता हुआ चेहरा, दुलार और खुशी में भीगी हुई आँखें मुझे याद आ रही हैं। आज होते, तो अपने आग़ोश में मुझे कस के भींच लेते।यह सब लिखते हुए मेरी आँखे नम हैं। दिल भी भरा हुआ है।
नाना-नानी की दिली इच्छा थी कि मैं पढ़ लिख कर इक रोज उस पड़ाव तक पहुँच सकूँ जहाँ से वे मुझे डॉ. देवेन्द्र पुकार सकें। वे इस दुनिया में नहीं हैं। पर, जहाँ कहीं भी हों नाना- नानी यह आपके लिए ही है। अकादमिक जीवन की इस यात्रा में माई-बाबूजी ने पढ़ाने के लिए बहुत त्याग किया है। साल 2004 से लगातार घर से बाहर ही रहा, पढ़ने के लिए।अपने परिवारजनों का ऋणी व हृदय से आभारी हूं, जिन्होंने हमें सदैव उच्च शिक्षा के प्रति प्रेरित किया।
मुझे यह लगता है कि पी-एच.डी. या कोई गंभीर शोध-कार्य सामूहिक उपक्रम/उद्यम का परिणाम है। हमारे शोध निर्देशक प्रो. अनिल कुमार राय के मार्गदर्शन ने शोध कार्य के सफल निष्पादन को सुनिश्चित किया। शोध कार्य की प्रेरणा और सम्मति प्रदान करनेवाले जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष आचार्य कृपाशंकर चौबे के साथ-साथ विभाग के सह आचार्य डॉ. अख्तर आलम, डीएमआरसी की संयोजिका डॉ. रेणु सिंह सहित विभाग के सभी शिक्षकों का भी आभारी हूं।
साथ ही मैं, कोरोना महामारी के असमय शिकार हुए अपने गुरुवर त्रयी स्मृतिशेष प्रो. क्षमाशंकर पांडेय, डॉ. अर्जुन तिवारी एवं प्रो. कमल दीक्षित के प्रति श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ, जिन्होंने समय-समय पर गहन चर्चा के माध्यम से इस शोध को एक दिशा प्रदान की। गुरुवर डॉ. जौहर शफियाबादी एवं प्रो. राम नारायण तिवारी का विशेष रूप से आभारी हूं, जिनसे बहुमूल्य सुझाव-सहयोग प्राप्त हुआ।
नाथ-संप्रदाय में दीक्षित डॉ. योगी विलासनाथ के प्रति विशेष आभार व्यक्त करता हूँ।अध्ययन को जल्द पूरा करने के लिए पंकज भारद्वाज भइया ने लगातार हुरपटेने का काम किया। कई बार फ़्रस्ट्रेशन की स्थिति बनी। उस दौर में भी पंकज भइया संबल बने।
इस शोध कार्य के लिए तत्परता के साथ हमारे अग्रज निराला भैया, डॉ. सूर्यप्रकाश पांडेय, डॉ. उत्पल कुमार, डॉ. धीरेंद्र राय, डॉ. एम.के. पांडेय, डॉ. गजेन्द्र पांडेय, डॉ. हिमांशु वाजपेयी, डॉ. भवानी शंकर मिश्र, रत्नेश मिश्र, प्रबोध कुमार, अज़ीज मित्र डॉ. वैभव, डॉ. आलोक कुमार पांडेय, अन्वेषण सिंह, अभिषेक राय, डॉ. ईश शक्ति सिंह, रंजीत कुमार, डॉ. पंकज मिश्र, डॉ. वरुण चौबे, आलोक मिश्र, साजन भारती, अंबुज शुक्ल, महेश तिवारी, सरफराज, डॉ. निरंजन कुमार. डॉ. प्रणव मिश्र, डॉ. सुरेश वर्मा, डॉ. छविनाथ, राजीव, राजू, अनुज, रविश कुमार, दीपक भाई, कुमार रौशन, रिंकू त्यागी, विवेक, सूरज पांडेय, देवेश एवं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में अध्ययनरत सहपाठियों ने हमें अपना बहुमूल्य सहयोग प्रदान किया। मैं, सभी के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं।
आखर परिवार के हमारे सभी अग्रज भाइयों, अनुज साथियों ने तो हरदम प्रेरणा दी। इस आभार का भार, आजीवन रखना चाहता हूँ।
मैं, अपनी सहचरी प्रीति का विशेष रूप से आभारी हूं, जिन्होंने हर समय आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर, हर कदम पर मेरा साथ दिया। इसके अतिरिक्त अन्य कई नाम जाने-अनजाने छूट जा रहे हैं, उनके प्रति भी बहुत बहुत आभार… अलख निरंजन
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