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स्थानीय भाषाओं को कैसे बढ़ाया जाये,जबकी अंग्रेजी का वर्चस्व है !

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

संसदीय राजभाषा समिति ने अपनी 11वीं रिपोर्ट में अनुशंसा की है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों सहित सभी तकनीकी एवं गैर तकनीकी शिक्षण संस्थाओं में पढ़ाई का माध्यम अनिवार्य रूप से हिंदी और स्थानीय भाषाएं होनी चाहिए. इसमें यह भी कहा गया है कि अति आवश्यक होने पर ही अंग्रेजी में पढ़ाई होनी चाहिए तथा धीरे-धीरे हिंदी लागू करने का प्रयास किया जाना चाहिए.

इस रिपोर्ट में हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाये जाने के लिए कोशिश करने का सुझाव भी दिया गया है. उल्लेखनीय है कि नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी यह प्रावधान किया गया है कि शिक्षा का माध्यम हिंदी और स्थानीय भाषाएं होनी चाहिए. स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी न्यायालयों, कार्यालयों, बैंकों और शैक्षणिक संस्थानों में अंग्रेजी का वर्चस्व है. इससे भारतीय भाषाओं का विस्तार तो प्रभावित होता ही है, राष्ट्रीय विकास भी बाधित होता है. इससे देश की बड़ी आबादी उपेक्षित और वंचित रह जाती है.

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