अज्ञान से विकृत कौतूहल बढ़ता है और ज्ञान से कम होता है,कैसे ?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
अज्ञान से विकृत कौतूहल बढ़ता है और ज्ञान से विकृत कौतूहल कम होता है।” इस पंक्ति के संदर्भ में ही हम यौन शिक्षा के महत्व को समझ सकते हैं। आज समाज की परिस्थितियों और किशोरों की सही मार्गदर्शन की तलाश को देखते हुए यौन शिक्षा की जरूरत महसूस होती है।
आज से 100 साल पहले की बात करें तो पहले के रिवाज के मुताबिक लड़के-लड़कियां 15-16 या 14-15 वर्ष की आयु में ही विवाह बंधन में बंध जाते थे। इसलिए शारीरिक विकास के बाद कुछ हफ्तों या कुछ वर्षों तक ही सामाजिक नियमों की पाबंदी रहती थी।
अब युवाओं में 30 की उम्र तक शादी होती है पर सामाजिक अंकुश के नियम वैसे ही बने हुए हैं। कुछ हफ्तों के लिए तो ऐसे नियमों का पालन किया जा सकता है लेकिन 15 साल तक ऐसे नियमों का पालन करना असंभव है। यही वजह है कि अनचाहे गर्भ, एड्स जैसी महामारी और बलात्कार के प्रकरण हमारे देश में ज्यादा हैं।
हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि अब बेहतर स्वास्थ्य संरक्षण और पोषण के कारण वयसंधि की आयु पहले से बहुत कम हो गई है। परिपक्वता भी अब जल्दी आ जाती है। 11 से 13 वर्ष के किशोर अब परिपक्व हो जाते हैं। इसके अलावा अब चारों तरफ मीडिया के कारण उद्दीपन भी दिखाई देता है।
ऐसे में जहां एक ओर विवाह अधिक उम्र में हो रहे हैं वहीं वातावरण भावनाओं को जगाने वाला है। जब हार्मोन शरीर में कामेच्छा को बढ़ावा देंगे तो इस तरह के संबंध भी बनेंगे। अनौपचारिक यौन संबंध, कुंठाएं और बलात्कार इसी कारण हैं।
इस समय की सामाजिक और जैविक समस्याओं का समाधान यौन शिक्षा के माध्यम से हो सकता है। जब किशोर और युवा खुद को कामेच्छा और सामाजिक मूल्यों के पाटों के बीच पाते हैं तो निश्चित रूप से वे बहक सकते हैं। ऐसे में वे कुंठित और परेशान भी रहते हैं। बिना किसी मार्गदर्शन के वे गलत दिशा में आगे बढ़ सकते हैं और इसलिए उन्हें सही समझ देना बहुत जरूरी है।
कब शुरू की जाए शिक्षा
यौन शिक्षा शुरू करने का कोई सही समय और गलत समय नहीं है। अक्सर तो यह बच्चे के पैदा होने के समय से ही शुरू हो जाती है। बिना बच्चे के जाने ही उसे यह सिखाया जाने लगता है। माता-पिता बेटे या बेटी को स्पर्श और व्यवहार सिखाते हैं। यह सब उसकी यौन शिक्षा का आधार बन जाता है। बचपन से ही सेक्स के प्रति माता-पिता का व्यवहार उन के प्रेम प्रदर्शन को निर्धारित करता है।
माता-पिता के आपसी संबंध भी उसकी जिज्ञासा को सही दिशा देते हैं और उसका मार्गदर्शन करते हैं। बच्चों को शिक्षा कब दें इस बारे में ऋषि वात्स्यायन के कहा है, ‘बच्चों को यह शिक्षा परिपक्वता के पहले दी जाना चाहिए।” शारीरिक विकास के पहले ही उसके पास अगर यह ज्ञान होगा तो वह अपने शरीर में आ रहे परिवर्तनों से घबराएगा नहीं। जो वात्स्यायन ने 1600 वर्ष पहले कहा वही विश्व स्वास्थ्य संगठन आज कह रहा है।
सही राह पहचानने में बच्चों की मदद
ज्यादातर लोग यह समझते हैं कि यौन शिक्षा में प्रजनन अवस्था, अंगों और आपसी संबंधों की ही जानकारी दी जाती है। उसमें बच्चों का जन्म कैसे होता है यही बताया जाता है, लेकिन यौन शिक्षा को इस संकीर्णता के साथ नहीं देखा जा सकता है। वह तो बच्चे को एक समझदार और जिम्मेदार व्यस्क बनाती है।
कुंठाओं से भरे किशोर किस तरह एक बेहतर समाज बनाएंगे? हमेशा सही ज्ञान सही दिशा पाने में हमारी मदद करता है। आज के समय में शिक्षा विषमलैंगिकता और समलैंगिकता के बीच सही चुनाव के लिए भी जरूरी है। यह विकृत कामेच्छा को पहचानने में भी बच्चों की मदद कर सकती है।
जिन देशों में सही ढंग से, यह सही ढंग बहुत ही महत्वपूर्ण है, यौन शिक्षा दी जाती है वहां आबादी और बीमारियों कर नियंत्रण हुआ है। स्वीडन इसकी मिसाल के तौर पर हमारे सामने है।
यौन शिक्षा क्यों
हमारे देश में अगर यौन शिक्षा दी जाती है तो हम बढ़ती आबादी और एड्स पर नियंत्रण कर पाएंगे। आज दुनिया के बड़े से बड़ा देश अपने बजट का प्रमुख हिस्सा एड्स जैसी बीमारी से निपटने में खर्च कर रहे हैं। यह ऐसी महामारी है जो किसी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। इन दोनों चिंताओं से निपटने के लिए यौन शिक्षा जरूरी है।
इस समय यौन शिक्षा की परिभाषा को लेकर भी बहस हो रही है, लेकिन इसका अर्थ बच्चों को वह जानकारी देना नहीं है जो पहले से उनके पास है। हमें तो वह आचरण सिखाना है जिसके वे अभ्यस्त नहीं हैं। अगर आज हम किशोरों और युवाओं को यह शिक्षा देते हैं तो हम आबादी के एक तिहाई हिस्से को जागरूक करेंगे और आने वाली पूरी पीढ़ी को कुंठा मुक्त कर पाएंगे।
शिक्षकों की ट्रेनिंग हो और प्रसार भी करें
स्कूलों में यौन शिक्षा जैसे गंभीर और अति महत्वपूर्ण विषय पर बात करने के लिए कुशल प्रशिक्षक चाहिए। यह काम किसी के भी भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। शिक्षकों की ट्रेनिंग की जाना चाहिए। जिस तरह स्वास्थ्य मंत्री यौन शिक्षा के सही उद्देश्य को नहीं समझे उसी तरह की धारणा बहुत से लोगों के मन में है।
हमें टीवी जैसे बड़े प्रसार माध्यम को चुनना चाहिए ताकि हम ज्यादा लोगों तक पहुंच सकें। जब हम टीवी के माध्यम से पूरे देश की रुचि ‘कौन बनेगा करोड़पति” में जगा सकते हैं तो किसी अच्छे विषय के प्रति क्यों नहीं।
आभार- प्रकाश कोठारी,सेक्सोलॉजिस्ट
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