क्या सोनपुर मेला आस्था और अश्लीलता का संगम है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान रखने वाले सोनपुर मेले का आगाज कल रविवार को हो जाएगा. कोरोना महामारी के सामने आने के बाद पिछले दो साल से यह मेला प्रभावित हो गया था. अब तीन साल के लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर से सोनपुर का विश्व प्रसिद्ध मेला लगने वाला है. मेले में कई नई चीजें जुड़ी हैं, तो कई अब इतिहास के पन्नों में दबकर रह गयी है. यूं तो इस मेले की पहचान पशु मेले के रूप में विख्यात है. लेकिन मेले में लगने वाला थियेटर इसे और भी रंगीन और खास बनाता है.
सोनपुर मशहूर था क्योंकि यहां सुई से लेकर हाथी तक मिलता था यह गांव का बाजार था. खेती खलिहानी से जुड़ी हर एक चीज मिलती थी. अब गांव के बाजार पर भी शहरी बाजारवाद हावी है. मेले में छोटी सी दुकान लगाने के लिए पैसे लगते हैं
सोनपुर में कार्तिक पूर्णिमा के दिन का महत्व है लेकिन इस स्नान के साथ शुरू हुए मेले का महत्व कम हो रहा है. इस मेले की शुरुआत मौर्य काल के समय में हुआ. माना जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य सेना के लिए हाथी खरीदने के लिए यहां आते थे. स्वतंत्रता आंदोलन में भी सोनपुर का योगदान है इन इलाकों के बुजुर्गों की मानें तो 1857 की लड़ाई के लिए वीर कुंवर सिंह जनता ने यहां से घोड़ों की खरीदारी की थी. इस मेले में हाथी, घोड़े,ऊंट, कुत्ते, बिल्लियां और विभिन्न प्रकार के पक्षियों सहित कई दूसरी प्रजातियों के पशु-पक्षियों का बाजार सजता था.
देश से ही नहीं अफगानिस्तान, ईरान, इराक जैसे देशों के लोग पशुओं की खरीदारी करने आया करते थे. इस मेले से पौराणिक कथाएं जुड़ी है भगवान विष्णु के भक्त हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के बीच कोनहारा घाट पर संग्राम हुआ. जब हाथी कमजोर पड़ने लगा तो अपने ईश्वर का याद किया भगवान विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुदर्शन चक्र चलाकर दोनों के बीच युद्ध का अंत किया था. इसी स्थान पर हरि (विष्णु) और हर (शिव) का हरिहर मंदिर भी है जहां प्रतिदिन सैंकड़ों भक्त श्रद्धा से पहुंचते है. सच पूछिये तो इस मेले में बहुत सारे लोग कार्तिक स्नान करने और भगवान के दर्शन के लिए भी आते हैं. यही आस्था है जिसने अबतक कई लोगों को मेले से जोड़े रखा है
मनोरंजन या अश्लीलता
सोनपुर मेले में कई थियेटर हैं. शाम होते ही मेले का रंग बदलने लगता है, तेज अश्लील भोजपुरी गाने का शोर मेले की पहचान पूरी तरह बदल देता है. अब नाटक या नौटंकी नहीं होती, इसकी जगह देह प्रदर्शन कर पैसे कमाने का धंधा चलने लगा. हर साल यहां पांच से छह थियेटर कंपनियां आती हैं. प्रत्येक कंपनियों में 50- 60 युवतियों का दल दर्शकों का मनोरंजन करता है. टिकट के लिए लंबी कतार लगती है. स्टेज के सबसे नजदीक होकर नांच देखना है तो 1000 रुपये से लेकर 2000 तक और जितनी दूर से देखेंगे उसके उतने पैसे.
मेले में सबसे ज्यादा खर्च थियेटर वाले ही करते हैं. एक थियेटर लगाने में 15 से 20 लाख का खर्च. लड़कियों के रोज की कमाई 400 से लेकर 1200 रुपये तक. आप यह मत सोचिये की सभी मजबूरी में आती हैं. कई लड़कियां पढ़ाई कर रही हैं इस एक महीने में वह इस मेले से अच्छा पैसा कमा लेती हैं. स्टेज पर जो पैसे दर्शकों से मिले वह अलग सोनपुर भले ही बाकि मामलों में पिछड़ रहा है इस घटिया मनोरंजन के नाम पर खूब मुनाफा कमा रहा है.
यह मेला अब आस्था और अश्लीलता को अनोखा संगम लगने लगा है. यहां दो तरह के लोग आ रहे हैं. एक- जो पौराणिक कथाओं, कार्तिक स्नान और ईश्वर में आस्था रखते हैं दूसरे- जो थियेटर और नाच के लिए सालों इंतजार करते हैं. सोनपुर पहले क्या था पता नहीं लेकिन जो हो रहा है उस पर चिंता जरूर करनी चाहिए…
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