फैक्ट्री में काम करने वालों को धूल, गंदगी, धुआँ से बचाव को नियमित रूप से चना व गुड़ खाना चाहिए: अली

फैक्ट्री में काम करने वालों को धूल, गंदगी, धुआँ से बचाव को नियमित रूप से चना व गुड़ खाना चाहिए: अली

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टीबी बीमारी से ठीक होने के बाद अली जफर दूसरे को करने लगे जागरूक:
टीबी की पुष्टि के बाद नियमित रूप से दवा के सेवन से मिली बीमारी से मुक्ति:
बीमारी के समय आर्थिक सहायता के रूप में प्रत्येक महीने दी जाती है प्रोत्साहन राशि: एसटीएस

श्रीनारद मीडिया, पूर्णिया, (बिहार):

‘मुंबई के कपड़ा फैक्ट्री में मेहनत- मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण किया करता था। इस दौरान हीं जब मुझे टीबी की बीमारी हुई तो किसी ने सहयोग नहीं किया। लेकिन मन में विश्वास था कि एक न एक दिन टीबी की बीमारी ठीक हो जाएगी। अब मैं पूरी तरह से ठीक हो चुका हूं। कल, कारखाने या कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वाले लोगों को सलाह देता हूं कि धूल, गंदगी, धुआँ से बचाव एवं सुरक्षित रहने के लिए चना व गुड़ का नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। दरअसल नाक या मुंह के माध्यम से गंदगी शरीर के अंदर प्रवेश कर जाती, जिस कारण तरह-तरह की बीमारियां जन्म ले लेती हैं। ख़ासकर टीबी जैसी बीमारी भी हो सकती है।‘ इस तरह की बातें करने के दौरान 23 वर्षीय अली जफ़र की सांसें भर जाती हैं। वे बताते हैं कि टीबी से बचाव एवं सुरक्षित रहने के लिए दोस्तों या अन्य साथियों को जागरूक करता हूं। यह कहानी केवल टीबी के संक्रमण के शिकार अली ज़फ़र की नहीं है बल्कि इनके जैसे सैकड़ों युवाओं की कहानी हो सकती है।

कल- कारखाने में काम करने के दौरान समय से पौष्टिक आहार नहीं मिलता:
ज़िले के बैसा प्रखंड के खटा टोली गांव निवासी मोहम्मद इस्लाम के पुत्र अली जफ़र ने बताया कि बिहार से बाहर दूसरे राज्यों में जाकर कल कारखाने या फैक्ट्री में निजी तौर पर काम करने के दौरान समय से पौष्टिक आहार नहीं मिलता है। जिस कारण शारीरिक रूप से हमलोग कमजोर हो जाते हैं। शायद यही कारण होता है कि टीबी जैसी बीमारी की चपेट में हमलोग आ जाते हैं। हालांकि अब मैं पूरी तरह से ठीक हो गया हूं। लेकिन अब साथ में काम करने वाले दोस्तों के अलावा क्षेत्र के अन्य टीबी रोगियों को भी जागरूक करना दैनिक कार्यो में शामिल कर लिया हूं।


फैक्ट्री में काम करने वालों को नियमित रूप से चना व गुड़ खाना ज़्यादा लाभदायक:
अली ने बताया कि घर पर रह कर लगातार छः महीने तक टीबी की दवा के साथ पौष्टिक आहार सेवन करने से टीबी ही नहीं बल्कि किसी भी बीमारी से निज़ात पायी जा सकती है। क्योंकि जब तक नियमित रूप से दवा या कोई भी काम नहीं किया जाएगा तब तक आपको सफ़लता नहीं मिल सकती है। अली जफ़र ने टीबी जैसी गंभीर बीमारी को मात देने में सफलता हासिल की है। अब पंजाब के लुधियाना में सिलाई का काम करके अपने साथ माता व पिता सहित परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अब वे कंपनी के अन्य कारीगरों एवं मिलने जुलने वाले लोगों को प्रतिदिन चना व गुड़ खाने की सलाह देते हैं। क्योंकि चना व गुड़ खाने से शरीर के अंदर की गंदगियों को बाहर निकाला जा सकता है।

 

टीबी की पुष्टि के बाद नियमित रूप से दवा के सेवन करने से मिली बीमारी से मुक्ति: अली ज़फ़र
अली जफ़र के अनुसार इसी वर्ष यानी 2022 के फरवरी महीने में मुंबई रहने के दौरान खांसी, बुख़ार, कमजोरी होने के साथ ही वजन भी कम हो रहा था। इसी बीच निजी चिकित्सक से परामर्श के साथ जांच करायी लेकिन कोई गंभीर बीमारी नहीं निकला। मार्च 2022 में वापस घर आ गए। यहां आने के बाद आशा कार्यकर्ता अनवरी बेगम अपने साथ बैसा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर गई। वहां पर मुंबई की जांच रिपोर्ट दिखाने के बाद फिर से जांच करायी गई। जांच के बाद टीबी बीमारी की पुष्टि हुई। उसके बाद लगातार छः महीने तक दवा के सेवन के साथ ही पौष्टिक आहार लेते रहे। अब पूरी तरह से स्वस्थ्य होने के बाद लुधियाना में सिलाई का काम करते हैं।

बीमारी के समय आर्थिक सहायता के रूप में प्रत्येक महीने दी जाती है प्रोत्साहन राशि: एसटीएस
एसटीएस देवेन्द्र कुमार ने बताया कि स्थानीय स्तर पर टीबी के संभावित मरीजों की जांच के आधार पर चिकित्सकों द्वारा टीबी की पुष्टि होने के बाद ही दवा शुरू की जाती है। जिसका लगातार छः महीने तक नियमित रूप से सेवन करना पड़ता है। इसके साथ ही निक्षय पोषण योजना के तहत प्रत्येक महीने पौष्टिक आहार खाने के लिए 500 सौ रुपए की आर्थिक सहायता दी जाती है। ताकि टीबी की दवा खाने के दौरान पोषण युक्त भोजन आसानी से मिल सके। इसीलिए टीबी के लक्षण दिखे तो संकोच नहीं करें। तत्काल अस्पताल आकर अपनी जांच करवाएं। जांच में अगर टीबी होने की पुष्टि होती है तो दवा लेकर तत्काल इलाज शुरू करवा लें। इससे आप जल्द स्वस्थ्य हो जाएंगे। जितना देर कीजिएगा ठीक होने में उतना ही अधिक समय लगेगा।

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