बिहार में छह मार्च से होगी जी-20 की बैठक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार मार्च में ग्रुप ऑफ ट्वेंटी यानी जी-20 की बैठकों की मेजबानी करेगा. जी-20 की अध्यक्षता इस बार भारत कर रहा है. ऐसे में पूरे साल भारत में जी20 देशों की करीब 200 अलग-अलग बैठकें होंगी. इन बैठकों में से कुछ बैठकों की मेजबानी बिहार को भी मिली है. पिछले दिनों जी20 की अध्यक्षता मिलने के बाद ही भारत में इस समूह की बैठकें शुरू हो चुकी हैं.
मार्च में होगी बिहार में बैठक
बिहार को मार्च के महीने में समय दिया गया है. बिहार में जी-20 की बैठकें 6 मार्च और 7 मार्च 2023 को आयोजित की जाएगी. इन बैठकों को लेकर बिहार सरकार ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है. जी20 की यह बैठकें बिहार के गया, राजगीर और नालंदा में आयोजित की जायेंगी. बिहार के इन तीन शहरों को जी-20 में शामिल देशों के प्रतिनिधियों के लिए खास तौर पर सजाया संवारा जा रहा है. कला संस्कृति विभाग की प्रधान सचिव वंदना प्रेयशी को इसका नोडल पदाधिकारी बनाया गया है.
हर साल होती है जी20 की शिखर बैठक
यह यूरोपीय संघ और 19 देशों का एक अनौपचारिक समूह है. जी20 शिखर सम्मेलन में इसके नेता हर साल जुटते हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था को कैसे आगे बढ़ाया जाए इस पर चर्चा करते हैं. इसका गठन साल 1999 में हुआ था. साथ ही यह एक मंत्रिस्तरीय मंच है, जिसे जी7 द्वारा विकसित एवं विकासशील दोनों अर्थव्यवस्थाओं के सहयोग से गठित किया गया था. इस मंच की सबसे बड़ी बात यह है कि हर साल शिखर सम्मेलन में दुनिया के कई देशों के शीर्ष नेताओं की आपस में मुलाकात करते हैं.
हाल ही में G-20 के 17वें वार्षिक शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की गई जिसे इंडोनेशिया की अध्यक्षता में बाली में ‘रिकवर टुगेदर, रिकवर स्ट्रॉन्गर’ विषय के तहत आयोजित किया गया।
- अब भारत ने G-20 की अध्यक्षता का प्रभार संभाल लिया है और 18वाँ शिखर सम्मेलन 2023 में भारत में आयोजित किया जाएगा।
शिखर सम्मेलन के परिणाम:
- रूसी आक्रामकता की निंदा:
- सदस्य देशों ने यूक्रेन में रूस की आक्रामकता की “कड़े शब्दों में” निंदा करते हुए एक घोषणा को अपनाया और इसे बिना शर्त वापस लेने की मांग की।
- उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अधिकांश सदस्यों ने यूक्रेन में युद्ध की निंदा की, “स्थिति और प्रतिबंधों को लेकर विभिन्न विचार और अलग-अलग आकलन थे”।
- वैश्विक अर्थव्यवस्था पर फोकस:
- G-20 अर्थव्यवस्थाओं ने अपनी घोषणा में ब्याज दरों में वृद्धि को सावधानीपूर्वक गति देने पर सहमति व्यक्त की और मुद्रा के मामले में “बढ़ी हुई अस्थिरता” को लेकर चेतावनी दी है, जिसमें कोविड-19 महामारी को ठीक करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- खाद्य सुरक्षा:
- नेताओं ने खाद्य सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये समन्वित कार्रवाई करने का वादा किया और ब्लैक सी ग्रेन पहल की सराहना की।
- जलवायु परिवर्तन:
- G-20 नेताओं ने वैश्विक तापमान वृद्धि को5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की, यह पुष्टि करते हुए कि वे जलवायु परिवर्तन पर 2015 पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्य के साथ खड़े हैं।
- डिजिटल परिवर्तन:
- नेताओं ने सतत् विकास लक्ष्यों तक पहुँचने में डिजिटल परिवर्तन के महत्त्व को पहचाना।
- उन्होंने विशेष रूप से महिलाओं, लड़कियों और कमज़ोर स्थितियों में रह रहे लोगों के लिये डिजिटल परिवर्तन के सकारात्मक प्रभावों का दोहन करने हेतु डिजिटल कौशल एवं डिजिटल साक्षरता को और अधिक विकसित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित किया।
- स्वास्थ्य:
- नेताओं ने स्वस्थ और स्थायी रिकवरी को बढ़ावा देने के लिये अपनी निरंतर प्रतिबद्धता व्यक्त की जो सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को प्राप्त करने और उसे बनाए रखने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है।
- उन्होंने विश्व बैंक द्वारा आयोजित महामारी की रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया (‘महामारी कोष’) के लिये एक नए वित्तीय मध्यस्थ कोष की स्थापना का स्वागत किया।
- नेताओं ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की अग्रणी और समन्वय भूमिका तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से समर्थन के साथ वैश्विक स्वास्थ्य शासन को मज़बूत करने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
जी-20 के सदस्य देशों के समक्ष चुनौतियाँ:
- यूक्रेन पर रूस के आक्रमण का प्रभाव:
- रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण ने न केवल बड़े पैमाने पर भू-राजनीतिक अनिश्चितता पैदा की है बल्कि वैश्विक मुद्रास्फीति को भी बढ़ा दिया है।
- पश्चिम द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने स्थिति को और भी खराब कर दिया है।
- कई देशों में ऐतिहासिक मुद्रास्फीति के उच्च स्तर ने इन देशों में क्रय शक्ति को कम कर दिया है, इस प्रकार आर्थिक विकास को धीमा कर दिया है।
- बढ़ती मुद्रास्फीति का प्रभाव:
- उच्च मुद्रास्फीति के जवाब में देशों के केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में वृद्धि की है जिसके कारण आर्थिक गतिविधियों में कमी आई है।
- यूएस और यूके जैसी कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ मंदी का सामना करने के लिये तैयार हैं; अन्य, जैसे कि यूरो क्षेत्र के देशों की गति धीमी होकर लगभग ठप होने की संभावना है।
- उच्च मुद्रास्फीति के जवाब में देशों के केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में वृद्धि की है जिसके कारण आर्थिक गतिविधियों में कमी आई है।
- प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की मंदी:
- वैश्विक विकास के प्रमुख इंजनों में से एक चीन में तीव्र मंदी देखी जा रही है क्योंकि यह एक रियल एस्टेट संकट से जूझ रहा है।
- बढ़ते भू-राजनीतिक मतभेद:
- विश्व की अर्थव्यवस्था भू-राजनीतिक बदलावों से जूझ रही है, जैसे कि अमेरिका और चीन के बीच तनाव, जिन्हें दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ माना जाता है या फिर ब्रेक्ज़िट निर्णय के मद्देनज़र ब्रिटेन और यूरोपीय क्षेत्र के बीच व्यापार में गिरावट।
G-20 समूह:
- परिचय:
- G20 का गठन वर्ष 1999 के दशक के अंत के वित्तीय संकट की पृष्ठभूमि में किया गया था, जिसने विशेष रूप से पूर्वी एशिया और दक्षिण–पूर्व एशिया को प्रभावित किया था।
- इसका उद्देश्य मध्यम आय वाले देशों को शामिल करके वैश्विक वित्तीय स्थिरता को सुरक्षित करना है।
- साथ में G20 देशों में दुनिया की 60% आबादी, वैश्विक जीडीपी का 80% और वैश्विक व्यापार का 75% शामिल है
जी-20 में हैं 19 देश शामिल
इन देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूके, यूएसए और यूरोपीय संघ शामिल है.
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