पटना हाईकोर्ट ने क्यों लगायी असिस्टेंट प्रोफेसर को नियुक्ति पत्र देने पर रोक?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार में चयनित असिस्टेंट प्रोफेसर को नियुक्ति पत्र जारी करने पर पटना हाईकोर्ट ने अगले आदेश तक रोक लगा दी है. चल रही नियुक्ति प्रक्रिया के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पटना हाई कोर्ट ने यह निर्देश दिया है. बिहार के 12 विश्वविद्यालयों में 4 हज़ार से अधिक सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति प्रक्रिया में आरक्षण नियमों की अनदेखी करने का आरोप है.
नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक नहीं
न्यायमूर्ति संजीव प्रकाश शर्मा की एकलपीठ ने डॉ. अमोद प्रबोधी सहित अनेक अभ्यर्थियों की ओर से दायर तीन अलग-अलग रिट याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बिहार राज्य यूनिवर्सिटी सर्विसेज कमीशन को नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगाने का कोई आदेश नहीं दिया, केवल नियुक्तियों की सूची या नियुक्ति पत्र को जारी करने पर रोक लगाया गया है.
करीब तीन चौथाई से अधिक रिक्तियों को आरक्षित किया गया
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरीय अधिवक्ता पीके शाही ने बहस करते हुए कोर्ट को बताया कि आरक्षण नियम के अनुसार किसी भी परिस्थिति में 50 फ़ीसदी से अधिक रिजर्वेशन नहीं दिया जा सकता, जबकि इस विज्ञापन में आरक्षित श्रेणी के लिए करीब तीन चौथाई से अधिक रिक्तियों को आरक्षित कर लिया गया है.
रिजर्वेशन नियम 50 फ़ीसदी से अधिक नहीं हो सकते
राज्य सरकार की तरफ से कोर्ट में बताया गया कि उक्त विज्ञापन में प्रकाशित रिक्तियों की संख्या में वर्तमान वैकेंसी के साथ-साथ बैकलॉग यानि पिछली रिक्तियों पर नियुक्तियां नहीं हो सकी थीं, उन्हें भी जोड़ कर विज्ञापित किया गया है. इसपर पीके शाही ने कोर्ट को बताया कि बैकलॉग रिक्तियों को वर्तमान रिक्तियों से जोड़ करने पर भी रिजर्वेशन नियम 50 फ़ीसदी से अधिक नहीं हो सकते.
अगली सुनवाई 10 जनवरी 2023 को होगी
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के 2 आला अधिकारियों को तलब किया था. जब उनसे एकलपीठ ने बैकलॉग वैकेंसी के में आरक्षण रोस्टर के तौर तरीकों पर सवाल किया तो सरकार की तरफ से कोई भी स्पष्ट उत्तर नहीं मिला. हाई कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि अगर आप नियम नहीं बता सकते तो ऐसी परिस्थिति में कोई भी नियुक्ति पत्र जारी करना न्यायोचित नहीं होगा. कोर्ट ने दोनों अधिकारियों को पिछली तीन नियुक्ति प्रक्रियाओं की पूरी फाइल को पेश करने का आदेश दिया है. इस मामले पर अगली सुनवाई 10 जनवरी 2023 को होगी.
बिहार में कई दशकों से प्रोफेसरों की है कमी
बिहार के परंपरागत विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों की कमी कई दशकों से है. कई सत्र प्रोफेसरों के पढ़ाई के बगैर ही खत्म हो गए लेकिन खत्म नहीं हुआ तो शिक्षकों की नियुक्ति का इंतजार है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर बिहार की परंपरागत यूनिवर्सिटी से निकलने वाले ऐसे छात्रों का सामना जब देश की बड़ी यूनिवर्सिटी के छात्रों से होगा तब क्या होगा. क्या बड़ी प्रतिस्पर्धा और आयोजन के सामने बिहार के छात्र टिक सकेंगे. जवाब है नहीं.
पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय से लेकर तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय तक इन सभी में शिक्षकों की भर्ती पिछले कई दशकों से नहीं हुई है. हालांकि पटना और पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में अतिथि शिक्षकों की बहाली हो रही है. पटना यूनिवर्सिटी में अतिथि शिक्षक की बहाली पूरी हो चुकी है. यहां के डीन डॉक्टर अनिल कुमार के मुताबिक, अतिथि शिक्षकों की बहाली के बाद अब विश्वविद्यालय में शिक्षकों की कमी नहीं रह गई है.
दिसंबर 2022 तक सभी 4600 पदों को भरने का आदेश
राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग की तरफ से अब सहायक प्राध्यापकों यानि अस्सिटेंट प्रोफेसर्स की नियुक्ति में तेजी आ गई है. कई विश्वविद्यालयों को शिक्षक मिले हैं लेकिन हालात में ज्यादा सुधार नहीं आया है. इसी बीच शिक्षा विभाग ने राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग को दिसंबर 2022 तक सभी 4600 पदों को भरने का आदेश दिया है.
राज्य के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर के मुताबिक, शिक्षकों की कमी चिंता का विषय है लेकिन इस कमी को दूर कर लिया जाएगा. दिसंबर 2022 तक सभी खाली पदों को भरना ही होगा. पहले बिहार में अस्टिटेंट प्रोफेसर्स की भर्ती बिहार लोक सेवा आयोग के जरिए होती थी, लेकिन अब ये भर्ती राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग के जरिए हो रही है.
बता दें कि शिक्षकों के खाली पदों का असर न सिर्फ पढ़ाई पर पड़ता है बल्कि यूजीसी से मिलने वाला फंड भी इससे प्रभावित होता है. क्योंकि जब नैक की टीम मूल्यांकन के लिए पहुंचती है और उसे ये जवाब मिलता है कि हमारे यहां पढ़ाने वाले प्रोफेसर ही नहीं है तो सवाल सिर्फ संबंधित विश्वविद्यालयों पर ही नहीं बल्कि पूरी शिक्षा व्यवस्था पर उठता है.