दास्तान-ए-कटिहार: एक हक़ीक़त

दास्तान-ए-कटिहार: एक हक़ीक़त

 

कटिहार अपने स्थापना के 49 वर्ष पुरे कर लिए हैं लेकिन भ्रष्टाचार, जातिवाद, बाढ़, शिक्षा से दूरी ने कटिहार को भारत के अन्य शहरों के मुका़बले में बहुत ही निचले पायदान पे लाकर खड़ा कर दिया है ।

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श्रीनारद मीडिया :

कटिहार बिहार राज्य के 38 ज़िलों में से एक है। कटिहार ज़िला पूर्णिया प्रमंडल का एक हिस्सा है, ज़िले में तीन अनुमंडल (कटिहार, बारसोई,मनिहारी) तथा 16 प्रखण्ड ( कटिहार, डंडखोरा, हसजंगज, कोढ़ा, समेली, फलका, कुर्सेला, बरारी, मनसाही, प्राणपुर, बारसोई, बलरामपुर, आज़मानगर, कदवा, मनिहारी ,अमदाबाद) और 1,306 गांव हैं.
वर्ष 2011 में हुई जनगणना के अनुसार जिले की कुल आबादी लगभग,3,071,029 है एक रिपोर्ट की मुताबिक़ कटिहार ज़िले की 91.08 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में बसती है, तथा 53.36 प्रतिशत ही लोग साक्षर(पढ़ें लिखे) हैं

इतिहास

3057 वर्ग किलोमीटर मैं फैला यह ज़िला ऐतिहासिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है, मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण यहां आए थे तथा मनिहारी के गंगा नदी के किनारे उनकी मनी खो गई थी जीस जगह मनी हेराने(गुम होने) का हादसा पेश आया वह जगह मनिहारी के नाम से जानी गई,यह भी कहा जाता है कि अज्ञात वास के दौरान पांडवों ने यहां नीवास किया था, 1166 ई. में यहां के बरारी छेत्र में सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर का भी आगमन हो चुका है.

मनिहारी का एक इतिहास ये भी है कि बंगाल के नवाब अली वर्दी खान की मृत्यु के बाद उनके नाती सिराजुद्दौला और दूसरे नाती शौकत जंग (जो उस समय पूर्णिया के सूबेदार थे) के बीच तख्तएबंगाला के लिए 16 अक्टूबर 1756 को इसी मनिहारी में गंगा नदी के किनारे एक खुनरेज़ जंग हुई थी युद्ध में शौकत जंग की मृत्यु हो गई थी और बंगाल की नवाबी सिराजुद्दौला के हाथ लगी थी.

पूर्णिया गजेटियर (1799) के अनुसार कटिहार शहर का पुराना नाम दरअसल सैफगंज (शरीफ़ गंज) था जिसे नवाब सैफ खां के ज़रिए आबाद क्या गया था इतिहासकार फ्रांसिस बुकानन ने भी कटिहार के लिए सैफगंज नाम का प्रयोग क्या है। वर्तमान जिला कटिहार वर्ष 1860 में अस्तित्व में आया और इसका नाम दिघी कटिहार नामक एक छोटे से गांव के नाम पर रखा गया जहां पूर्णिया के तत्कालीन नवाब की सेना और मुर्शिदाबाद के तत्कालीन नवाब की सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ था, राज्य सरकार की दिनांक 24 अप्रैल 1954 की अधिसूचना द्वारा कटिहार को अनुमंडल घोषित किया गया तथा कटिहार के बाद ब्रैकेट में सैफगंज शब्द का भी उल्लेख किया गया था, 2 अक्टूबर 1973 को जब इसे पूर्णिया से अलग कर जिला का दर्जा दिया गया तो नए जिले का नाम कटिहार रखा गया।

 

कटिहार अपने स्थापना के 49 वर्ष पुरे कर लिए हैं लेकिन भ्रष्टाचार, जातिवाद, बाढ़, शिक्षा से दूरी ने कटिहार को भारत के अन्य शहरों के मुका़बले में बहुत ही निचले पायदान पे लाकर खड़ा कर दिया है ।
अगर बिहार की बात करें तो इंडियन करप्शन सर्वे-2019 की रिपोर्ट में बिहार का स्थान दूसरा था यहां 75% लोगों ने स्वीकार किया था कि उन्हें अपना काम करवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ी थी इनमें से 50 प्रतिशत लोगों ने तो यहां तक कहा था कि उन्हें काम करवाने के एवज़ में अधिकारियों को कई बार रिश्वत देने पड़े.

कटिहार ज़िले में इससे भी बुरी स्थिति देखने को मिलती है, ज़िले में भ्रष्टाचार चरम पर है, हर जगह भ्रष्टाचार देखने को मिलता है, केंद्र सरकार ने संसद द्वारा पारित, राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम,2013 दिनांक 10 सितम्‍बर,2013 को अधिसूचित किया , जिसमें ये कहा गया के गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को प्रतिमाह प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम राशन दिया जाए जिसमें चावल ₹3 किलो गेहूं ₹2 किलो और मोटे अनाज एक रुपए किलो दिया जाए लेकिन जिले में अधिकतम डीलर द्वारा राशन कम पैसे ज़्यादा उसूले जा रहे हैं.

सड़क निर्माण में भी खुलकर हो रहा है भ्रष्टाचार, साल 2 साल पहले बनाई गई सड़कें देखकर ऐसा एहसास होता है जैसे सदियों पहले बनाई गई हों, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्र में बनाई गई सड़कें अधिक भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी है.
सरकारी स्कूलों में भ्रष्टाचार का यह हाल है कि बच्चों से फीस ज्यादा वसूलने के साथ साथ NSP के फॉर्म जमा करने पर भी पैसे लिए जाते हैं.

कटिहार में शिक्षा

वैसे तो राज्य में बजट का बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च होता है इसलिए बजट में हर साल बढ़ोतरी की जा रही है इस बार भी 2022-23 के लिए के लिए शिक्षा बजट मैं काफी बढ़ोतरी की गई है इस बार शिक्षा के लिए बजट 39,19,187 करोड़ रुपए का है, यह बजट का कुल 16.5 फिसदी है लेकिन करोड़ों रुपए के बजट होने के बावजूद सिर्फ कटिहार नहीं बल्कि पूरे बिहार की शिक्षा की हालत जर्जर है.

कटिहार में शिक्षा का मतलब है सरकारी नौकरी जिसके लिए आपको अधिक पढ़ने की आवश्यकता नहीं, मैट्रिक इंटर ज़्यादा से ज़्यादा ग्रेजुएशन काफी है इसलिए अधिकतर छात्र दारोगा, पुलिस, रेलवे इत्यादि में जाना पसंद करते हैं. मैट्रिक और इंटर तक पढ़ने के लिए भी काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, सरकारी स्कूलों की स्थिति ऐसी है कि कई स्कूलों में शौचालय तक नहीं, शौचालय है भी तो खंडहर में तब्दील हो चुका है, टीचर्स उपस्थित नहीं रहते, कई टीचर्स को पढ़ाने नहीं आता, टीचर्स आते हैं अटेंडेंस बना कर चले जाते हैं, इन सब कारणों से अधिकतम बच्चे सरकारी स्कूल में नामांकन करवा तो लेते हैं परंतु प्राइवेट स्कूल में पढ़ने जाते हैं।

ज़िले में प्राइवेट स्कूलों की स्थिति भी कुछ खास नज़र नहीं आती हजारों रुपए की पुस्तकें थमा तो देते हैं किंतु पढ़ाई सिर्फ चंद पुस्तकों की होती है, अंत में छात्रों को मैट्रिक और इंटर के लिए कोचिंग सेंटर का रुख करना पड़ता है, जब वे मैट्रिक इंटर कर लेते हैं तब वह ग्रेजुएशन के लिए शहर की तरफ देखते हैं परंतु दूर तक उन्हें कोई अच्छा कॉलेज या विश्वविद्यालय नज़र नहीं आता, वैसे तो पूरे बिहार में कोई भी विश्वविद्यालय शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी टॉप विश्वविद्यालय में शामिल नहीं है, अंत में विवश होकर उन्हें ऐसे कोलेज में नामांकन करवाना पड़ता है जहां कभी क्लास नहीं होती और 3 वर्ष का कोर्स 5 से 6 वर्ष में मुकम्मल होता है. ये अरसा कटिहार के छात्रों लिए कांटों भरा होता है, यह वह दौर होता है जीस में वे सरकारी नौकरी की तैयारी करते हैं,या फिर व्यापार में लग जाते हैं अन्यथा मज़दूरी के लिए दूसरे राज्य का रुख करते हैं.

बाढ़ का क़हर

ज़िले हर वर्ष आने वाली बाढ़ और उससे होने वाली तबाही का जिक्र हम और आप हमेशा सुनते और देखते हैं, हर वर्ष हज़ारों घर बाढ़ और मिट्टी कटान के कारण नदी में समा चुके हैं, कड़ोरों की फसलें तबाह होती है, बच्चों की पढ़ाई स्कूल सब बंद हो जातें हैं, कुल मिलाकर लाखों जिंदगी बर्बाद हो रही है, हम सुनने और देखने वालों के लिए शायद यह एक आम बात हो गई हो लेकिन जो लोग इस

तबाही से गुज़रते हैं उनके लिए यह एक भयानक रात के ख्वाब जैसा है जो उनके जीवन में आने वाली सुबह को रोके हुए है, याद रहे कि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं जहां दुसरे देश समुन्द्र में शहर आबाद कर रहे हैं वहीं कटिहारवासी नदी के बाढ़ से ज़िंदगी और मौत की जंग लड़ रहे होते हैं. केंद्र सरकार ने अबतक इस तबाही को रोकने के लिए कोई बड़ा क़दम नहीं उठाया है, राज्य सरकार करोड़ों रूपए खर्च करने का दावा करती है लेकिन इसका कोई असर दिखाई नहीं देता.

आलेख :  शमसुल होदा, मौलाना आज़ाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद

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