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मातृभाषा में सोचने, तर्क करने, विश्लेषण करने की क्षमता बढ़ेगी : अमित शाह - श्रीनारद मीडिया

मातृभाषा में सोचने, तर्क करने, विश्लेषण करने की क्षमता बढ़ेगी : अमित शाह

मातृभाषा में सोचने, तर्क करने, विश्लेषण करने की क्षमता बढ़ेगी : अमित शाह

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत किसी छात्र को उसकी मातृभाषा में दी जाने वाली शिक्षा से उसकी सोचने, तर्क करने, विश्लेषण करने और शोध करने की क्षमता बढ़ेगी। विजापुर में शेठ जी सी हाई स्कूल की 95वीं वर्षगांठ पर एक सभा को संबोधित करते हुए, शाह ने कहा कि तकनीकी, चिकित्सा और उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों के पाठ्यक्रम को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने के लिए काम चल रहा है और कहा कि अगले 25 सालों में एनईपी भारत को नंबर एक देश बना देगा।

उन्होंने कहा कि ब्रिटिश शिक्षा नीति के तहत आजादी से पहले के भारत में रटकर पढ़ाई करना बुद्धिमत्ता की निशानी थी, उन्होंने कहा कि छात्रों में सोचने, शोध करने, तर्क करने, विश्लेषण करने, निर्णय लेने और समझने की शक्ति नहीं होती, जिससे समाज में कई मुद्दे पैदा हो गए।

नई शिक्षा नीति में मातृभाषा पर दिया गया है जोर

गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा, “नई शिक्षा नीति, जिसमें मातृभाषा पर जोर देने सहित मूलभूत परिवर्तन किए गए हैं, भारत को 25 वर्षों में दुनिया में नंबर एक बना देगी।” शाह ने कहा, “अगर कोई छात्र अपनी मातृभाषा में पढ़ता, बोलता और सोचता है, तो इससे उसकी सोचने की क्षमता, उसकी तर्क शक्ति, विश्लेषण की क्षमता और शोध की क्षमता स्वाभाविक रूप से बढ़ेगी।”

“एनईपी में मूलभूत परिवर्तन प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर जहां तक संभव हो छात्रों को उनकी मातृभाषा में शिक्षित करना है। मुझे विश्वास है कि अगले सात वर्षों में देश के सभी छात्रों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान की जाएगी। जीभ और उनकी माताएं उन्हें उनकी भाषा में पढ़ाने में सक्षम होंगी”। इसके साथ ही तकनीकी, चिकित्सा और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम का मातृभाषा में अनुवाद किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भोपाल में चिकित्सा शिक्षा पहले सेमेस्टर के पाठ्यक्रम के अनुवाद के बाद हिंदी में दी जा रही है। उन्होंने कहा, “गुजराती, तेलुगु, ओडिया, पंजाबी और बंगाली- इन सभी भाषाओं में उच्च और चिकित्सा शिक्षा पाठ्यक्रम शुरू होंगे।

शाह ने कहा कि कोई व्यक्ति मूल सोच तभी रख पाता है जब विचार करने का विषय उसकी मातृभाषा में पढ़ाया जाता है, और नई शिक्षा नीति बच्चे की कला और संगीत आदि जैसी क्षमताओं को एक मंच प्रदान करने में मदद करेगी।

शाह ने कहा, “एनईपी ने व्यावसायिक और कौशल शिक्षा के लिए एक बड़ी भूमिका निभाई है। 10वीं कक्षा से पहले 50 प्रतिशत से अधिक छात्र व्यावसायिक शिक्षा से जुड़ जाएंगे और इससे उन्हें स्वरोजगार, सूक्ष्म और कुटीर उद्योग की ओर ले जाने में मदद मिलेगी।”

जिन देशों की मातृभाषा और राष्ट्रभाषा एक ही है और वही वहाँ की शिक्षा का माध्यम है उन देशों में शिक्षा की प्रगति बहुत तेजी से हुई है और उन देशों ने अपना विकास भी तेजी से किया है। अतः किसी भी देश में किसी भी स्तर की शिक्षा का माध्यम मातृभाषा को ही बनाया जाना चाहिए। और जहाँ एक से अधिक समृद्ध भाषाएँ हो, वहाँ राष्ट्रभाषा को मातृभाषा को ही शिक्षा का माध्यम बनाने के पीछे निम्नलिखित तथ्य हैं-

  1. मातृभाषा अभिव्यक्ति एवं विचार-विनिमय का सरलतम साधन होती है और इस पर बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार होता है। इसके माध्यम से अध्ययन अध्यापन की क्रिया बड़े सरल और सहज रूप में चलती है।
  2. मातृभाषा और विचार में अटूट सम्बन्ध होता है। प्रत्येक बच्चा अपनी मातृभाषा में ही विचार करता है और उसी के माध्यम से विचारविनिमय करता है।
  3. मातृभाषा के माध्यम से अध्ययन करते समय बच्चों को स्वतन्त्र चिन्तन और स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के अवसर मिलते हैं, उनके स्वतन्त्र व्यक्तित्व का विकास होता है, उनके व्यष्टित्त्व का विकास होता है।
  4. मातृभाषा के माध्यम से ही बच्चे सामाजिक व्यवहार करते हैं और उसी के माध्यम से सामाजिक अन्तः क्रिया करते हैं। शिक्षण प्रक्रिया में सामाजिक व्यवहार एवं सामाजिक अन्तः क्रिया दोनों का बड़ा महत्त्व होता है, इसलिए शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होनी चाहिए।
  5. अपनी मातृभाषा के प्रति बच्चों में एक आदर-भाव होता है, माता और मातृभूमि के समान के मातृभाषा भी वन्दनीय होती है, उसके स्थान पर किसी अन्य भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने से बच्चों की भावना पर कुठाराघात होता है।
  6. मातृभाषा के साहित्य में जाति विशेष का इतिहास एवं संस्कृति छिपी होती है, बच्चों पर प्रारम्भ से ही उसके अमिट संस्कार होते हैं। मातृभाषा किसी समाज की संस्कृति का अंग होती है, कोई व्यक्ति उसके बिना समूह का सदस्य नहीं बन सकता।
  7. जब मातृभाषा शिक्षा का माध्यम होती है तो बच्चों को उसका प्रयोग बहुत अधिक करना पड़ता है. प्रयोग और अभ्यास से उन्हें अपनी मातृभाषा पर अधिकार होना स्वाभाविक है। और तब व्यक्ति एवं समाज के विकास को गति मिलना भी स्वाभाविक है। व्यक्ति और समाज, दोनों के विकास के लिए मातृभाषा को ही शिक्षा का माध्यम बनाना चाहिए।

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